शुभ दिवस मित्रों 🌹🌹
क़ुरान ए पाक़ की आयत़ ये गीता ज्ञान है भारत,
सबाब ए नेक कर्मों का मिला वरदान है भारत,
भजन मंदिर के मेरे हैं अजान ए मस्जिदें मेरी,
जिसे जो चाहे वो समझे मेरी तो जान है भारत,
मुहब्बत ही धरम अपना दिवारें मजहबी तोडो,
अहिंसा, शांति की सदभावना, ईमान है भारत,
बचा कर दोस्तों रखना,इसे जालिम लुटेरों से,
हजारों लाडलों का ये अमर बलिदान है भारत
शहर की झिलमिलाती रोशनी में ढूँढते हो क्या,
अंधेरी गाँव की गलियाँ, भरा खलिहान है भारत
अगर धृतराष्ट्र हो अंधा,तो खिंचता चीर नारी का,
इन्हीं दुःस्सानों से आजकल हलकान है भारत,
दुआ है रब से "मीरा" की, रहे आबाद ये गुलशन,
ये वंदे मातरम,जन मन का सुन्दर गान है भारत,
©कश्मीरा त्रिपाठी,
10/8/2018
*******************************
हवा जब रहनुमा थी लौ मचल कर झूम जाती थी
बनी तूफ़ान अब हॅ॑सते चिरागों को रुलाया है
हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'
दोस्तों, कुछ पुरानी यादें ताज़ा हो गईं। चंद शेर आपके हवाले------
बचपन की यादों से जोड़ने वाला एक शेर नजर है---
अब ख़ुशी को तलाशते हैं तो पा जाते है ग़म
बचपन में खाली जेब से, खुशियाँ खरीदते थे हम
दो शेर उल्फ़त.......
जिनकी उल्फ़त में इबादत की महक होती है
उनकी नफ़रत में सलीके की झलक होती है
उनके नायाब एहसास की इक महक
सांस के साथ दिल में समाने लगी
दर्दे दिल को तजुर्बा नया मिल गया
धड़कनें खिल गई मुस्कुराने लगी
एक शेर दुश्मनी से.....
वो जब मिलते हैं मेरे सर पे अपना हाँथ रखते हैं
एक शेर इज़हार ए प्यार ......
गुंजाइश ए इकरार हो फिर दिल निसार कर देना
उनकी नज़र को पढ़ के इजहार ए प्यार कर देना
हटा कर बदगुमानी को हमें रिश्ता निभाना है
महकते गुल खिलाकर इक नया गुलशन सजाना है
रगों की रवानी..........
मेरी ख्वाहिश का वो चमन नहीं मिला फिरभी,
मेरे ख़्वाबों के रगो में बड़ी रवानी है
पहचान
मिलो सबसे मगर अपनी कभी पहचान मत खोना
वजूद अपना नदी मिल कर समंदर से गवाँती है
चलना बहुत संभल के..
चालों से शातिरों की रहना बहुत संभल के
मिलते हैं राह में ये चेहरे बदल बदल के
अजब सी कशमकश की इक गजब तस्बीर सी उभरी
कलम ने ग़म की स्याही से लिखी जब दास्तां मेरी
हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'
उनके नायाब एहसास की इक महक
सांस के साथ दिल में समाने लगी
दर्दे दिल को तजुर्बा नया मिल गया
धड़कनें खिल गई मुस्कुराने लगी
हरिशंकर पांडेय "सुमित"
अगर है हौसले में जान तो अरमान जिंदा है
जहाॅ॑ ईमान जिंदा है वहीं इंसान जिंदा है
हरिशंकर पाण्डेय "सुमित"
बने थे हमसफ़र हम और दिल से आशनाई की
ख़ता हमसे हुई क्या वक्त ने फिर बेवफ़ाई की
हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'
न कोई हमसफ़र होगा न कोई कारवां होगा
विदा जब होंगे तन्हा हम न कोई पासबाॅ॑ होगा
फना होंगे 'सुमित' फिर भी रहेगी रूह ये कायम
न जाने कौन सा फिर जिस्म इसका आशियां होगा
पासबाॅ॑--रक्षक
हरिशंकर पाण्डेय "सुमित"
********************************
एक ग़ज़ल
लफ़्ज़ों के ये नगीने तो निकले कमाल के
ग़ज़लों ने ख़ुद पहन लिए ज़ेवर ख़याल के
ऐसा न हो गुनाह की दलदल में जा फँसूँ
ऐ मेरी आरज़ू मुझे ले चल सँभाल के
पिछले जनम की गाढ़ी कमाई है ज़िंदगी
सौदा जो करना करना बहुत देख-भाल के
मौसम हैं दो ही इश्क़ के सूरत कोई भी हो
हैं इस के पास आइने हिज्र-ओ-विसाल के
अब क्या है अर्थ-हीन सी पुस्तक है ज़िंदगी
जीवन से ले गया वो कई दिन निकाल के
यूँ ज़िंदगी से कटता रहा जुड़ता भी रहा
बच्चा खिलाए जैसे कोई माँ उछाल के
ये ताज ये अजंता एलोरा के शाहकार
अफ़्साने लग रहे हैं उरूज-ओ-ज़वाल के
कृष्ण बिहारी "नूर"।
**********************************
नमस्कार दोस्तों 🌹🙏🌹
एक ग़ज़ल, इस्लाह निवेदित,
वजन,,, २१२२...१२१२.....२२.
धार ए नदिया में जो रवानी है,
हौसलों की यही निशानी है,
आज फिर आँख में जो पानी है
मेरे अपनों की मेहरबानी है
पाँव में छाले आँख में मंजिल,
जीस्त बस दर्द की कहानी है
ढायेगी फिर से ये सितम कोई,
आज रुत फिर हुई सुहानी है
हो रहा दर्द अभी तक इसमें
चोट वैसे तो ये पुरानी है
रोशनी से नहा उठी है फिजा,
आज किसकी बरात आनी है
आँधियों के दिलों की चौखट पर,
इक शम्आ हमको भी जलानी है
जो ये तुमसे हुई हमें उल्फत,
आखिरी साँस तक निभानी है
धुल गई आँसूओं की बारिश में,
फिर से तस्वीर वो बनानी है
होंठ खामोश आँख है पुरनम,
क्या कोई दास्ताँ सुनानी है?
उनकी आँखों में जो नमीं देखी,
हो गई रूह पानी-पानी है
कुछ तो तुमको गुरूर होगा था,
जो ये "मीरा"तेरी दिवानी है
कश्मीरा त्रिपाठी
******************"********************
एक ग़ज़ल,
दिलों में उतरने को जी चाहता है,
गज़ल सा सँवरने को जी चाहता है,
तरसती हैं बाहें,जुदाई में उनकी,
घटा सा बरसने को जी चाहता है,
सताता है हर पल तसव्वुर तुम्हारा
सितमग़र पे मरने को जी चाहता है
मेरी जिंदगी के मधुर साज हो तुम,
तुम्हें रोज सुनने को जी चाहता है
ये मौसम के मदमस्त रंगी इशारे,
इन्हीं में फिसलने को जी चाहता है,
सुनाते हैं हम राजे दिल बेखुदी में,
कहके मुकरने को जी चाहता है,
अभी बंद है जिस्म में रुह ए "मीरा"
फिजाँ में बिखरने को जी चाहता है,
© कश्मीरा त्रिपाठी "मीरा"
**************************************"
अंदाज ऐसा चाहिए
गीत के सुर को सजा दे , साज ऐसा चाहिए l
रुख हवा का मोड़ दे, "अंदाज" ऐसा चाहिए l
जिसमें हो जिंदादिली,ऐसा अलग किरदार हो ,
नाज़ हो अंजाम को, "आगाज़" ऐसा चाहिए l
जंग के हैं शूरमा इस हिन्द के शेर -ए -वतन ,
वीरता भी है फिदा , "ज़ांबाज " ऐसा चाहिए l
कुछ छिपायें कुछ बतायें, फितरत -ए -इंसान की,
जब खुले खुशियाँ बिखेरे , "राज " ऐसा चाहिए l
हर इमारत की बुलन्दी है टिकी बुनियाद पर,
कल जो छूले आसमाँ को "आज" ऐसा चाहिए l
हरिशंकर पाण्डेय "सुमित"
***************************************
ग़ज़ल
हो रहा था ख़ूब जिसका तज़किरा
आख़िरश आ ही गया वो फ़ैसला
आप सब शाइस्तगी मत छोड़िए
नस्ल-ए-नौ को है यही बस मश्वरा
कर लिया ये फ़ैसला हँस कर क़ुबूल
हर वतन वासी का बेहद शुक्रिया
देख कर ये आपकी दानिश-वरी
ख़ुश यक़ीनन हो रहा होगा ख़ुदा
आइए आपस में सुख-दुख बाँट लें
है यही तो ज़िंदगी का फ़लसफ़ा
ले चलें ऊँचाइयों पर मुल्क को
साथ मिलकर तय करें हर फ़ासला
भरत दीप
***********************************
1212 1122 1212 22/112
न पूछिये कि वो कितना सँभल के देखते हैं ।
शरीफ़ लोग मुखौटे बदल के देखते हैं ।।
अज़ीब तिश्नगी है अब खुदा ही खैर करे ।
नियत से आप भी अक्सर फिसल के देखते हैं ।।
पहुँच रही है मुहब्बत की दास्ताँ उन तक ।
हर एक शेर जो मेरी ग़ज़ल के देखते हैं ।।
ज़नाब कुछ तो शरारत नज़र ये करती है ।
यूँ बेसबब ही नहीं वो मचल के देखते हैं ।।
गुलों का रंग इन्हें किस तरह मयस्सर हो ।
ये बागवान तो कलियां मसल के देखते हैं ।।
ज़मीर बेच के जिंदा मिले हैं लोग बहुत ।
तुम्हारे शह्र में जब भी टहल के देखते है ।।
न जाने क्या हुआ जो बेरुख़ी सलामत है ।
हम उनके दिल के जरा पास चल के देखते हैं ।।
ये इश्क़ क्या है बता देंगे तुझको परवाने ।
जो शम्मा के लिए हर शाम जल के देखते हैं ।।
हुआ है हक़ पे बहुत जोर का ये हंगामा ।
गरीब क्यूँ यहाँ सपने महल के देखते हैं ।।
बचाएं दिल को सियासत की साज़िशों से अब ।
ये लीडरान मुहब्बत कुचल के देखते हैं ।।
वही गए हैं बुलंदी तलक यहां यारो ।
जो अपने वक्त के सांचे में ढल के देखते हैं ।।
-नवीन मणि त्रिपाठी
************************************
ग़ज़ल
एक अहसास मुहब्बत का जगाने निकले
ग़ैर तो ग़ैर थे अपने भी सयाने निकले
एक रिश्ता भी बनाया तो ज़माने निकले
बेसबब तर्क़ किया कितने बहाने निकले
चंद लमहात की पहचान के माने निकले
उनके हमराह सफ़र करके ज़माने निकले
एक लमहे से ख़ता होने का सदमा गुज़रा
एक मुद्दत को सज़ायाब ज़माने निकले
एक अफ़वाह का बाज़ार गरम था बाहर
लोग निकले भी घरों से तो डराने निकले
बेयक़ीनी का असर होनेकी उम्मीद न थी
और ख़ुद से भी कई राज़ छुपाने निकले
एक मुद्दत में मुलाक़ात का मौसम बदला
रूबरू होके गिले- शिकवे पुराने निकाले
बेवफ़ाई का सबब जो भी रहा वो जानें
उनके किरदार में पोशीदा फ़साने निकले
ऐसे मक़्तब हैं यही नाम लिखा था उनपर
जाँच करने पै ,गुनाहों के ठिकाने निकले
किशन स्वरूप
*****************************
बनो तो ऐसे कि तुम पर हर इक निगाह रहे
करो कुछ ऐसा कि दुश्मन भी वाह-वाह कहे
हरिशंकर पाण्डेय "सुमित"
हम इश्क़ के मारों का इतना ही फ़साना है
रोने को नहीं कोई हँसने को ज़माना है
ज़िगर मुरादाबादी
सबूतों और गवाहों की नहीं उनको ज़रूरत है
प्रभू की उस अदालत में खरा इंसाफ़ होता है
हरिशंकर पाण्डेय "सुमित"
************************************
मेरे परम् मित्र शायर श्री अनिल कुमा राही की कलम से
ताजा तरीन शेर-----
शबे-ग़म जब कहीं कोई उजाला हो नहीं पाया
दिया बनकर जला तब साथ मेरे हौसला मेरा
गुलों को चाहने वालों बहारों से करो यारी
मगर मत भूलना काँटों की है सच्ची वफ़ादारी
(अनिल कुमार राही)
***********************************
★ एक ग़ज़ल ★
अलावा मौत के , उस वक़्त भी वो शख़्श मरता है।
कभी जब टूटके मासूम - सा सपना बिखरता है।
जहाँ पर ' वाह ' का मौसम वहाँ वो ' आह ' भरता है।
कहीं तो दर्द है कोई जो रह - रहकर उभरता है ।
गवाही क्या , यहाँ तो बस किराए की ज़बानें हैं ,
बड़ी मुश्किल से कोई बात पर अपनी ठहरता है ।
पिता को बोझ लगती है बड़ी ही लाडली बेटी ,
गरीबी की बहुत पतली गली से जब गुज़रता है ।
कमी हो , बेबसी हो या निराशा के अँधेरे हों ,
वही इन्सान है जो ठोकरें खाकर सुधरता है ।
जुड़ी थी ज़िन्दगी से जो तुम्हारे नाम की चिट्ठी ,
उसे अब बे - मुरव्वत वक़्त का चूहा कुतरता है।
ख़ुशी उसकी ज़माने भर की ख़ुशियों से बड़ी होती ,
पिता की ख़्वाहिशों पर जब खरा बेटा उतरता है।
★ कमल किशोर ' भावुक ' ★
7007298155
**********************************
एक ग़ज़ल - संदेश
मिलेगा मर्तबा , हस्ती को बचाये रखना !
सफर के वास्ते, कश्ती को सजाये रखना !
कहीं तूफाँ तुम्हारा रास्ता क्या रोकेगा ,
अपनी यारी यूँ समुन्दर से बनाये रखना !
जतन से ध्यान से रिश्तों को सम्हाले रखना,
गुलों से प्यार के गुलशन को सजाये रखना!
बड़ी है अहमियत , किरदार की यकीं मानो,
बड़ा अजीज है , हर वक़्त निभाये रखना !
हुनर सफर में बुलंदी तलाश ले फिर भी ,
रहे गरूर ना नजरों को झुकाये रखना !
भले हो सामना हर बार इम्तिहाँ से सुनो ,
अपनी तालीम को जेहन में बसाये रखना !
वतन की मिट्टी के अनमोल नगीने बनकर ,
इसकी तहजीब और शोहरत को उठाये रखना !
#हरिशंकर पाण्डेय'सुमित'
****************************************
( यह नज़्म मरहुंम शम्श मिनाई साहब ने लगभग 50 साल पहले कही थी जो आज भी ताज़ी लगती है)
"राम"
---------
मैं राम पर लिखूँ मेरी हिम्मत कहीं है कुछ
तुल्सी ने बाल्मीक ने छोड़ा नहीं है कुछ
फिर ऐसा कोई खास कलमवर नहीं हूँ मैं
लेकिन वतन की खाक से बाहर नहीं हूँ मैं
कोई पयामे हक़ हो वो सब है मेरे लिए
दुनिया का हर बुलंद अदब है मेरे लिए
वो राम जिसका नाम है जादू लिए हुए
लीला है जिसकी ओम की खुशबु लिए हुए
अवतार बन के आई थी ग़ैरत शबाब की
भारत में सबसे पहली किरन इन्क़िलाब की
हर गाम जिसका सच का फरेरा ही बन गया
बनबास ज़िंदगी का सवेरा ही बन गया
एक तर्ज़ एक बात है हर खास-ओ-आम से
मिलते हैं कैसे कैसे सबक हमको राम से
ऊँचा उठे तो फ़र्क़ न लाये शऊर में
कोई बढ़े न हद से ज़्यादा ग़ुरूर में
जंगल में भी खिला तो रही फूल में महक
गुदड़ी में रह के लाल की जाती नहीं चमक
दिल से कभी ये प्यार निकाला न जायेगा
माँ बाप का ख्याल भी टाला न जाएगा
बेटा वही जो बाप का फरमान मान ले
शौहर वही जो लाज पे मरने की ठान ले
और बाप वो जो बेटों को लव-कुश बना सके
उनको जगत में जीने के सब गुन सिखा सके
भाई जो चाहे भाई को तलवार की तरह
जरनल जो रखे फ़ौज को परिवार की तरह
राजा वही ग़रीब से इंसाफ कर सके
दलदल से जातपात की हर दम उभर सके
जो वर्ण भेदभाव के चक्कर को तोड़ दे
शबरी के बेर खा के ज़माने को मोड़ दे
इंसान हक़ की राह में हर दम जमा रहे
यह बात फिर फ़ुज़ूल है लश्कर बड़ा रहे
ईमान हो तो सोने का अंबार कुछ नहीं
हो आत्मबल तो लोहे के हथियार कुछ नहीं
रावण की मैंने माना कि हस्ती नहीं रही
रावण का कारोबार है फैला हुआ अभी
छाया है हर सिम्त जो अँधेरा घना हुआ
हिंदुस्तान आज है लंका बना हुआ
वो ज़ुल्म से डरे जो उपासक हो राम का
सोने पे जान दे जो उपासक हो राम का
वो राम जिसने ज़ुल्म की बुनियाद ढाई थी
जिसके भगत ने सोने की लंका जलाई थी
हर आदमी ये सोचे जो होश-ओ -हवास है
वो राम से क़रीब है कि रावण के पास है
लोगों को राम से जो मोहब्बत है आजकल
पूजा नहीं अमल की ज़रूरत है आजकल
शम्श मिनाई
******************************************
221 1221 1221 122
दरिया में उतर आए मियां जुल्म के डर से ।
पानी न गुज़र जाए कहीं आपके सर से ।।
लगता है मेरे गांव में जुमलों का असर है ।।
भटके मिले कुछ लोग शराफ़त की डगर से ।।
कातिल हुई है भीड़ यहां मुद्दतों के बाद ।
निकलो न अकेले ही कहीं रात में घर से ।।
खामोशियों के साथ सहा दर्दे सितम जो ।
गिर जाएगा वो शख्स ज़माने की नज़र से ।।
ता उम्र मुसीबत से लड़ा आदमी है जो ।
तौला उसे ही जायेगा दुनिया में गुहर से ।।
हर शय का जहाँ आखिरी अंजाम क़ज़ा है ।
जीना है अगर जी तू वहाँ अपने हुनर से ।।
इन घोसलों पे किसकी नजर लग चुकी है अब ।
पूछा है परिंदों ने यही राज़ शजर से ।।
रोये वही हैं लोग मेरे हाल पे साकी ।
मतलब नहीं था जिनको मेरी खोज खबर से ।।
जब से गयी है लौट के आई नहीं है वो ।
क्या कह दिया साहिल ने मुहब्बत में लहर से ।।
- नवीन मणि त्रिपाठी
************************************
एक शेर
भँवर तूफान से कश्ती को बचाना होगा
कठिन सफऱ है मगर पार तो जाना होगा
हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'
*****************************************
क्या हाल था हमारा उस उम्रे -बेख़ुदी में
किस किसका नाम लेते,दुश्मन थे दोस्ती में
जीने को एक मुद्दत, मरने को एक लमहा
ये कैसी रहगुज़र है चलने को ज़िन्दगी में
हम भी हमारी सूरत पहचान, काश लेते
सूरत बदल के रख दी इस उम्र कलमुंही में
किस किसका नाम लेते किस किसने साथ छोड़ा
अब रह गये अकेले इस दौरे-मुफलिसी में
उम्मीद तो नहीं थी आसान मुश्किलों की
हम पागये हैं मंज़िल रहज़न की रहबरी में
हमको हमारी सूरत अब याद तक नहीं है
कटता है वक़्त जब से दर्पण से दुश्मनी में
उम्मीद तो बहुत थी, लेकिन यक़ीन कम है
अपना भी नाम होगा क़िस्मत की डायरी में
तासीर भी अजब है जलते हुए दिये की
वो मुब्तला रहा है जलकर; भी रोशनी में
स्वरूप
*******************************
*** ग़ज़ल***
122 122 122 122
न जाने किधर जा रही ये डगर है ।
सुना है मुहब्बत का लम्बा सफ़र है ।।
तेरी चाहतों का हुआ ये असर है ।
झुकी बाद मुद्दत के उनकी नज़र है ।।
नहीं यूँ ही दीवाने आए हरम तक ।
इशारा तेरा भी हुआ मुख़्तसर है ।।
यहाँ राज़े दिल मत सुनाओ किसी को ।
ज़माना कहाँ रह गया मोतबर है ।।
है साहिल से मिलने का उसका इरादा ।
उठी जो समंदर में ऊंची लहर है ।।
है मक़तल सा मंजर हटी जब से चिलमन ।
बड़ी क़ातिलाना तुम्हारी नज़र है ।।
बतातीं हैं बिस्तर की ये सिलवटें अब ।
तुम्हें नींद आती नहीं रात भर है ।।
वहीं बैठती है वो रंगीन तितली ।
गुलों के लबों पर तबस्सुम जिधर है ।।
सुना हुस्न वालों के ख़ामोश लब हैं ।
लिपिस्टिक की रंगत का जाने का डर है ।।
ये कोशिश है मेरी उसे भूल जाऊं ।
मगर याद आता वो शामो सहर है ।।
तमन्ना थी जिसको बसा लूं मैं दिल मे ।
मेरी आरजू से वही बेख़बर है ।।
मुलाक़ात जाइज़ कहेगी ये दुनिया ।
तेरे ही गली से मेरी रहगुज़र है ।।
मुख़्तसर - छोटा
मोतबर - विश्वसनीय
मक़तल - कत्ल का स्थान
तबस्सुम - मुस्कुराहट
सहर - सुबह
रहगुज़र - रास्ता
- नवीन मणि त्रिपाठी
****************************************
एक ताज़ातरीन ग़ज़ल आपके हवाले---------
ख़ुद किसी की याद में दिल को जलाकर देखिये,
और फिर उसके लिये जग को भुलाकर देखिये।
पुरसुकूं दिल को मिलेगा काम ये जो कर दिया,
रो रहा बच्चा कोई उसको हँसाकर देखिये।।।
उनकी शोहबत में मिलेगी आप को शोहरत ज़रूर,
बस किसी महफ़िल में उनको भी बुलाकर देखिये।
राह-ए-उल्फ़त में फक़त गुल ही नहीं काँटे भी हैं,
आज़माना हो,किसी से दिल लगाकर देखिये।।
आप को भी चाहने वाले मिलेंगे बेशुमार,
बस किसी के दर्द में आँसू बहाकर देखिये।
दूर रहकर दिलरुबा से चैन किसको है मिला,
है नहीं गर चे यकीं बस आज़माकर देखिये।
प्यार करने का अगर करते हैं दावा आप तो,
लाख मुश्किल हो तो क्या फिर भी निभाकर देखिये।
आप का ही तज़किरा होगा शहर में तरफ़,
इक किसी मज़लूम को अपना बनाकर देखिये।
उम्र भर "राही" दवावों से रहेंगे दूर आप,
सादगी से ज़िन्दगी अपनी बिताकर देखिये।
"राही" भोजपुरीं, जबलपुर मध्य प्रदेश ।
7987949078, 9893502414
****************************************
ताजातरीन ग़ज़ल
बरसात ने ज़मीं को भिगोया है रात भर,
किसको फिकर यहाँ फ़लक़ रोया है रात भर।
उस ख़ाब पे सुबह ने आ क़हर सा ढा दिया,
जिसको कि सितारों ने संजोया है रात भर!
हँसते हुए ग़मों से ..निभाई है दोस्ती,
ज़ज़्बात ने खुदी को पिरोया है रात भर।
अरमाँ निकल रहे हैं चश्मतर से बाक़दर
सैलाब ने ख़ुशी को डुबोया है रातभर।
हर शाम ने शमाँ को जलाया सुकून से,
जब चाँद बेबसी को ही रोया है रात भर।
गोपाल एस सिंघ
******************************************
मेरी ग़म से हुई यारी...........
बताना चाहता हूँ मैं
दिखाना चाहता हूँ मैं।
मेरी गम से हुई यारी
निभाना चाहता हूँ मैं।। 1
रहे कायम सदा रिश्ता
घराना चाहता हूँ मैं।।
गमों के इक शहर में घर
बनाना चाहता हूँ मैं।। 2
हुआ हैरान गम देखो 4
परेशां है जरा देखो।
इरादा हौसला मेरा
बढाना चाहता हूँ मैं।।
चलो वो बात हो जाये 3
सुलह अब चाहता हूँ मैं।
मुझे गम का खजाना दो
सजाना चाहता हूँ मैं।।
खुशी अब दूर से देखे 5
नजारा चाहता हूँ मैं।
बसा दिल में गमें खुश्बू
हँसाना चाहता हूँ मैं।।
(अनिल कुमार राही)
*****************************************
221 2121 1221 212
ता-उम्र रोशनी का सफ़र ढूढ़ता रहा ।
मैं तो सियाह शब में सहर ढूढ़ता रहा ।।
मुझको मेरा मुकाम मयस्सर हुआ कहाँ ।।
घर अपना तेरे दिल में उतर ढूढ़ता रहा ।।
रुसवाइयों के दौर से गुजरा हूँ इस तरह ।
बस एक इश्क़ वाली नज़र ढूढ़ता रहा ।।
तुमको अना के दौर में इतनी खबर नहीं ।
कोई तुम्हारे दिल की डगर ढूढ़ता रहा ।।
इन साहिलों को छू के गयी थी जो एक दिन ।
सागर की मैं वो उठती लहर ढूढ़ता रहा ।।
लूटा है कुर्सियों ने तेरे देश को मगर ।
अखबार में छपी ये ख़बर ढूढ़ता रहा ।।
अक्सर उसे मिली हैं ये नाकामियां कि जो ।
आसान रास्तों का सफ़र ढूँढता रहा ।।
शायद नहीं था इल्म जो तुमको समझ सकूँ ।
नादां था राख में जो शरर ढूढ़ता रहा ।।
सारा चमन लगा है बियाबां मुझे हुजूऱ ।
सहरा में मुद्दतों से बसर ढूढ़ता रहा ।।
नवीन मणि त्रिपाठी
*********************†*************
* एक ताज़ातरीन ग़ज़ल---------------
ये दुनिया मुझे आज़माने लगी है,
बुलंदी से नीचे गिराने लगी है।
कभी टूट कर प्यार मुझसे किया था,
मगर क्यों वो अब दूर जाने लगी है।।
खुले दिल से मिलते रहे थे मगर, वो,
कई राज़ दिल के छुपाने लगी है।।।।
नहीं देख पाती थी जो मेरे आँसू,
वो हर पल मुझे अब रुलाने लगी है।
लिपट कर जो साये से रहती थी हरदम,
वो मिलने से नज़रें चुराने लगी है।।
जिसे तीरगी रास आती नहीं थी,
चराग़ों को क्यों अब बुझाने लगी है।
बहुत साफ थे पैरहन जिसके "राही"
वो दामन में काँटे उगाने लगी है।।
"राही" भोजपुरीं,जबलपुर मध्य प्रदेश ।
7987949078, 9893502414 ।
******************************
पेश है एक ताज़ातरीन ग़ज़ल---------
आये जो आप घर मेरे मौसम बदल गया,
यह देख दुश्मनों का जनाजा निकल गया।
जो शक़ की निगाहों से मुझे देखते रहे,
उनको मेरे ही सामने कोई कुचल गया।
ग़ैरों की ख़ुशी देख के सदमें में जो रहा,
बेवक़्त मर के आख़िरस दुनिया से कल गया।
शोहरत भी उसके हाथ में आकर चली गई,
हाथी किसी ढलान से गोया फिसल गया।
सूरज भी था शबाब पर जलता रहा बदन,
ऐसी लगी वो आग नगर सारा जल गया।
उस ज़लज़ले के बाद का मंज़र तो देखिये,
सहरा जो जल रहा था कल दरिया में ढल गया।
चाहा न जिसको प्यार से मैंने कभी " राही "
उस नाज़नीं को देख के दिल क्यों फिसल गया।
"राही" भोजपुरीं, जबलपुर मध्य प्रदेश ।
7987949078, 9893502414
**************************************
ग़ज़ल जिंदगी की.......
खुशी के बुलबुले हैं कुछ, गमों का बोलबाला है
हँसी के हौसलों ने आज तक हमको सम्हाला है
कई उम्मीद के बादल यहाँ छा कर नहीं बरसे
जमीं सब आस की प्यासी पड़ा सूखे से पाला है
बहुत मजबूर है ईमान अब सुनता नहीं कोई
खड़ा है सच सरे महफ़िल मगर होठो पे ताला है
नहीं कोई बचा अबतक खुदा की उस अदालत से
खरा इंसाफ है उसका तरीका भी निराला है
करम के साथ ही अंजाम है नेकी बदी का भी
इसी दिल मे खुदा का घर यही मंदिर शिवाला है
हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'
-----------------------------------------------------
दिख जाए तेरा चेहरा...........
दिख जाये तेरा चेहरा शायद मुझे किसी में
दिन रात तुझको ढूंढू हर एक अजनबी में !!
आने लगा मज़ा अब इस दर्दे आशिकी में
रहने दो मुझको यारो तुम मेरी बेखुदी में !!
थर्राये जिससे दरिया डर जाये ये समुन्दर
शिद्दत हो काश् इतनी होठों की तश्नगी में !!
अरमान कत्ल खुद के खूने जिग़र खुदी का
करना पड़ा है मुझको क्या क्या न बेब़सी में !!
मिल जायेगी कंही तू बस ये ही सोचकर मैं
चलता ही जा रहा हूं अंधी सी इक गली में !!
काटे कटे न मुझसे ये हिज्र तेरा दिलबर
इक पल गुज़र रहा है सदियों की इक सदी में !!
सारा क़लाम साहिल उस पर ही कह दिया क्यूं
अपना भी जिक़्र कर कुछ इस शेरे आखिरी में !!
--------------------------------Sahil Rampuri
-------------------------------------------------------
पेश है एक नाज़ुक ग़ज़ल---
""""""""""""""""""""""""""""""""""
सुनो आज वादा निभाने का दिन है,
नई शाख पे गुल खिलाने का दिन है।
शब-ए-वस्ल में यूँ न शर्माओ जानम,
ये दिल खोलकर गुदगुदाने का दिन है।
जवां जोश में पाँव फिसले हों शायद,
उसे आज अब भूल जाने का दिन है।
जो ग़ज़लें क़िताबों में हैं क़ैद अब तक,
उन्है बज़्म में गुनगुनाने का दिन है।।
मोहब्बत के गौहर जो पाये हैं हमने,
उन्हें अपने दिल में छुपाने का दिन है।
मुकम्मल है कितनी मोहब्बत ये अपनी,
इसे आज ही आज़माने का दिन है।।
जहाँ तुम मिले थे डगर में अकेले,
वहीं"राही"घर इक बनाने का दिन है।
"राही" भोजपुरी,जबलपुर मध्य प्रदेश
7987949078,9893502414
💐💐💐💐💐ग़ज़ल💐💐💐💐💐
गीत के सुर को सजा दे , साज ऐसा चाहिए
दिल तलक पहुँचे सदा अल्फ़ाज़ ऐसा चाहिए
कुछ छिपायें कुछ बतायें, फितरतें इंसान की
जब खुले खुशियाँ बिखेरे , "राज " ऐसा चाहिए
राह खुद अपनी बनाये फिर सजाकर मंज़िलें
रुख हवा का मोड़ दे 'अंदाज़' ऐसा चाहिए
जीत ले हर एक बाज़ी हौसले के जोर से
नाज़ हो अंजाम को, "आगाज़" ऐसा चाहिए
जो हटे पीछे कभी ना, जंग में डटकर लड़े
वीरता भी हो फिदा , "ज़ांबाज " ऐसा चाहिए
हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'
**************ग़ज़ल*************
गम के साये से घिरे दर्द छिपाऊँ कैसे!
ज़ख्म सीने में दबा, तुमको रिझाऊँ कैसे!!
तुम्हारी हर वफा का मैं सिला न दे पाया
मेरे ही दर्द से , तुमको मैं मिलाऊँ कैसे !!
अश्क़ गमगीन हो पलकों में छिपे बैठे हैं,
छलक जायें न कहीं , सामने आऊँ कैसे !
तुम मेरा हाल भी नज़रों से भाँप लेती हो ,
एक चेहरे पर "नया चेहरा" लगाऊँ कैसे!!
मैंने सोचा था, बहुत दूर चला जाऊँ पर,
तुम न भूलोगी मुझे, मै भी भूलाऊँ कैसे!!
ये आरजू है मेरी, राह कुछ निकल आए,
एक खुशियों का चमन आज सजाऊँ कैसे!!
हरिशंकर पाण्डेय'सुमित'
--------------------------------------------------
एक ताज़ातरीन ग़ज़ल------
""""""""""""""""""""""""
ये चिलमन में चेहरा छुपाओ न ऐसे,
मिरे दिल की धड़कन बढ़ाओ न ऐसे।
तुम्हें भर नज़र देखना चाहता हूँ,
नज़र फेरकर अब सताओ न ऐसे।
यही मेरी चाहत है दिल में रहो तुम,
किसी और से दिल लगाओ न ऐसे।
जो उल्फ़त के दीपक जलाये थे मैंने,
हवा दे के उसको बुझाओ न ऐसे।।
सफ़र है कठिन दूर मंज़िल है अपनी,
सरे राह काँटे। बिछाओ न ऐसे।।
बहुत आज़माया है लोगों ने मुझको,
मुझे और तुम आज़माओ न ऐसे।।
मोहब्बत अगर तुमको मुझसे है "राही"
तो बाहें झटक करके जाओ न ऐसे।।
"राही" भोजपुरी, जबलपुर मध्य प्रदेश ।
7987949078, 9893502414
***************************************
नई गज़ल
यही सवाल अब .... उलझा, मेरे फसाने मे l
कम थी उल्फत..क्या मेरे दिल के आशियाने में !
गर खता थी कुछ हमारी तो बस बता देते ,
हम तो माहिर हैं, किसी भी तरह मनाने में ..!
उनकी यादें भी वफादार हैं , बसी दिल में,
कौन कहता है , वफ़ा है नहीं ज़माने में !
अब तो तूफान का भी खौफ नहीं है मुझको ,
दिये बुझा कर मैं बैठा गरीबखाने में ....
तुम्हारी रूठने की यह अदा बड़ी कातिल,
क्या मिलेगा तुम्हे ऐसे हमें सताने में ..
मगर यकीन है, दावा है, अपनी चाहत पर,
तुम्हारे हाँथ बढेंगे , दिये जलाने में ....
हरिशंकर पाण्डेय'सुमित'
----–-----------------------------------------------
नई ग़ज़ल
मिलेगा मर्तबा , हस्ती को बचाये रखना !
सफर के वास्ते, कश्ती को सजाये रखना !
कहीं तूफाँ तुम्हारा रास्ता क्या रोकेगा ,
अपनी यारी यूँ समुन्दर से बनाये रखना !
जतन से ध्यान से रिश्तों को सम्हाले रखना,
गुलों से प्यार के गुलशन को सजाये रखना!
बड़ी है अहमियत , किरदार की यकीं मानो,
बड़ा अजीज है , हर वक़्त निभाये रखना !
हुनर सफर में बुलंदी तलाश ले फिर भी ,
रहे गरूर ना नजरों को झुकाये रखना !
भले हो सामना हर बार इम्तिहाँ से सुनो ,
अपनी तालीम को जेहन में बसाये रखना !
वतन की मिट्टी के अनमोल नगीने बनकर ,
इसकी तहजीब और शोहरत को उठाये रखना !
हरिशंकर पाण्डेय'सुमित'
********************************
**ग़ज़ल**
गम के साये से घिरे, दर्द छिपाऊँ कैसे!
ज़ख्म सीने में दबा, तुमको रिझाऊँ कैसे!!
तुम्हारी ही वफा वाजिब , कसूर मेरा था ,
अपने इस दर्द से , तुमको मैं मिलाऊँ कैसे !
अश्क़ गमगीन हो पलकों में छिपे हैं जाकर ,
छलक जायें न कहीं , सामने जाऊँ कैसे !
तुम मेरा हाल यूँ ,नज़रों से भाँप लेती हो ,
एक चेहरे पर "नया चेहरा" लगाऊँ कैसे!
ये आरजू है मेरी, राह कुछ निकल आए,
एक खुशियों का चमन आज सजाऊँ कैसे!!
हरिशंकर पाण्डेय'सुमित'
* ***************************************
---------------- एक ग़ज़ल------------
दफ़अतन दर्द-ए-जिगर कोई बढ़ाकर चल दिया,
बिन धुआँ बिन आग के तनमन जलाकर चल दिया।
कुछ ग़लत करते जो चारागर को पकड़ी भीड़ ने,
शर्म से वो कुछ न बोला सर झुकाकर चल दिया।
मुल्क के नामी अदीबों से सजी उस बज़्म में,
एक बच्चा आईना सबको दिखाकर चल दिया।
वो फ़रिश्ता, रौशनी जिसने न देखी थी कभी,
जाते-जाते नूर की दौलत लुटाकर चल दिया।
मैंने इक शम्मा जलाई थी अमन के वास्ते,
अम्न का दुश्मन कोई आया बुझाकर चल दिया।
है जो जन्नत सरज़मीं का वादी-ए-कश्मीर है,
कौन उसमें आग नफ़रत की लगाकर चल दिया।
जब भरी हुंकार "राही" भारती के लाल ने,
जानी दुश्मन सरहदों से तिलमिलाकर चल दिया।
"राही" भोजपुरी, जबलपुर मध्य प्रदेश ।
7987949078,9893502414
*********************************
☆कहर इक तूफान का, कैसी तबाही दे गया☆
कहर इक तूफान का, कैसी "तबाही" दे गया I
आशियाना हर "परिन्दे" का उड़ा कर ले गया
जड़ से उखड़े कुछ दरख्तों का मिटा नामोनिशां ,
अब फिज़ा वीरान लगती , दर्द कैसा दे गया !
काल की आँधी थी वो उसने किया बर्बाद सब,
मौत का तांडव मचाकर पीर भारी दे गया।
जिनके अपने थे गए अब लौटना मुमकिन नहीं,
अश्क़ का सैलाब देकर सारी खुशियाँ ले गया।
अब तो कलियों और फूलों की महक फीकी हुई ,
सब तितलियों में उदाशी, जोश गुलशन से गया !
इक हवा के तेज झोंके से सहम जाते हैं अब,
खूब ज़ालिम था वो तूफां, खौफ दिल में दे गया !
सरजमी पर लौट आये सब कहाँ रुकते भला
अब परिन्दों को बनाना है नया इक आशियाँ !
हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित' - 967690881
hppandey59@gmail.com
**************************************
एक ताज़ा ग़ज़ल-------------------
आज़माना चाहते हो आज़माकर देख लो,
मैं संभलता ही रहूँगा तुम गिराकर देख लो।
मैं तसव्वुर से तुम्हारे जा न पाउँगा कभी,
कोशिशें कर लो मुसल्सल औ भुलाकर देख लो।
टूट जाऊँ मैं ज़रा सी बात पर मुम्किन नही,
हो यकीं तुमको न,घर मेरा जलाकर देख लो।
पायलें छम छम करेंगी जब पढूँगा मैं ग़ज़ल,
चाँदनी शब में सनम महफ़िल सजाकर देख लो।
तुम अकेले रह न पाओगे ये दावा है मेरा,
कुछ दिनों को घर अलग अपना बसाकर देख लो।
चाँद धरती पर उतर आयेगा काली रात में,
तुम ज़रा चेहरे से ये चिलमन हटाकर देख लो।
आग लग जायेगी पानी में है "राही" को यकीं,
आज बेपर्दा नदी में तुम नहा कर देख लो।।
राही भोजपुरी
*********************************
प्यार पर ग़ज़ल
प्यार करोगे प्यार मिलेगा,
अपनों का संसार मिलेगा ।
दिल से फ़र्ज़ निभाओगे जब,
जो चाहो अधिकार मिलेगा।।
जब अवाम का काम करोगे,
फूलों का तब हार मिलेगा।।
सोच लूट की छोड़ो वार्ना,
हर रस्ते पर खार मिलेगा।
चाल ढाल बदलो ख़ुद अपनी,
तभी तुम्हें दिलदार मिलेगा।।
जिसे खोजते हो बरसों से,
वो दरिया के पार मिलेगा।
महफ़िल तभी सजेगी "राही"
जब कोई फ़नकार मिलेगा।
"राही" भोजपुरी , जबलपुर मध्य प्रदेश ।
07987949078, 09893502414
हरिशंकर पाण्डेय'सुमित'
*************************************
सबूतों और गवाहों की नहीं उनको ज़रूरत है
प्रभू की उस अदालत में खरा इंसाफ़ होता है
हरिशंकर पाण्डेय "सुमित"
************************************
मेरे परम् मित्र शायर श्री अनिल कुमा राही की कलम से
ताजा तरीन शेर-----
शबे-ग़म जब कहीं कोई उजाला हो नहीं पाया
दिया बनकर जला तब साथ मेरे हौसला मेरा
गुलों को चाहने वालों बहारों से करो यारी
मगर मत भूलना काँटों की है सच्ची वफ़ादारी
(अनिल कुमार राही)
***********************************
★ एक ग़ज़ल ★
अलावा मौत के , उस वक़्त भी वो शख़्श मरता है।
कभी जब टूटके मासूम - सा सपना बिखरता है।
जहाँ पर ' वाह ' का मौसम वहाँ वो ' आह ' भरता है।
कहीं तो दर्द है कोई जो रह - रहकर उभरता है ।
गवाही क्या , यहाँ तो बस किराए की ज़बानें हैं ,
बड़ी मुश्किल से कोई बात पर अपनी ठहरता है ।
पिता को बोझ लगती है बड़ी ही लाडली बेटी ,
गरीबी की बहुत पतली गली से जब गुज़रता है ।
कमी हो , बेबसी हो या निराशा के अँधेरे हों ,
वही इन्सान है जो ठोकरें खाकर सुधरता है ।
जुड़ी थी ज़िन्दगी से जो तुम्हारे नाम की चिट्ठी ,
उसे अब बे - मुरव्वत वक़्त का चूहा कुतरता है।
ख़ुशी उसकी ज़माने भर की ख़ुशियों से बड़ी होती ,
पिता की ख़्वाहिशों पर जब खरा बेटा उतरता है।
★ कमल किशोर ' भावुक ' ★
7007298155
**********************************
एक ग़ज़ल - संदेश
मिलेगा मर्तबा , हस्ती को बचाये रखना !
सफर के वास्ते, कश्ती को सजाये रखना !
कहीं तूफाँ तुम्हारा रास्ता क्या रोकेगा ,
अपनी यारी यूँ समुन्दर से बनाये रखना !
जतन से ध्यान से रिश्तों को सम्हाले रखना,
गुलों से प्यार के गुलशन को सजाये रखना!
बड़ी है अहमियत , किरदार की यकीं मानो,
बड़ा अजीज है , हर वक़्त निभाये रखना !
हुनर सफर में बुलंदी तलाश ले फिर भी ,
रहे गरूर ना नजरों को झुकाये रखना !
भले हो सामना हर बार इम्तिहाँ से सुनो ,
अपनी तालीम को जेहन में बसाये रखना !
वतन की मिट्टी के अनमोल नगीने बनकर ,
इसकी तहजीब और शोहरत को उठाये रखना !
#हरिशंकर पाण्डेय'सुमित'
****************************************
( यह नज़्म मरहुंम शम्श मिनाई साहब ने लगभग 50 साल पहले कही थी जो आज भी ताज़ी लगती है)
"राम"
---------
मैं राम पर लिखूँ मेरी हिम्मत कहीं है कुछ
तुल्सी ने बाल्मीक ने छोड़ा नहीं है कुछ
फिर ऐसा कोई खास कलमवर नहीं हूँ मैं
लेकिन वतन की खाक से बाहर नहीं हूँ मैं
कोई पयामे हक़ हो वो सब है मेरे लिए
दुनिया का हर बुलंद अदब है मेरे लिए
वो राम जिसका नाम है जादू लिए हुए
लीला है जिसकी ओम की खुशबु लिए हुए
अवतार बन के आई थी ग़ैरत शबाब की
भारत में सबसे पहली किरन इन्क़िलाब की
हर गाम जिसका सच का फरेरा ही बन गया
बनबास ज़िंदगी का सवेरा ही बन गया
एक तर्ज़ एक बात है हर खास-ओ-आम से
मिलते हैं कैसे कैसे सबक हमको राम से
ऊँचा उठे तो फ़र्क़ न लाये शऊर में
कोई बढ़े न हद से ज़्यादा ग़ुरूर में
जंगल में भी खिला तो रही फूल में महक
गुदड़ी में रह के लाल की जाती नहीं चमक
दिल से कभी ये प्यार निकाला न जायेगा
माँ बाप का ख्याल भी टाला न जाएगा
बेटा वही जो बाप का फरमान मान ले
शौहर वही जो लाज पे मरने की ठान ले
और बाप वो जो बेटों को लव-कुश बना सके
उनको जगत में जीने के सब गुन सिखा सके
भाई जो चाहे भाई को तलवार की तरह
जरनल जो रखे फ़ौज को परिवार की तरह
राजा वही ग़रीब से इंसाफ कर सके
दलदल से जातपात की हर दम उभर सके
जो वर्ण भेदभाव के चक्कर को तोड़ दे
शबरी के बेर खा के ज़माने को मोड़ दे
इंसान हक़ की राह में हर दम जमा रहे
यह बात फिर फ़ुज़ूल है लश्कर बड़ा रहे
ईमान हो तो सोने का अंबार कुछ नहीं
हो आत्मबल तो लोहे के हथियार कुछ नहीं
रावण की मैंने माना कि हस्ती नहीं रही
रावण का कारोबार है फैला हुआ अभी
छाया है हर सिम्त जो अँधेरा घना हुआ
हिंदुस्तान आज है लंका बना हुआ
वो ज़ुल्म से डरे जो उपासक हो राम का
सोने पे जान दे जो उपासक हो राम का
वो राम जिसने ज़ुल्म की बुनियाद ढाई थी
जिसके भगत ने सोने की लंका जलाई थी
हर आदमी ये सोचे जो होश-ओ -हवास है
वो राम से क़रीब है कि रावण के पास है
लोगों को राम से जो मोहब्बत है आजकल
पूजा नहीं अमल की ज़रूरत है आजकल
शम्श मिनाई
******************************************
221 1221 1221 122
दरिया में उतर आए मियां जुल्म के डर से ।
पानी न गुज़र जाए कहीं आपके सर से ।।
लगता है मेरे गांव में जुमलों का असर है ।।
भटके मिले कुछ लोग शराफ़त की डगर से ।।
कातिल हुई है भीड़ यहां मुद्दतों के बाद ।
निकलो न अकेले ही कहीं रात में घर से ।।
खामोशियों के साथ सहा दर्दे सितम जो ।
गिर जाएगा वो शख्स ज़माने की नज़र से ।।
ता उम्र मुसीबत से लड़ा आदमी है जो ।
तौला उसे ही जायेगा दुनिया में गुहर से ।।
हर शय का जहाँ आखिरी अंजाम क़ज़ा है ।
जीना है अगर जी तू वहाँ अपने हुनर से ।।
इन घोसलों पे किसकी नजर लग चुकी है अब ।
पूछा है परिंदों ने यही राज़ शजर से ।।
रोये वही हैं लोग मेरे हाल पे साकी ।
मतलब नहीं था जिनको मेरी खोज खबर से ।।
जब से गयी है लौट के आई नहीं है वो ।
क्या कह दिया साहिल ने मुहब्बत में लहर से ।।
- नवीन मणि त्रिपाठी
************************************
एक शेर
भँवर तूफान से कश्ती को बचाना होगा
कठिन सफऱ है मगर पार तो जाना होगा
हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'
*****************************************
क्या हाल था हमारा उस उम्रे -बेख़ुदी में
किस किसका नाम लेते,दुश्मन थे दोस्ती में
जीने को एक मुद्दत, मरने को एक लमहा
ये कैसी रहगुज़र है चलने को ज़िन्दगी में
हम भी हमारी सूरत पहचान, काश लेते
सूरत बदल के रख दी इस उम्र कलमुंही में
किस किसका नाम लेते किस किसने साथ छोड़ा
अब रह गये अकेले इस दौरे-मुफलिसी में
उम्मीद तो नहीं थी आसान मुश्किलों की
हम पागये हैं मंज़िल रहज़न की रहबरी में
हमको हमारी सूरत अब याद तक नहीं है
कटता है वक़्त जब से दर्पण से दुश्मनी में
उम्मीद तो बहुत थी, लेकिन यक़ीन कम है
अपना भी नाम होगा क़िस्मत की डायरी में
तासीर भी अजब है जलते हुए दिये की
वो मुब्तला रहा है जलकर; भी रोशनी में
स्वरूप
*******************************
*** ग़ज़ल***
122 122 122 122
न जाने किधर जा रही ये डगर है ।
सुना है मुहब्बत का लम्बा सफ़र है ।।
तेरी चाहतों का हुआ ये असर है ।
झुकी बाद मुद्दत के उनकी नज़र है ।।
नहीं यूँ ही दीवाने आए हरम तक ।
इशारा तेरा भी हुआ मुख़्तसर है ।।
यहाँ राज़े दिल मत सुनाओ किसी को ।
ज़माना कहाँ रह गया मोतबर है ।।
है साहिल से मिलने का उसका इरादा ।
उठी जो समंदर में ऊंची लहर है ।।
है मक़तल सा मंजर हटी जब से चिलमन ।
बड़ी क़ातिलाना तुम्हारी नज़र है ।।
बतातीं हैं बिस्तर की ये सिलवटें अब ।
तुम्हें नींद आती नहीं रात भर है ।।
वहीं बैठती है वो रंगीन तितली ।
गुलों के लबों पर तबस्सुम जिधर है ।।
सुना हुस्न वालों के ख़ामोश लब हैं ।
लिपिस्टिक की रंगत का जाने का डर है ।।
ये कोशिश है मेरी उसे भूल जाऊं ।
मगर याद आता वो शामो सहर है ।।
तमन्ना थी जिसको बसा लूं मैं दिल मे ।
मेरी आरजू से वही बेख़बर है ।।
मुलाक़ात जाइज़ कहेगी ये दुनिया ।
तेरे ही गली से मेरी रहगुज़र है ।।
मुख़्तसर - छोटा
मोतबर - विश्वसनीय
मक़तल - कत्ल का स्थान
तबस्सुम - मुस्कुराहट
सहर - सुबह
रहगुज़र - रास्ता
- नवीन मणि त्रिपाठी
****************************************
एक ताज़ातरीन ग़ज़ल आपके हवाले---------
ख़ुद किसी की याद में दिल को जलाकर देखिये,
और फिर उसके लिये जग को भुलाकर देखिये।
पुरसुकूं दिल को मिलेगा काम ये जो कर दिया,
रो रहा बच्चा कोई उसको हँसाकर देखिये।।।
उनकी शोहबत में मिलेगी आप को शोहरत ज़रूर,
बस किसी महफ़िल में उनको भी बुलाकर देखिये।
राह-ए-उल्फ़त में फक़त गुल ही नहीं काँटे भी हैं,
आज़माना हो,किसी से दिल लगाकर देखिये।।
आप को भी चाहने वाले मिलेंगे बेशुमार,
बस किसी के दर्द में आँसू बहाकर देखिये।
दूर रहकर दिलरुबा से चैन किसको है मिला,
है नहीं गर चे यकीं बस आज़माकर देखिये।
प्यार करने का अगर करते हैं दावा आप तो,
लाख मुश्किल हो तो क्या फिर भी निभाकर देखिये।
आप का ही तज़किरा होगा शहर में तरफ़,
इक किसी मज़लूम को अपना बनाकर देखिये।
उम्र भर "राही" दवावों से रहेंगे दूर आप,
सादगी से ज़िन्दगी अपनी बिताकर देखिये।
"राही" भोजपुरीं, जबलपुर मध्य प्रदेश ।
7987949078, 9893502414
****************************************
ताजातरीन ग़ज़ल
बरसात ने ज़मीं को भिगोया है रात भर,
किसको फिकर यहाँ फ़लक़ रोया है रात भर।
उस ख़ाब पे सुबह ने आ क़हर सा ढा दिया,
जिसको कि सितारों ने संजोया है रात भर!
हँसते हुए ग़मों से ..निभाई है दोस्ती,
ज़ज़्बात ने खुदी को पिरोया है रात भर।
अरमाँ निकल रहे हैं चश्मतर से बाक़दर
सैलाब ने ख़ुशी को डुबोया है रातभर।
हर शाम ने शमाँ को जलाया सुकून से,
जब चाँद बेबसी को ही रोया है रात भर।
गोपाल एस सिंघ
******************************************
मेरी ग़म से हुई यारी...........
बताना चाहता हूँ मैं
दिखाना चाहता हूँ मैं।
मेरी गम से हुई यारी
निभाना चाहता हूँ मैं।। 1
रहे कायम सदा रिश्ता
घराना चाहता हूँ मैं।।
गमों के इक शहर में घर
बनाना चाहता हूँ मैं।। 2
हुआ हैरान गम देखो 4
परेशां है जरा देखो।
इरादा हौसला मेरा
बढाना चाहता हूँ मैं।।
चलो वो बात हो जाये 3
सुलह अब चाहता हूँ मैं।
मुझे गम का खजाना दो
सजाना चाहता हूँ मैं।।
खुशी अब दूर से देखे 5
नजारा चाहता हूँ मैं।
बसा दिल में गमें खुश्बू
हँसाना चाहता हूँ मैं।।
(अनिल कुमार राही)
*****************************************
221 2121 1221 212
ता-उम्र रोशनी का सफ़र ढूढ़ता रहा ।
मैं तो सियाह शब में सहर ढूढ़ता रहा ।।
मुझको मेरा मुकाम मयस्सर हुआ कहाँ ।।
घर अपना तेरे दिल में उतर ढूढ़ता रहा ।।
रुसवाइयों के दौर से गुजरा हूँ इस तरह ।
बस एक इश्क़ वाली नज़र ढूढ़ता रहा ।।
तुमको अना के दौर में इतनी खबर नहीं ।
कोई तुम्हारे दिल की डगर ढूढ़ता रहा ।।
इन साहिलों को छू के गयी थी जो एक दिन ।
सागर की मैं वो उठती लहर ढूढ़ता रहा ।।
लूटा है कुर्सियों ने तेरे देश को मगर ।
अखबार में छपी ये ख़बर ढूढ़ता रहा ।।
अक्सर उसे मिली हैं ये नाकामियां कि जो ।
आसान रास्तों का सफ़र ढूँढता रहा ।।
शायद नहीं था इल्म जो तुमको समझ सकूँ ।
नादां था राख में जो शरर ढूढ़ता रहा ।।
सारा चमन लगा है बियाबां मुझे हुजूऱ ।
सहरा में मुद्दतों से बसर ढूढ़ता रहा ।।
नवीन मणि त्रिपाठी
*********************†*************
* एक ताज़ातरीन ग़ज़ल---------------
ये दुनिया मुझे आज़माने लगी है,
बुलंदी से नीचे गिराने लगी है।
कभी टूट कर प्यार मुझसे किया था,
मगर क्यों वो अब दूर जाने लगी है।।
खुले दिल से मिलते रहे थे मगर, वो,
कई राज़ दिल के छुपाने लगी है।।।।
नहीं देख पाती थी जो मेरे आँसू,
वो हर पल मुझे अब रुलाने लगी है।
लिपट कर जो साये से रहती थी हरदम,
वो मिलने से नज़रें चुराने लगी है।।
जिसे तीरगी रास आती नहीं थी,
चराग़ों को क्यों अब बुझाने लगी है।
बहुत साफ थे पैरहन जिसके "राही"
वो दामन में काँटे उगाने लगी है।।
"राही" भोजपुरीं,जबलपुर मध्य प्रदेश ।
7987949078, 9893502414 ।
******************************
पेश है एक ताज़ातरीन ग़ज़ल---------
आये जो आप घर मेरे मौसम बदल गया,
यह देख दुश्मनों का जनाजा निकल गया।
जो शक़ की निगाहों से मुझे देखते रहे,
उनको मेरे ही सामने कोई कुचल गया।
ग़ैरों की ख़ुशी देख के सदमें में जो रहा,
बेवक़्त मर के आख़िरस दुनिया से कल गया।
शोहरत भी उसके हाथ में आकर चली गई,
हाथी किसी ढलान से गोया फिसल गया।
सूरज भी था शबाब पर जलता रहा बदन,
ऐसी लगी वो आग नगर सारा जल गया।
उस ज़लज़ले के बाद का मंज़र तो देखिये,
सहरा जो जल रहा था कल दरिया में ढल गया।
चाहा न जिसको प्यार से मैंने कभी " राही "
उस नाज़नीं को देख के दिल क्यों फिसल गया।
"राही" भोजपुरीं, जबलपुर मध्य प्रदेश ।
7987949078, 9893502414
**************************************
ग़ज़ल जिंदगी की.......
खुशी के बुलबुले हैं कुछ, गमों का बोलबाला है
हँसी के हौसलों ने आज तक हमको सम्हाला है
कई उम्मीद के बादल यहाँ छा कर नहीं बरसे
जमीं सब आस की प्यासी पड़ा सूखे से पाला है
बहुत मजबूर है ईमान अब सुनता नहीं कोई
खड़ा है सच सरे महफ़िल मगर होठो पे ताला है
नहीं कोई बचा अबतक खुदा की उस अदालत से
खरा इंसाफ है उसका तरीका भी निराला है
करम के साथ ही अंजाम है नेकी बदी का भी
इसी दिल मे खुदा का घर यही मंदिर शिवाला है
हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'
-----------------------------------------------------
दिख जाए तेरा चेहरा...........
दिख जाये तेरा चेहरा शायद मुझे किसी में
दिन रात तुझको ढूंढू हर एक अजनबी में !!
आने लगा मज़ा अब इस दर्दे आशिकी में
रहने दो मुझको यारो तुम मेरी बेखुदी में !!
थर्राये जिससे दरिया डर जाये ये समुन्दर
शिद्दत हो काश् इतनी होठों की तश्नगी में !!
अरमान कत्ल खुद के खूने जिग़र खुदी का
करना पड़ा है मुझको क्या क्या न बेब़सी में !!
मिल जायेगी कंही तू बस ये ही सोचकर मैं
चलता ही जा रहा हूं अंधी सी इक गली में !!
काटे कटे न मुझसे ये हिज्र तेरा दिलबर
इक पल गुज़र रहा है सदियों की इक सदी में !!
सारा क़लाम साहिल उस पर ही कह दिया क्यूं
अपना भी जिक़्र कर कुछ इस शेरे आखिरी में !!
--------------------------------Sahil Rampuri
-------------------------------------------------------
पेश है एक नाज़ुक ग़ज़ल---
""""""""""""""""""""""""""""""""""
सुनो आज वादा निभाने का दिन है,
नई शाख पे गुल खिलाने का दिन है।
शब-ए-वस्ल में यूँ न शर्माओ जानम,
ये दिल खोलकर गुदगुदाने का दिन है।
जवां जोश में पाँव फिसले हों शायद,
उसे आज अब भूल जाने का दिन है।
जो ग़ज़लें क़िताबों में हैं क़ैद अब तक,
उन्है बज़्म में गुनगुनाने का दिन है।।
मोहब्बत के गौहर जो पाये हैं हमने,
उन्हें अपने दिल में छुपाने का दिन है।
मुकम्मल है कितनी मोहब्बत ये अपनी,
इसे आज ही आज़माने का दिन है।।
जहाँ तुम मिले थे डगर में अकेले,
वहीं"राही"घर इक बनाने का दिन है।
"राही" भोजपुरी,जबलपुर मध्य प्रदेश
7987949078,9893502414
💐💐💐💐💐ग़ज़ल💐💐💐💐💐
गीत के सुर को सजा दे , साज ऐसा चाहिए
दिल तलक पहुँचे सदा अल्फ़ाज़ ऐसा चाहिए
कुछ छिपायें कुछ बतायें, फितरतें इंसान की
जब खुले खुशियाँ बिखेरे , "राज " ऐसा चाहिए
राह खुद अपनी बनाये फिर सजाकर मंज़िलें
रुख हवा का मोड़ दे 'अंदाज़' ऐसा चाहिए
जीत ले हर एक बाज़ी हौसले के जोर से
नाज़ हो अंजाम को, "आगाज़" ऐसा चाहिए
जो हटे पीछे कभी ना, जंग में डटकर लड़े
वीरता भी हो फिदा , "ज़ांबाज " ऐसा चाहिए
हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'
**************ग़ज़ल*************
गम के साये से घिरे दर्द छिपाऊँ कैसे!
ज़ख्म सीने में दबा, तुमको रिझाऊँ कैसे!!
तुम्हारी हर वफा का मैं सिला न दे पाया
मेरे ही दर्द से , तुमको मैं मिलाऊँ कैसे !!
अश्क़ गमगीन हो पलकों में छिपे बैठे हैं,
छलक जायें न कहीं , सामने आऊँ कैसे !
तुम मेरा हाल भी नज़रों से भाँप लेती हो ,
एक चेहरे पर "नया चेहरा" लगाऊँ कैसे!!
मैंने सोचा था, बहुत दूर चला जाऊँ पर,
तुम न भूलोगी मुझे, मै भी भूलाऊँ कैसे!!
ये आरजू है मेरी, राह कुछ निकल आए,
एक खुशियों का चमन आज सजाऊँ कैसे!!
हरिशंकर पाण्डेय'सुमित'
--------------------------------------------------
एक ताज़ातरीन ग़ज़ल------
""""""""""""""""""""""""
ये चिलमन में चेहरा छुपाओ न ऐसे,
मिरे दिल की धड़कन बढ़ाओ न ऐसे।
तुम्हें भर नज़र देखना चाहता हूँ,
नज़र फेरकर अब सताओ न ऐसे।
यही मेरी चाहत है दिल में रहो तुम,
किसी और से दिल लगाओ न ऐसे।
जो उल्फ़त के दीपक जलाये थे मैंने,
हवा दे के उसको बुझाओ न ऐसे।।
सफ़र है कठिन दूर मंज़िल है अपनी,
सरे राह काँटे। बिछाओ न ऐसे।।
बहुत आज़माया है लोगों ने मुझको,
मुझे और तुम आज़माओ न ऐसे।।
मोहब्बत अगर तुमको मुझसे है "राही"
तो बाहें झटक करके जाओ न ऐसे।।
"राही" भोजपुरी, जबलपुर मध्य प्रदेश ।
7987949078, 9893502414
***************************************
नई गज़ल
यही सवाल अब .... उलझा, मेरे फसाने मे l
कम थी उल्फत..क्या मेरे दिल के आशियाने में !
गर खता थी कुछ हमारी तो बस बता देते ,
हम तो माहिर हैं, किसी भी तरह मनाने में ..!
उनकी यादें भी वफादार हैं , बसी दिल में,
कौन कहता है , वफ़ा है नहीं ज़माने में !
अब तो तूफान का भी खौफ नहीं है मुझको ,
दिये बुझा कर मैं बैठा गरीबखाने में ....
तुम्हारी रूठने की यह अदा बड़ी कातिल,
क्या मिलेगा तुम्हे ऐसे हमें सताने में ..
मगर यकीन है, दावा है, अपनी चाहत पर,
तुम्हारे हाँथ बढेंगे , दिये जलाने में ....
हरिशंकर पाण्डेय'सुमित'
----–-----------------------------------------------
नई ग़ज़ल
मिलेगा मर्तबा , हस्ती को बचाये रखना !
सफर के वास्ते, कश्ती को सजाये रखना !
कहीं तूफाँ तुम्हारा रास्ता क्या रोकेगा ,
अपनी यारी यूँ समुन्दर से बनाये रखना !
जतन से ध्यान से रिश्तों को सम्हाले रखना,
गुलों से प्यार के गुलशन को सजाये रखना!
बड़ी है अहमियत , किरदार की यकीं मानो,
बड़ा अजीज है , हर वक़्त निभाये रखना !
हुनर सफर में बुलंदी तलाश ले फिर भी ,
रहे गरूर ना नजरों को झुकाये रखना !
भले हो सामना हर बार इम्तिहाँ से सुनो ,
अपनी तालीम को जेहन में बसाये रखना !
वतन की मिट्टी के अनमोल नगीने बनकर ,
इसकी तहजीब और शोहरत को उठाये रखना !
हरिशंकर पाण्डेय'सुमित'
********************************
**ग़ज़ल**
गम के साये से घिरे, दर्द छिपाऊँ कैसे!
ज़ख्म सीने में दबा, तुमको रिझाऊँ कैसे!!
तुम्हारी ही वफा वाजिब , कसूर मेरा था ,
अपने इस दर्द से , तुमको मैं मिलाऊँ कैसे !
अश्क़ गमगीन हो पलकों में छिपे हैं जाकर ,
छलक जायें न कहीं , सामने जाऊँ कैसे !
तुम मेरा हाल यूँ ,नज़रों से भाँप लेती हो ,
एक चेहरे पर "नया चेहरा" लगाऊँ कैसे!
ये आरजू है मेरी, राह कुछ निकल आए,
एक खुशियों का चमन आज सजाऊँ कैसे!!
हरिशंकर पाण्डेय'सुमित'
* ***************************************
---------------- एक ग़ज़ल------------
दफ़अतन दर्द-ए-जिगर कोई बढ़ाकर चल दिया,
बिन धुआँ बिन आग के तनमन जलाकर चल दिया।
कुछ ग़लत करते जो चारागर को पकड़ी भीड़ ने,
शर्म से वो कुछ न बोला सर झुकाकर चल दिया।
मुल्क के नामी अदीबों से सजी उस बज़्म में,
एक बच्चा आईना सबको दिखाकर चल दिया।
वो फ़रिश्ता, रौशनी जिसने न देखी थी कभी,
जाते-जाते नूर की दौलत लुटाकर चल दिया।
मैंने इक शम्मा जलाई थी अमन के वास्ते,
अम्न का दुश्मन कोई आया बुझाकर चल दिया।
है जो जन्नत सरज़मीं का वादी-ए-कश्मीर है,
कौन उसमें आग नफ़रत की लगाकर चल दिया।
जब भरी हुंकार "राही" भारती के लाल ने,
जानी दुश्मन सरहदों से तिलमिलाकर चल दिया।
"राही" भोजपुरी, जबलपुर मध्य प्रदेश ।
7987949078,9893502414
*********************************
☆कहर इक तूफान का, कैसी तबाही दे गया☆
कहर इक तूफान का, कैसी "तबाही" दे गया I
आशियाना हर "परिन्दे" का उड़ा कर ले गया
जड़ से उखड़े कुछ दरख्तों का मिटा नामोनिशां ,
अब फिज़ा वीरान लगती , दर्द कैसा दे गया !
काल की आँधी थी वो उसने किया बर्बाद सब,
मौत का तांडव मचाकर पीर भारी दे गया।
जिनके अपने थे गए अब लौटना मुमकिन नहीं,
अश्क़ का सैलाब देकर सारी खुशियाँ ले गया।
अब तो कलियों और फूलों की महक फीकी हुई ,
सब तितलियों में उदाशी, जोश गुलशन से गया !
इक हवा के तेज झोंके से सहम जाते हैं अब,
खूब ज़ालिम था वो तूफां, खौफ दिल में दे गया !
सरजमी पर लौट आये सब कहाँ रुकते भला
अब परिन्दों को बनाना है नया इक आशियाँ !
हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित' - 967690881
hppandey59@gmail.com
**************************************
एक ताज़ा ग़ज़ल-------------------
आज़माना चाहते हो आज़माकर देख लो,
मैं संभलता ही रहूँगा तुम गिराकर देख लो।
मैं तसव्वुर से तुम्हारे जा न पाउँगा कभी,
कोशिशें कर लो मुसल्सल औ भुलाकर देख लो।
टूट जाऊँ मैं ज़रा सी बात पर मुम्किन नही,
हो यकीं तुमको न,घर मेरा जलाकर देख लो।
पायलें छम छम करेंगी जब पढूँगा मैं ग़ज़ल,
चाँदनी शब में सनम महफ़िल सजाकर देख लो।
तुम अकेले रह न पाओगे ये दावा है मेरा,
कुछ दिनों को घर अलग अपना बसाकर देख लो।
चाँद धरती पर उतर आयेगा काली रात में,
तुम ज़रा चेहरे से ये चिलमन हटाकर देख लो।
आग लग जायेगी पानी में है "राही" को यकीं,
आज बेपर्दा नदी में तुम नहा कर देख लो।।
राही भोजपुरी
*********************************
प्यार पर ग़ज़ल
प्यार करोगे प्यार मिलेगा,
अपनों का संसार मिलेगा ।
दिल से फ़र्ज़ निभाओगे जब,
जो चाहो अधिकार मिलेगा।।
जब अवाम का काम करोगे,
फूलों का तब हार मिलेगा।।
सोच लूट की छोड़ो वार्ना,
हर रस्ते पर खार मिलेगा।
चाल ढाल बदलो ख़ुद अपनी,
तभी तुम्हें दिलदार मिलेगा।।
जिसे खोजते हो बरसों से,
वो दरिया के पार मिलेगा।
महफ़िल तभी सजेगी "राही"
जब कोई फ़नकार मिलेगा।
"राही" भोजपुरी , जबलपुर मध्य प्रदेश ।
07987949078, 09893502414
हरिशंकर पाण्डेय'सुमित'
*************************************
2 टिप्पणियां:
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 11 मई 2019 को लिंक की जाएगी ....
http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
This website is the one of the best website for shayari and status
एक टिप्पणी भेजें