गुरुवार, 24 मई 2018

शेरो शायरी की बहार



 दोस्तों,

शायरी  पढ़ना, सुनना और लिखना इन तीनो बातों का मज़ा ही कुछ और है। शायरी फ़ारसी,अरबी भाषाओं से होते हए उर्दू भाषा तक पहुँची है।  
        आपको एक बात बताना मैं जरूरी समझता हूँ कि शायरी पूरी तरह से सिर्फ़ उर्दू भाषा मे ही हो ,यह जरूरी नहीं है। शायरी में हिंदी के भी शब्द मिलाकर भी लिख सकते हैं।। शब्द सही होने चाहिए और शायरी की लय (कहन) सटीक होगी तो दिल मे उतर जाती है। शायरी पढ़ने का शौक तो हिंदी भाषी लोगों को भी बहुत होता है। शायरी का सम्बंध दिल से होता है। देखा जाये तो  शायरी  दिल से ही लिखी जाती है।

          इसीलिए मैने एक शेर लिखा-----



ख़ुशी या ग़म का रिश्ता  दिल से होता है  बड़ा गहरा

लिखी  जाती  है  उम्दा शायरी  दिल की  सियाही से


   दोस्तों,नीचे एक चार लाइन के मुक्तक का मज़ा लीजिये और इसके बाद शायरी की बहार का आनंद लीजिये



हमारी  ज़िन्दगी  में  याद  की   अपनी  अहमियत  है,

कभी वह  इक महकती, खुशनुमा  अहसास  होती है
सिमटकर कर वह भिगाती है कभी मासूम पलकों को,
नहीं  मिटती   हमारे  मन से,  दिल  के पास  होती है !!


हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'


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 अलग अलग रंग के शेर--मेरी कलम से. 


बुलंदी मिल नहीं सकती फकत तक़दीर के बल से कड़े संघर्ष  के छाले ही मंजिल से  मिलाते  हैं


ये माना  ज़िंदगी में  ग़म  के  झोंके भी  बहुत आए
मगर खुशियों के गुलशन ने भी  प्यारे फूल बरसाए


जब तलक  सोती  रही वो, नींद  मुझसे  दूर थी
जग गई तकदीर जिस दिन,  नींद  ही आई नहीं

मजे में  हूं  यही  हम  झूठ  अक्सर बोल जाते हैं
छुपाते  दर्द  यूं  खुद  को  हंसी  से भी  बचाते हैं 


सुनो बरसात से यादों का नाता है  गजब यारो
एक तन को भिगा दे दूसरी मन को भिगाती है



बड़ी नासाज़ थी तबियत उन्होंने हाल भर पूँछा

रफ़ूचक्कर हुआ  सब  मर्ज़  उनके मुस्कराने से


रूठने  का  मज़ा  तब आता  है

प्यार  से  जब  कोई  मनाता  है


अदब से सर झुकाना भी  बुजुर्गों से ही सीखा है

अगर  कश्ती  हो  तूफाँ  में  किनारा चूम लेती है


परायी  पीर  को  जो  देख  मुस्कराते  हैं

ज़ख्म  खाकर  बड़े बेज़ार नजर आते हैं

उदासी   को   छिपाकर  मुस्कुराना  फन है यारो 
इसे  सीखा   है  जिसने  ज़िंदगी उस पर फ़िदा है 



सुना था नाम जमाने में मोहब्बत का मगर

उनसे मिलने के बाद हमने हक़ीकत जानी


तुम  मेरी गलतियों को,भूल सको तो बेहतर,
वरना हमको भी, मनाने  का  हुनर आता है!


हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'


सुनहरे पल की  खुशियों का बहुत है  लौटना मुश्किल 

मगर इस दिल ने अब तक आस का दामन नहीं छोड़ा


बेज़ार  हो   गए  थे  ग़म-ए-ज़िन्दगी  से  हम 
नजर ए करम ने आपके जीना  सिखा  दिया


वे मेरे मौत का  सामान   अपने साथ  रखते हैं

मगर मिलते ही मेरे सर पे अपना हाँथ रखते हैं


मिल  गई   हमको   बुलन्दी ,  दूर   उनसे   हो  गए

जीत कर  हर एक बाजी  हमने सब कुछ खो दिया 


सुनहरे पल वो खुशियों के कहाँ अब लौटने वाले

मगर नादान दिल ने आस  का दामन  नहीं छोड़ा


मुझे  रुसवा  करो  बेशक़  यहाँ  सारे  जमाने में 

मगर इल्ज़ाम तुम पर भी न आ जाये फ़साने में


कड़े  मौसम कठिन हालात में उसको  जवाँ  देखा 

वफ़ा वो फूल है जिसकी कभी खुशबू  नहीं  जाती


मेरी ख्वाहिश का वो चमन नहीं मिला फिर भी,

मेरे   ख़्वाबों   के   रगो   में    बड़ी   रवानी   है


दर्द  देने  वाले   दवा   दे   रहे  हैं

जीने  की  मुझको  दुआ दे रहे हैं


किसी  नेकी के  बदले गर बदी मिल जाय दुनिया में

न हों मायूस    वह  मालिक  सदा  इंसाफ  करता है


बुझ चुकी है आग फिर भी उठ रहा  है अब धुआँ

कुछ  छिपी  चिनगारियों  को  भी बुझाना चाहिए



मोहब्बत  को इबादत  की तरह  जो  याद रखते हैं
खुदा   की  रहमतों  से   वे  सदा  आबाद  रहते  हैं


कोशिशें  हर बार  सब  नाकाम  तूफाँ की हुई

करम  मालिक का  समुंदर यार मेरा बन गया


कभी  मजबूरियाँ    भी   रोकती  हैं  पेशकदमी  से
मगर जो प्यार सच्चा है वो हरगिज़ मर नहीं सकता


इश्क़  में  दर्द   भी खुशियों  पे  फ़िदा होता है

ये ऐसी कैद है  जिसमे रिहाई हो नहीं सकती।


कुछ तज़ुर्बे ने बचाया, और  मालिक  का  रहम

दोस्तों की थी इनायत ,टूट  कर सम्हले  हैं  हम



मचाओ धूम, हर दिल में  मुकाम हो जाये
बढ़े  कदम  तो  बुलंदी  तुम्हे सलाम  करे!


माँ के हाँथों की रोटियों में बड़ी लज्ज़त थी 

किसी निवाले में  अब वह मज़ा नहीं आता


पराई  पीर  देख   कर   जो  मुस्कराते हैं
ग़म सताता है तो बेबस से नजर आते हैं



जिंदगी  का  मज़ा भी  आता है
जब कोई दिल में उतर जाता है

जागने  का  मज़ा  भी  आता है
नींद  को  प्यार  जब  उड़ाता है

रुठने   का   मज़ा  भी  आता है
प्यार   से   जब  कोई  मनाता है





हरिशंकर पाण्डेय-- 9967690881


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लगादी  जिंदगी अपनी  नया  इक घर 
 बसाने  में

जिये  औलाद की ख़ातिर  उन्हें काबिल बनाने में

बुजर्गों के  दिलों की पीर  
सुन लो  इस  जमाने मे

किया लख्त ए ज़िगर ने आज बेघर आशियाने में


अनिल कुमार 'राही'



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बुजुर्गों की दुआ अपना असर हरदम दिखाती है

हुनर जीने का हमको  जिंदगी में भी सिखाती है
अदब से सर झुकाना भी  बुजुर्गों से ही सीखा है
अगर तूफाँ में कश्ती  हो किनारा पा ही जाती है

हरिशंकर पाण्डेय 
'सुमित'


उसने  पहले रस कहा  फिर गुल कहा  फिर ले  कहा

इस तरह  ज़ालिम  ने  रसगुल्ले  के  टुकड़े  कर  दिये
(अज्ञात)


नोट-- दोस्तों, मेरे ब्लॉग के सभी पृष्ठ पर कुछ नई रचनाएँ  लिखी  जाती  है,पढ़ते रहिये। आपके  विचार क्या हैं अवश्य लिखिए।


धन्यवाद!!


हरिशंकर पाण्डेय--9967690881

hppandey59@gmail.com

दर्द शायरी











दर्द  देने  वाले  दवा  दे  रहे  हैं
जीने की मुझको दुआ दे रहे हैं

दर्द भी  इश्क़ की  खुशियों पे   फ़िदा होता है

ये ऐसी क़ैद है  जिसमें  रिहाई भी  नहीं होती

दर्द  जब  दिल का  रुलाई से  पिघल जाता है
अश्क़ की शक़्ल में आँखों से निकल आता है

गर्दिश ए ज़िन्दगी ने यूँ बदल दिया मुझको
लोग  कहते  हैं  कि  मुझमें  गुरुर  आया है

उसने मेरा जीना बड़ा दुश्वार  कर  दिया
ताजा था मेरा ज़ख्म वहीं वार कर दिया

कभी मजबूरियाॅ॑ भी रोकती हैं पेश कदमी से
वफ़ा जब दर्द की दहलीज़ पर लाचार होती है

हरिशंकर पाण्डेय "सुमित"

मैं  ग़मो को आजमाते चल रहा हूँ
दर्द  से  आँखें मिलाते चल रहा हूँ

@हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'


ये तारे चाँद के सँग,छिप गये जाने कहाँ  जाकर, 
फलक खामोश है, ये रात भी  बेजान  लगती है! 
तुम्हारे बिन, मुकद्दर के सितारे बन गये  जालिम,
ये पूरी  जिंदगी  टूटा  हुआ  अरमान  लगती है!!
  

किसी  को दर्द ने बख्शा नहीं ज़माने में

ग़मो का है  बड़ा क़िरदार हर फ़साने में

दर्द जब  दिल का  रुलाई से  पिघल जाता है
अश्क़ की शक्ल में आँखों से निकल आता है

Harishankar Pandey

हमसे हुए वो दूर क्या अब हम बिखर गए
आंखों  में  बेशुमार   मेरे  अश्क  भर  गए
सब  लोग   मेरे  ज़ख्म   ढूंढते   रहे   मगर
हम  अपने  दर्द  से  ही  कई  बार  मर गए

 अनिल कुमार राही

बने थे हमसफर हम और दिल से आशनाई की
ख़ता हमसे हुई क्या  वक्त  ने फिर बेवफाई की

                     हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'


हमें  उनकी  वफ़ा  पर था भरोसा ख़ुद से भी ज़्यादा
मगर   बेबस  हुए   तकदीर  ने   जब   बेवफ़ाई  की
हरिशंकर पाण्डेय   "सुमित "    

प्रेरणादायक शेर









किसी नेकी के बदले  गर बदी मिल जाय  दुनिया में
न हों मायूस    वह  मालिक  सदा  इंसाफ  करता है

महक गुलशन के उस गुल की कभी  फीकी नहीं पड़ती
    हमेशा   गर्दिश  ए   तूफ़ान  में   जो  मुस्कराता  है


किसी भी दर्द का मुझ पर असर नहीं होता
ग़म के साये में भी  खुशियाँ तलाश लेता हूँ

झीलों  नदियों  की  अहमियत  समझो,
हमारी प्यास समुंदर नही बुझा  सकता

हुनर  सफ़र में  बुलंदी  तलाश ले  फिर भी
अपनी नजरों को सलीके से झुकाये रखना

मिलेगा मर्तबा  हस्ती  को  बचाये रखना
सफ़र के वास्ते कश्ती को सजाये रखना

रोक  पायेगा  रास्ता  क्या  तुम्हारा  तूफाँ
अपनी  यारी  यूँ  समंदर से बनाये रखना


कुछ करने का सच्चा जुनून  जज्बे का साथ निभाता है
परवाज़  हौसले की पाकर जांबाज़ कहाँ  रुक  पाता है
जो  इंक़लाब  का  नारा  दे  कुर्बान  जवानी  कर  डाले
आज़ादी का मक़सद लेकर वह भगत सिंह बन जाता है

जीत ले  हर एक  बाज़ी  हौसले  के  जोर से
खुद फ़लक सजदा करे परवाज़ ऐसी चाहिए

गम कभी  जब  आजमाने  ही लगे,
तुम किसी  अंजाम  से  डरना नहीं।
जब घिरे  दुख दर्द  की  काली घटा,
बादलों  की  शाम   से  डरना  नहीं।
आएगी चौखट पे भी एक दिन  खुशी,
गम के  इस  मेहमान  से  डरना नहीं।



हमारे जांबाज़ वीर जवानों के लिए कुछ पंक्तियाँ
लिख रहा हूँ!-मेरा उनके जज़्बे को  शत-शत नमन..

मोहब्बत है वतन से ये,  कभी  पीछे  नहीं हटते,
हमेशा  सरहदों  पर  जान की  बाजी  लगाते हैं!
हिफाज़त में वतन की,रहते हैं हर पल ये चौकन्ने,
नहीं  डर  है  इन्हे ये " मौत से  आँखे  लड़ाते हैं।"

हजारों फिट की ऊँचाई, जहाँ जीना ही मुश्किल है, 
वहाँ  जांबाज़  बढ़ कर  जंग में  जलवा दिखाते हैं। 
डटे  रहते  हैं  , बर्फीली  हवा  के  बीच   रातों  में,
निभाते  फर्ज़  हैं वो," हम  शुकूं की  नींद  पाते हैं।"

                         ll जय  हिन्द l

हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'

मंगलवार, 22 मई 2018

ज़ख्म फूलों ने दिये भूल नहीं पाये हम


किसी काँटे से कभी  खौफ़ नहीं खाये हम
ज़ख्म  फूलों ने  दिये  भूल  नहीं  पाये हम

उनके रुख़  पर  जो  मेरे दर्द से  खुशी देखी 
इस हक़ीक़त -ए- जिंदगी को जान पाए हम


गर्दिश -ए -जिंदगी ने ही बदल दिया मुझको
यार  कहते  हैं  कि   मुझमें  गुरूर  आया है


@हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'

आम हैं आज भी उनके जलवे पर कोई देख सकता नही है
सबकी आँखों पे  पर्दा पड़ा है  उनके  चेहरे पे  पर्दा  नही है
लोग चलते हैं काँटों से बचकर  मैं बचाता हूँ फूलों से दामन
इस कदर हमने खाये हैं धोखे अब किसी पर भरोसा नहीं है

अज्ञात

वफ़ा का दम  जो भरते थे  उन्हें भी  आजमाया है
जिसे समझे थे अपना अब कहर उसने ही ढाया है

हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'

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वो हमसे दूर क्या हुए अब हम बिखर गए।
आंखों  में मेरे   अश्क   बेशुमार   भर गए।।
निशाॅन   ढूँढते   रहे   सब, ज़ख्म  के  मेरे। 
हम  अपने  दर्द  से  ही  कई  बार मर गए।।


              (अनिल कुमार राही)

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ग़ज़ल की दुनिया से.......

मौत से ताउम्र यूँ भी मशवरा करते रहे,
ज़िन्दगी हारे न बस ये ही दुआ करते रहे.

इस तरह से इश्क़ में महबूब से रिश्ता रखा,
दे रहा था वो मुआफ़ी हम ख़ता करते रहे.

मयक़दे ये पूछते ही रह गए आख़िर तलक़,
कौनसा आख़िर बताओ हम नशा करते रहे.

सूखे  पत्तों की तरह जलते रहे बारिश में हम,
आग थी बेचैन लेकिन हम हवा करते रहे.

ढूँढता हममें रहा वो हम कहाँ उसमे रहे,
वो कहाँ हममें छिपा है हम पता करते रहे.

बेख़ुदी हम पे भी यारो इस क़दर छाई रही,
या ख़ुदा हम या ख़ुदा बस या ख़ुदा करते रहे.

इश्क़ में होकर जुदा मरने की ज़िद को छोड़ कर,
हम न जाने किस जनम का हक अदा करते रहे .

                     -सुरेन्द्र चतुर्वेदी

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सोमवार, 21 मई 2018

मुक्तक -- शायर की कलम से--------



कुछ करने का सच्चा जुनून, जज़्बे का साथ निभाता है।
परवाज़  हौंसले की पाकर, जाँबाज़ कहाँ  रुक पाता है!!
जो  इन्कलाब  का  नारा दे , कर दे  कुर्बान  जवानी को ,
आज़ादी का मक़सद लेकर,वह भगत सिंह बन जाता है!!


                      हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'
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जब तक कदम रुके रहे तो  तेज थी हवा
नजरें  उठाई   जैसे   तूफान   रुक   गया
एक पैतरे के साथ ही बिजली चमक उठी
उसने उड़ान ली तो आसमान  झुक  गया

हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'

न  कोई  हमसफ़र   होगा   न  कोई   कारवां  होगा
विदा जब  होंगे तन्हा हम   न  कोई   पासबाॅ॑  होगा
फना होंगे  'सुमित' फिर भी  रहेगी  रूह  ये  कायम
न जाने कौन सा फिर जिस्म  इसका आशियां होगा

पासबाॅ॑--रक्षक
हरिशंकर पाण्डेय "सुमित"

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वह माॅ॑गती  है  सब  कुछ औलाद के लिए
खुद के लिए उसकी कोई मन्नत नहीं होती
बच्चों  को  पालती  है  ममता की  छाॅ॑व में
माॅ॑  से  बड़ी  जहान  में ज़न्नत  नहीं  होती


हरिशंकर पाण्डेय "सुमित"

*************************************** हमारी  ज़िन्दगी  में  याद  की   अपनी  अहमियत  है,
कभी  वे  इक  महकती, खुशनुमा  अहसास  होती हैं !
सिमटकर कर वह  भिगाती हैं कभी मासूम पलकों कों,
नहीं  मिटती   हमारे  मन से,  दिल  के पास  होती हैँ !!

हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'

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उनके रुख़ पर जो मुस्कराई है उल्फ़त की कली,
तैरती   है   हया ,   पलकों  का  सहारा  लेकर !!
होठ हिलकर रुके, खामोश जुबां  कह न  सकी,
बात  कहदी ,  हसीं  नजरों  ने   इशारा देकर !!!

     हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'

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कड़कती धूप मे मजदूर करते हैं बड़ी मेहनत,
मिले दो वक्त की रोटी, यही अरमान रखते हैं।
पसीने से नहा कर, काम को अंज़ाम देकर ये,
गरीबी मे भी चेहरे पर मधुर मुस्कान रखते हैं!!

हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'

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कोई बँगलों में रहता है,किसी के छत नहीं सर पर।
किसी की फ़र्श  संगमरमर, कोई है तोड़ता पत्थर।
बड़ा मंजर अज़ब देखा,कोई मोहताज़ निदिया का, 
कोई है  चैन से सोया, खुली फुटपाथ  पर जा कर!


              हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'

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बुजुर्गों की दुआ अपना असर हरदम दिखाती है
हुनर जीने का हमको  जिंदगी में भी सिखाती है
अदब से सर झुकाना भी  बुजुर्गों से ही सीखा है
अगर तूफाँ में कश्ती  हो किनारा पा ही जाती है

हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'

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आदमी  बस ढूँढ़ता है, एक  शुकूँ  की  ज़िन्दगी,
सिर्फ दौलत ही नहीं, सब कुछ है इस संसार में l
हसरतें पूरी हो सब, यह तो  कभी मुमकिन नहीं,
हर ख़ुशी बिकती नहीं, दुनिया के इस बाजार में !

हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'

मै  ढूढ़ता  रहा  जिसे, शहरों में  बार बार,
घर तो मिले बड़े,मगर आँगन नही मिला!
दौलत की चकाचौंध के मंज़र बहुत दिखे,
पर  झूमता हुआ मुझे सावन नहीं  मिला!



                हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'

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हरे जांबाज़ वीर जवानों के लिए  कुछ पंक्तियाँ 
उनके जज़्बे को  शत-शत नमन..

मोहब्बत है वतन से ये,  कभी  पीछे  नहीं हटते,
हमेशा  सरहदों  पर  जान की  बाजी  लगाते हैं!
हिफाज़त में वतन की,रहते हैं हर पल ये चौकन्ने,
नहीं  डर  है  इन्हे ये   मौत  से  आँखे  लड़ाते हैं।

हजारों फिट की ऊँचाई, जहाँ जीना ही मुश्किल है, 
वहां  जांबाज़  बढ़ कर  जंग में  जलवा दिखाते हैं। 
डटे  रहते  हैं  , बर्फीली  हवा  के  बीच   रातों  में,
निभाते  फर्ज़  हैं वो,  हम  शुकूं की  नींद  पाते हैं।

                         ll जय  हिन्द ll


             हरिशंकर  पाण्डेय 'सुमित'


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जाति, धर्म, धन, दौलत की  कोई दीवार  नहीं होती!

है बड़ी दोस्ती की हस्ती, हरगिज़ लाचार नहीं  होती !
जब याद करे एक मित्र कभी,दूजे तक बात पहुँचती है,
हो सखा "कन्हैया" जैसा तब, दूजी दरकार नहीं होती

हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'
               

मशहूर और बेहतरीन शेर-- शायर की कलम से......









कड़े मौसम  कठिन हालात में उसको जवां देखा
वफ़ा वो फूल है जिसकी कभी ख़ुशबू नहीं जाती


हरिशंकर पाण्डेय'सुमित'


अबके सावन में शरारत ये मेरे साथ हुई

मेरा घर छोड़कर कुल शहर में बरसात हुई

नीरज

अपना ग़म लेके कही और न जाया जाए

घर में बिखरी हुई चीज़ों को सजाया जाए

निदा फ़ाज़ली


न  कोई  हमसफ़र  होगा   न  कोई   कारवां  होगा
चले  जाएंगे   जब   तन्हा   न   कोई  पासबाॅ॑ होगा
फना हो  जायेंगे  फिर  भी  रहेगी  रूह  ये  कायम
न जाने कौन सा फिर जिस्म इसका आशियां होगा

पासबाॅ॑--रक्षक
हरिशंकर पाण्डेय "सुमित"


इस जहाँ में प्यार महके जिंदगी बाकी रहे

ये दुआ मांगो  दिलों में  रोशनी बाकी  रहे

 देवमणि पाण्डेय


खफा है आज मगर कल गले  लगाएगी

ज़िंदगी है जनाब  फिर  से  मुस्कराएगी

हरिशंकर पाण्डेय "सुमित"


आँसू  की  क्या  क़िस्मत  है , बहने  में   बाधाएँ  कितनी

बाहर चहल पहल हलचल है,भीतर  बंद  गुफाएं  कितनी

शैल चतुर्वेदी


इस जहाँ से कब कोई बचकर गया

जो भी आया खा के कुछ पत्थर गया

राजेश रेड्डी

इस तरह कुछ आजकल अपना मुकद्दर हो गया

सर को  चादर से  ढंका  तो पाँव बाहर हो गया

 देवमणि पाण्डेय

उनके अंदर भी कहीं तू है, कहीं तू न गिरे

बस यही सोच के  इन  आँखों से आँसू न गिरे

 कुंअर बेचैन

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बुलंदी मिल नहीं सकती फकत तकदीर के बल से
कड़े  संघर्ष  के  छाले  ही  मंजिल  से  मिलाते  हैं

अजब है  यह  नजारा  जिंदगी  का भी मेरे यारो
दिया है ज़ख्म जिसने अब वही मरहम लगाता है

बेज़ार  हो   गए  थे  ग़म-ए-ज़िन्दगी  से  हम
नज़र ए करम  ने  आपके जीना सिखा दिया

सुनहरे पल की  खुशियों का  बहुत है लौटना मुश्किल
मगर इस दिल ने अब तक आस का दामन नहीं छोड़ा

मुझे  रुसवा करो  बेशक़  यहाँ  सारे जमाने में
मगर इल्ज़ाम तुम पर यूँ न आ जाए फ़साने में


मेरी ख़्वाहिस का  वो चमन  भले ही  दूर सही,
मेरे   ख़्वाबों   के   रगो   में   बड़ी   रवानी   है

मोहब्बत को, इबादत की  तरह  जो  याद रखते हैं
ख़ुदा   की  रहमतों  से   वे  सदा  आबाद  रहते हैं

कभी  मजबूरियाँ    भी   रोकती  हैं  पेशकदमी  से
मगर जो प्यार सच्चा है  वो हरगिज मर नहीं सकता

मुझसे बिछड़े वो मुलाकात कभी हो न सकी
एक हसरत थी  मगर बात  कभी हो न सकी

इश्क़ में  दर्द भी  ख़ुशियों  पे  फ़िदा  होता है
ये ऐसी क़ैद है जिसमे रिहाई हो नहीं सकती।

कुछ तज़ुर्बे ने बचाया, और  मालिक  का रहम।
दोस्तों की थी इनायत, टूट कर  सम्हले हैं  हम।

मचाओ धूम,हर दिल में मुकाम  हो जाए !
उठे  कदम  तो  बुलंदी  तुम्हे  सलाम करे!!

माँ के हाँथों की रोटियों में बड़ी लज्ज़त थी
किसी निवाले में अब  वह मज़ा नहीं आता!

परायी  पीर  देख  कर  जो  मुस्कराते हैं
ग़म सताता है तो बेबस से नजर आते हैं

बुझ चुकी है आग फिर भी उठ रहा  है अब धुआँ
कुछ  छिपी  चिनगारियों  को  भी बुझाना चाहिए

पीर जब दिल की  उभर कर  शायरी में आएगी
एक  संजीदा  ग़ज़ल    तहरीर  में  ढल  जाएगी


हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'

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लगादी   जिंदगी  अपनी
नया घर  आ  बसाने  में
जिये औलाद की ख़ातिर
उन्हें  काबिल  बनाने  में

कहूँ  क्या  पीर  दिल  का
अब बुजुर्गों  का जमाने मे
किया  लख्त ए ज़िगर  ने
आज  बेघर आशियाने में

अनिल कुमार 'राही'

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  ग़ज़ल

ज़मी से आसमाँ तक आ गए हैं,
कहाँ थे हम कहाँ तक आ गए हैं।

हज़ारों कोशिशों के बाद अब हम,
तुम्हारी दास्ताँ तक आ गए हैं।

रुके थे तब बदन ओढे हुए थे,
चले तो जिस्मो-जाँ तक आ गए हैं।

समंदर पार से उड़ कर परिंदे,
हमारे आशियाँ तक आ गए है।

जिन्हें पाला था मिल कर दुश्मनों ने,
वो शिक़वे भी ज़ुबाँ तक आ गए हैं।

किसी तितली से वादा कर लिया था,
बहारों से  ख़िजाँ तक आ गए हैं

जहाँ मिलना हमारा तय हुआ था,
बिछड़ कर भी वहाँ तक आ गए हैं।
                  -सुरेन्द्र चतुर्वेदी

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ग़ज़ल


आस्ताने पे मारा गया ,
मैं ठिकाने पे मारा गया.

दिल दिखाना अलग बात थी ,
दिल लगाने पे मारा गया.

सर कटाने पे ज़िंदा रहा ,
सर झुकाने पे मारा गया .

था तो मयकश नहीं मैं मगर,
डगमगाने पे मारा गया.

मिल गयी आड़ तुम बच गए ,
मैं निशाने पे मारा गया.

कर लिया था यकीं जिस पे वो,
आज़माने पे मारा गया.

मैं था ज़िंदा भटकते हुए,
घर बसाने पे मारा गया.

उसके इल्ज़ाम सहते हुए,
एक ताने पे मारा  गया..

                -सुरेन्द्र चतुर्वेदी

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Shayari Saagar

मशहूर दिलकश हर रंग की शायरी

दोस्तों,  सजा कर  शायरी की इक नई सौगात  लाया  हूॅ॑ खुशी और ग़म के सारे रंग और हालात लाया हूॅ॑ किताब ए जिंदगी  से पेश हैं...