दोस्तों!
कोई भी ग़ज़ल और उसके शेर जब लिखे जाते हैं तो उनके सही रूप में लय बद्ध होने के लिए उनका सही बह्र में होना बहुत जरूरी है। बह्र का मतलब सही छंद बद्ध मात्राओं के अनुसार होना। किसी भी गजल के शेर को लिखते समय एक निश्चित मीटर में लिखना होता है ताकि उसकी लय सही रहे।
हिंदी भाषा में दोहे लिखने के लिए पहले और तृतीय चरण में 13,13 और द्वितीय और चौथे चरण में 11,11 मात्राओं का होना परम् आवश्यक है। इसी तरह चौपाई में 16,16 मात्राएँ होती हैं।
इसी प्रकार से शायरी , ग़ज़ल में भी मात्राओं का आधार होता है। इन्हें बह्र कहते हैं। मात्राओं को वज्न के अनुसार देखा जाता है।
दोस्तों,हिंदी में अ,आ से लेकर अं अ: तक और क, ख से लेकर.... ज्ञ तक क्रमशः स्वर और व्यंजन हैं यह सभी जानते हैं।
स्वर किसी अक्षर से मिलकर मात्रा बनाते हैं। इस तरह संगीत में 2 मात्राएँ लघु और गुरु(छोटी और बड़ी) होती हैं।
इन्हें l और S के द्वारा चिन्हित किया जाता है।
उदाहरण के तौर पर नीचे एक शब्द लिख रहा हूँ।
l S l
कमाल
1 2 1
यह शब्द "कमाल" जिसमे क की 1 मात्रा मा की 2 मात्रा और ल की भी 1 मात्रा मानी जायेगी।
यह जान लीजिए कि जिस अक्षर में आ,ई,ऊ,ए, ऐ,ओ,औ, अं और अ: की मात्रा लग जाये वह 2 मात्रा के माने जाएँगे। इस तरह जिस अक्षर के उच्चारण(बोलने) में अधिक समय लगे वह गुरु अर्थात 2 मात्रा का हो जाएगा।
जैसे का,की,कू,के, कै,कं, क:
दोस्तों, ग़ज़ल और शायरी में अ: की मात्रा नहीं आती।
उर्दू में प्रचलित 32 बहरें मानी जाती हैं। इसीलिए जो लोग सही लय और कहन में शेर लिखते हैं तो उनकी शायरी में बह्र की गलती नहीं होती। उनके मिसरे(पंक्तियाँ) किसी न किसी बह्र में होती ही हैं।
दोस्तों, बह्र की विस्तृत जानकारी श्री नवीन चतुर्वेदी--ग़ज़ल की प्रचलित 32 बहरें के ब्लॉग से आपको मिल जाएगी।
यहाँ मैं अपनी ग़ज़ल के एक मतले के द्वारा आपको बह्र के अनुसार मात्राओं को गिनने का तरीका समझाता हूँ।
2 1 2 2 2 1 2 2 2 1 2 2 2 1 2
गीत के सुर को सजा दे साज ऐसा चाहिए
दिल तलक पहुँचे सदा अल्फाज़ ऐसा चाहिए
गी 2
त 1
के 2
सुर 2 (1+1)
इसी तरह से आप सारी मात्राएँ गिन सकते हैं।
इस प्रकार इस ग़ज़ल की बह्र 2122,2122,2122 और 212 मात्रा के अनुसार है। इसे एक प्रकार की बह्र फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फाइलून कहते हैं।
दोस्तों, जिस शब्द में आधा अक्षर हो उसे भी मात्रा के स्वरूप में 1 मात्रिक गिना जाता है।
जैसे अक्ल ,महात्मा में क् और त् अर्धाक्षर हैं जिन्हें 1 मात्रा माना जायेगा। इसी प्रकार सर्दी में दी के ऊपरवाले र को भी 1 मात्रा माना जायेगा। अगर यह बिंदी किसी दूसरी मात्र मात्रा के साथ हो जैसे-- हैं तो अलग मात्रा न मानकर इसे 2 मात्रा ही मानेंगे।
कंगन ,मंजन मे क और म के ऊपर की बिंदी को 1-1 मात्रिक माना जायेगा। इसलिए कं और मं को 2-2 मात्रिक समझेंगे।लेकिन चन्द्रबिंदी जैसे सँवरना में स के ऊपर है उसे मात्रा के रूप में नहीं गिना जाता है।
मेरा एक शेर है उसकी मात्राएँ देखिए।
1 2 2 2 1 2 2 2
बिखर कर जो सँवरते है
वही कुछ कर गुजरते हैं
2 1 2 2 2 1 2 2 2 1 2 2 2 1 2
पीर जब दिल की उभर कर शायरी में आयगी
एक संजीदा ग़ज़ल तहरीर में ढल जायगी
यह अलग बह्र --फ़ाइलातुन मसतफ़इलुन फ़ाइलातुन
के अनुसार बन गई।
2 1 2 2 2 1 2 2 2 1 2 2 2
खल गया मुझको कभी तकदीर का सोना
आज खुश हूँ मिल गया तकदीर का सोना
2 1 2 2. 2 1 2 2. 2 1 2 2. 2 1 2
कोशिशें हर बार सब नाकाम तूफाँ की हुई
करम मालिक का समुंदर यार मेरा बन गया
हरिशंकर पाण्डेय
दोस्तों, मैंने कई शेर लिखे,फेसबुक,वाट्सअप पर पोस्ट किए और महफ़िल में भी सुनाये। मेरे कुछ पसंदीदा शेर आपकी ख़िदमत में पेश कर रहा हूँ। आशा है आप को पसंद आयेंगे।
जब तलक सोती रही वो,
नींद मुझसे दूर थी
जग गई तकदीर जिस दिन
ख़ूब सोया रात भर
किसी नेकी के बदले गर बदी मिल जाय दुनिया में
न हों मायूस वह मालिक सदा इंसाफ करता है
बड़ी नासाज़ थी तबियत उन्होंने हाल भर पूँछा
रफ़ूचक्कर हुआ सब मर्ज़ उनके मुस्कराने से
अदब से सर झुकाना भी बुजुर्गों से ही सीखा है
अगर कश्ती हो तूफाँ में किनारा चूम लेती है
परायी पीर को जो देख मुस्कराते हैं
ज़ख्म खाकर बड़े बेज़ार नजर आते हैं
बेज़ार हो गए थे ग़म-ए-ज़िन्दगी से हम
नजर ए करम ने आपके जीना सिखा दिया
वे मेरे मौत का सामान अपने साथ रखते हैं
मगर मिलते ही मेरे सर पे अपना हाँथ रखते हैं
मिल गई हमको बुलन्दी , दूर उनसे हो गए
जीत कर हर एक बाजी हमने सब कुछ खो दिया
सुनहरे पल वो खुशियों के कहाँ अब लौटने वाले
मगर नादान दिल ने आस का दामन नहीं छोड़ा
मुझे रुसवा करो बेशक़ यहाँ सारे जमाने में
मगर इल्ज़ाम तुम पर भी न आ जाये फ़साने में
कड़े मौसम कठिन हालात में उसको जवाँ देखा
वफ़ा वो फूल है जिसकी कभी खुशबू नहीं जाती
मेरी ख्वाहिश का वो चमन नहीं मिला फिर भी,
मेरे ख़्वाबों के रगो में बड़ी रवानी है
दर्द देने वाले दवा दे रहे हैं
जीने की मुझको दुआ दे रहे हैं
मोहब्बत को इबादत की तरह जो याद रखते हैं
खुदा की रहमतों से वे सदा आबाद रहते हैं
कभी मजबूरियाँ भी रोकती हैं पेशकदमी से
मगर जो प्यार सच्चा है वो हरगिज़ मर नहीं सकता
इश्क़ में दर्द भी खुशियों पे फ़िदा होता है
ये ऐसी कैद है जिसमे रिहाई हो नहीं सकती।
कुछ तज़ुर्बे ने बचाया, और मालिक का रहम
दोस्तों की थी इनायत ,टूट कर सम्हले हैं हम
मचाओ धूम, हर दिल में मुकाम हो जाये
बढ़े कदम तो बुलंदी तुम्हे सलाम करे!
माँ के हाँथों की रोटियों में बड़ी लज्ज़त थी
किसी निवाले में अब वह मज़ा नहीं आता
पराई पीर देख कर जो मुस्कराते हैं
ग़म सताता है तो बेबस से नजर आते हैं
इस कदर बेहाल जब धरती तपन से हो गई
आह तब निकली फ़लक को भी रहम आ ही गया
हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'
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मेरे एक अजीज़ दोस्त और उभरते हुए शायर श्री अनिल कुमार राही का लाज़वाब मुक्तक पेश कर रहा हूँ----
लगादी जिंदगी अपनी
नया घर एक बसाने में
जिये औलाद की ख़ातिर
उन्हें काबिल बनाने में
कहूँ क्या पीर दिल की
अब बुजुर्गों की जमाने मे
किया लख्त ए ज़िगर ने
आज बेघर आशियाने में
अनिल कुमार 'राही'
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बुजुर्गों की दुआ अपना असर हरदम दिखाती है
हुनर जीने का हमको जिंदगी में भी सिखाती है
अदब से सर झुकाना भी बुजुर्गों से ही सीखा है
अगर तूफाँ में कश्ती हो किनारा पा ही जाती है
हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'
दोस्तों,ग़ज़ल ,मुक्तक और शेर पढ़ते रहिये,सुनते रहिये। साथ ही साथ लिखते रहिये ,सुनाते रहिये।
कोई शंका हो तो कमेंट में जरूर लिखिए।
अगली बार कुछ और जानकारी के साथ हाज़िर रहूँगा।
हरिशंकर पाण्डेय --9967690881
hppandey59@gmail.com