गुरुवार, 24 मई 2018

शेरो शायरी की बहार



 दोस्तों,

शायरी  पढ़ना, सुनना और लिखना इन तीनो बातों का मज़ा ही कुछ और है। शायरी फ़ारसी,अरबी भाषाओं से होते हए उर्दू भाषा तक पहुँची है।  
        आपको एक बात बताना मैं जरूरी समझता हूँ कि शायरी पूरी तरह से सिर्फ़ उर्दू भाषा मे ही हो ,यह जरूरी नहीं है। शायरी में हिंदी के भी शब्द मिलाकर भी लिख सकते हैं।। शब्द सही होने चाहिए और शायरी की लय (कहन) सटीक होगी तो दिल मे उतर जाती है। शायरी पढ़ने का शौक तो हिंदी भाषी लोगों को भी बहुत होता है। शायरी का सम्बंध दिल से होता है। देखा जाये तो  शायरी  दिल से ही लिखी जाती है।

          इसीलिए मैने एक शेर लिखा-----



ख़ुशी या ग़म का रिश्ता  दिल से होता है  बड़ा गहरा

लिखी  जाती  है  उम्दा शायरी  दिल की  सियाही से


   दोस्तों,नीचे एक चार लाइन के मुक्तक का मज़ा लीजिये और इसके बाद शायरी की बहार का आनंद लीजिये



हमारी  ज़िन्दगी  में  याद  की   अपनी  अहमियत  है,

कभी वह  इक महकती, खुशनुमा  अहसास  होती है
सिमटकर कर वह भिगाती है कभी मासूम पलकों को,
नहीं  मिटती   हमारे  मन से,  दिल  के पास  होती है !!


हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'


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 अलग अलग रंग के शेर--मेरी कलम से. 


बुलंदी मिल नहीं सकती फकत तक़दीर के बल से कड़े संघर्ष  के छाले ही मंजिल से  मिलाते  हैं


ये माना  ज़िंदगी में  ग़म  के  झोंके भी  बहुत आए
मगर खुशियों के गुलशन ने भी  प्यारे फूल बरसाए


जब तलक  सोती  रही वो, नींद  मुझसे  दूर थी
जग गई तकदीर जिस दिन,  नींद  ही आई नहीं

मजे में  हूं  यही  हम  झूठ  अक्सर बोल जाते हैं
छुपाते  दर्द  यूं  खुद  को  हंसी  से भी  बचाते हैं 


सुनो बरसात से यादों का नाता है  गजब यारो
एक तन को भिगा दे दूसरी मन को भिगाती है



बड़ी नासाज़ थी तबियत उन्होंने हाल भर पूँछा

रफ़ूचक्कर हुआ  सब  मर्ज़  उनके मुस्कराने से


रूठने  का  मज़ा  तब आता  है

प्यार  से  जब  कोई  मनाता  है


अदब से सर झुकाना भी  बुजुर्गों से ही सीखा है

अगर  कश्ती  हो  तूफाँ  में  किनारा चूम लेती है


परायी  पीर  को  जो  देख  मुस्कराते  हैं

ज़ख्म  खाकर  बड़े बेज़ार नजर आते हैं

उदासी   को   छिपाकर  मुस्कुराना  फन है यारो 
इसे  सीखा   है  जिसने  ज़िंदगी उस पर फ़िदा है 



सुना था नाम जमाने में मोहब्बत का मगर

उनसे मिलने के बाद हमने हक़ीकत जानी


तुम  मेरी गलतियों को,भूल सको तो बेहतर,
वरना हमको भी, मनाने  का  हुनर आता है!


हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'


सुनहरे पल की  खुशियों का बहुत है  लौटना मुश्किल 

मगर इस दिल ने अब तक आस का दामन नहीं छोड़ा


बेज़ार  हो   गए  थे  ग़म-ए-ज़िन्दगी  से  हम 
नजर ए करम ने आपके जीना  सिखा  दिया


वे मेरे मौत का  सामान   अपने साथ  रखते हैं

मगर मिलते ही मेरे सर पे अपना हाँथ रखते हैं


मिल  गई   हमको   बुलन्दी ,  दूर   उनसे   हो  गए

जीत कर  हर एक बाजी  हमने सब कुछ खो दिया 


सुनहरे पल वो खुशियों के कहाँ अब लौटने वाले

मगर नादान दिल ने आस  का दामन  नहीं छोड़ा


मुझे  रुसवा  करो  बेशक़  यहाँ  सारे  जमाने में 

मगर इल्ज़ाम तुम पर भी न आ जाये फ़साने में


कड़े  मौसम कठिन हालात में उसको  जवाँ  देखा 

वफ़ा वो फूल है जिसकी कभी खुशबू  नहीं  जाती


मेरी ख्वाहिश का वो चमन नहीं मिला फिर भी,

मेरे   ख़्वाबों   के   रगो   में    बड़ी   रवानी   है


दर्द  देने  वाले   दवा   दे   रहे  हैं

जीने  की  मुझको  दुआ दे रहे हैं


किसी  नेकी के  बदले गर बदी मिल जाय दुनिया में

न हों मायूस    वह  मालिक  सदा  इंसाफ  करता है


बुझ चुकी है आग फिर भी उठ रहा  है अब धुआँ

कुछ  छिपी  चिनगारियों  को  भी बुझाना चाहिए



मोहब्बत  को इबादत  की तरह  जो  याद रखते हैं
खुदा   की  रहमतों  से   वे  सदा  आबाद  रहते  हैं


कोशिशें  हर बार  सब  नाकाम  तूफाँ की हुई

करम  मालिक का  समुंदर यार मेरा बन गया


कभी  मजबूरियाँ    भी   रोकती  हैं  पेशकदमी  से
मगर जो प्यार सच्चा है वो हरगिज़ मर नहीं सकता


इश्क़  में  दर्द   भी खुशियों  पे  फ़िदा होता है

ये ऐसी कैद है  जिसमे रिहाई हो नहीं सकती।


कुछ तज़ुर्बे ने बचाया, और  मालिक  का  रहम

दोस्तों की थी इनायत ,टूट  कर सम्हले  हैं  हम



मचाओ धूम, हर दिल में  मुकाम हो जाये
बढ़े  कदम  तो  बुलंदी  तुम्हे सलाम  करे!


माँ के हाँथों की रोटियों में बड़ी लज्ज़त थी 

किसी निवाले में  अब वह मज़ा नहीं आता


पराई  पीर  देख   कर   जो  मुस्कराते हैं
ग़म सताता है तो बेबस से नजर आते हैं



जिंदगी  का  मज़ा भी  आता है
जब कोई दिल में उतर जाता है

जागने  का  मज़ा  भी  आता है
नींद  को  प्यार  जब  उड़ाता है

रुठने   का   मज़ा  भी  आता है
प्यार   से   जब  कोई  मनाता है





हरिशंकर पाण्डेय-- 9967690881


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लगादी  जिंदगी अपनी  नया  इक घर 
 बसाने  में

जिये  औलाद की ख़ातिर  उन्हें काबिल बनाने में

बुजर्गों के  दिलों की पीर  
सुन लो  इस  जमाने मे

किया लख्त ए ज़िगर ने आज बेघर आशियाने में


अनिल कुमार 'राही'



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बुजुर्गों की दुआ अपना असर हरदम दिखाती है

हुनर जीने का हमको  जिंदगी में भी सिखाती है
अदब से सर झुकाना भी  बुजुर्गों से ही सीखा है
अगर तूफाँ में कश्ती  हो किनारा पा ही जाती है

हरिशंकर पाण्डेय 
'सुमित'


उसने  पहले रस कहा  फिर गुल कहा  फिर ले  कहा

इस तरह  ज़ालिम  ने  रसगुल्ले  के  टुकड़े  कर  दिये
(अज्ञात)


नोट-- दोस्तों, मेरे ब्लॉग के सभी पृष्ठ पर कुछ नई रचनाएँ  लिखी  जाती  है,पढ़ते रहिये। आपके  विचार क्या हैं अवश्य लिखिए।


धन्यवाद!!


हरिशंकर पाण्डेय--9967690881

hppandey59@gmail.com

3 टिप्‍पणियां:

Chirkut ने कहा…

पुराने दिन याद आए तो गला भर आया !
बड़ी अहमियत थी रिश्तों की उस जमाने में!

शायरी सागर / Sayari Saagar by Harishankar Pandey ने कहा…

बहुत खूब

शायरी सागर / Sayari Saagar by Harishankar Pandey ने कहा…

सही बात
बड़ी थी अहमियत
रिश्तों की उस जमाने में

Shayari Saagar

मशहूर दिलकश हर रंग की शायरी

दोस्तों,  सजा कर  शायरी की इक नई सौगात  लाया  हूॅ॑ खुशी और ग़म के सारे रंग और हालात लाया हूॅ॑ किताब ए जिंदगी  से पेश हैं...