माॅ॑ पर खूबसूरत शायरी
माॅ॑ के चरणों में रख अपना सर देखिए
छू के जन्नत को आला असर देखिए
हरिशंकर पाण्डेय "सुमित"
तू खैरियत न पूछ मेरी सुन ये लाड़ले
बस दिन में एक बार अपना हाल सुना दे
माॅ॑ मांगती नहीं कुछ औलाद से कभी
बस उसकी खैरियत की तलबगार रही है
सुमित
ख़ुदा का ही करिश्मा है इनायत है जो माॅ॑ दे दी
मिला अनमोल यह रिश्ता हमें जन्नत अता कर दी
हरिशंकर पाण्डेय "सुमित"
माॅ॑ से बड़ा जग में रिश्ता नहीं है
पिता जैसा कोई फरिश्ता नहीं है
हरिशंकर पाण्डेय
शायरी इश्क़ की हो दाद तो मिल जाती है
ज़िक्र माॅ॑ का हो बात दिल में उतर जाती है
हरिशंकर पाण्डेय "सुमित"
बची थी आखरी रोटी खिला दी लाड़ले को ही
किसी भी हाल में माॅ॑ लाल को भूखा नहीं रखती
हरिशंकर पाण्डेय
माॅ॑ के हाथों की रोटियों में बड़ी लज्जत थी
किसी निवाले में अब वह मज़ा नहीं आता
" सुमित"
माता-पिता बुजुर्ग से हर घर की शान है
सम्मान उनका राम की पूजा समान है
हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'
जितना भी लिखें कम है अब उसकी शान में
माॅ॑ के समान कोई नहीं इस जहान में
हरिशंकर पाण्डेय
माता-पिता बुजुर्ग से हर घर की शान है
सम्मान उनका राम की पूजा समान है
हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'
जितना भी लिखें कम है अब उसकी शान में
माॅ॑ के समान कोई नहीं इस जहान में
हरिशंकर पाण्डेय
वह माॅ॑गती है सब कुछ औलाद के लिए
खुद के लिए उसकी कोई मन्नत नहीं होती
बच्चों को पालती है ममता की छाॅ॑व में
माॅ॑ से बड़ी जहान में ज़न्नत नहीं होती
हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'
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