मंगलवार, 12 जून 2018

ग़म भरी शायरी--- जो दिल को छू ले













दोस्तों, ज़िन्दगी में ख़ुशी और ग़म दोनो ही मिलते रहते हैं। मैंने कुछ शेर लिखे जो पेश ए ख़िदमत है -

हमने कहा था अलविदा हॅ॑सकर मुड़े थे हम
अफ़सोस आखरी  वो   मुलाकात  बन  गई



कभी मजबूरियाॅ॑ भी रोकती हैं पेश कदमी से
वफ़ा को दर्द की दहलीज़ पर लाचार देखा है


मेरे गम   मुझे आजमाते रहे हैं
मुझी पर मोहब्बत लुटाते रहे हैं

नींद पलकों को अब चूमना छोड़ कर
दिल दुखाकर  मुझे  अब  सताने लगी
हमनवां जब से  ग़म  बन गया है मिरा
हर  ख़ुशी  मुझसे  दामन  छुड़ाने लगी


वो नहीं  आये  हैं   इस बार  भी   वादा  करके
हिचकियां आ गई अब मुझको  सताने के लिए


नज़रों ने  आज   मेरी  उनसे   सवाल  पूछा 
रहना था दूर  मुझसे  फिर क्यों करीब आए
कहने लगे कि कोई तोहमत न अब लगाओ
छलके जो अश्क उनके आंखों में मेरी आए

 हरिशंकर पाण्डेय "सुमित"

इस  ज़िंदगी की  राह  में  रोड़े  मिले तो क्या
ज़ख्मों  के  बिना  मंजिलें मिलती नहीं कभी

सुमित 

जीने  का  राज   मैंने  मोहब्बत  में  पा लिया
जिससे भी ग़म मिला उसे अपना बना लिया 
तुम ग़म का बोझ रोके भी हल्का न कर सके
मैंने  हॅ॑सी  की  आड़  में  हर ग़म  छुपा लिया
अज्ञात

उनके   बिना   उदास  है महफ़िल  कुछ  इस  तरह 
जैसे   किसी   दरिया  में  रवानी.......   नहीं...रही

बने थे हमसफर हम और दिल से  आशनाई की
ख़ता हमसे हुई  क्या वक्त  ने  फिर बेवफाई की 

दर्द जब  दिल का  रुलाई  से  पिघल जाता है 
अश्क़ की शक्ल में आंखों से निकल आता है 

जहाॅ॑ उम्मीद की हमने वहीं से ग़म मिला हरदम 
हमारी    ख्वाहिशों ने   दर्द की  राहें बना डाली



कभी कुछ बंदिशें-मजबूरियाँ,बनती हैं जंजीरें
उसे खुदगर्ज या बेदर्द का तुम  नाम मत देना।
इश्क़ में  बेबसी  भी  रोकती  है पेशकदमी से
उसे भी बेवफ़ाई का कभी इल्ज़ाम मत देना।

   

हमें  उनकी  वफ़ा  पर था भरोसा ख़ुद से भी ज़्यादा
मगर  बेबस  हुए   तकदीर  ने    जब   बेवफ़ाई   की





हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'
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खुशी के बुलबुले हैं कुछ   ग़मों का बोलबाला है
हँसी के हौसलों ने आज तक हमको सम्हाला है

        (मेरी ग़ज़ल का  मतला- शायरी सागर से)


गरदिश ए जिंदगी में यूं बदल दिया मुझको
लोग  कहते हैं  कि  मुझमे  गरूर आया है 

हरिशंकर पाण्डेय
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अकेलापन उदासी और ये  रिसते हुए रिश्ते 
मेरे हिस्से में आई है यही दौलत समझ लेना

कश्मीरा त्रिपाठी
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अपने टूटे दिल का हम  हर जख्म पुराना भूल गए। 
अपनी  बरबादी का  वो  पूरा अफसाना  भूल गये। 

सुभाषिनी साहिल, वनदेमातरम।

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लफ्ज़ तलवार से भी     तेज वार करते हैं
ज़ख्म दिखता ही नहीं दर्द बहुत होता है

उसने  मेरा जीना ही अब  दुश्वार  कर दिया

ताजा था ज़ख्म फिर से वहीं वार कर दिया 

हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'

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वो हमसे दूर क्या हुए अब हम बिखर गए।
आंखों  में मेरे   अश्क   बेशुमार   भर गए।।
निशाॅन   ढूँढते   रहे   सब, ज़ख्म  के  मेरे। 
हम  अपने  दर्द  से  ही  कई  बार मर गए।।

              (अनिल कुमार राही)
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महफिले गैर की वो जीनत है
दिल के सहरा में क्या बहार करूं 
कशमकश रुह की रुलाए खूं 
कैसे  हाॅ॑सिल  ख़ुदा  करार  करुं

सुभाषिनी साहिल 
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पीर जब दिल से निकलकर   शायरी में आएगी
एक   संजीदा  ग़ज़ल  तहरीर  में   ढल  जाएगी


ग़म कभी  जब  आजमाने  ही लगे,

तुम किसी  अंजाम  से  डरना नहीं।
जब घिरे  दुख दर्द  की  काली घटा,
खौफ़ की उस शाम  से डरना  नहीं।
आएगी चौखट पे भी एक दिन खुशी,
गम के  इस  मेहमान  से  डरना नहीं।


यह तारे चांद के संग छुप गए जाने कहां जाकर,
फ़लक खामोश है, ये रात  भी  बेजान  लगती है! 
तुम्हारे  बिन, मुकद्दर के सितारे  बन गये  जालिम,
ये  पूरी  जिंदगी   टूटा  हुआ  अरमान  लगती है!! 

हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'


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हम तो गम को एक नशीली शराब कहते हैं
लोग  ऐसे  हैं  कि  ग़म को  खराब कहते हैं
ये   सवाल है  जिसे  हम लाज़वाब कहते हैं 
गुल में कांटे हैं   इसलिए   गुलाब   कहते हैं
                  
अज्ञात

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किसी कांटे से कभी खौफ़ नहीं खाए हम
ज़ख्म  फूलों ने  दिये  भूल  नहीं  पाये हम


@हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'

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आम है आजभी उनके जलवे पर कोई देख सकता नहीं है
सबकी आँखों पे  पर्दा पड़ा है उनके  चेहरे पे  पर्दा  नही है
लोग चलते हैं काँटों से बचकर मैं बचाता हूँ फूलों से दामन
इस कदर हमने खाये हैं धोखे अब किसी पर भरोसा नहीं है 


अज्ञात



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वफ़ा का दम  जो  भरते  थे  उन्हें भी आजमाया है
जिसे समझे थे अपना अब कहर उसने ही ढाया है


हरिशंकर पाण्डेय  
'सुमित'

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                  एक नज़्म


मेरी दुनिया   बिखर गई है   तेरे जाने से
लगे है, चैन  से सोया   नहीं  ज़माने   से

चली गई   हो कहां    दूर  मेरी  राहों से
बना दिया क्यों मुझे अजनबी निगाहों से।
ऐ ज़िन्दगी, तू चली आ   किसी बहाने से।
मेरी दुनिया   बिखर गई है, तेरे  जाने से।
लगे है,  चैन से ........

तेरे   बगैर हैं   सूने ये   चांद और तारे
बदल  गए हैं कायनात के मंज़र सारे।
दुआ मेरी कुबूल  ...होगी तेरे आने से।
मेरी दुनिया बिखर गई है, तेरे  जाने से।
लगे है, चैन से.....

मेरे बगैर   तुम्हें चैन    कहां आएगा
मेरा है दिल तुम्हारे पास ओ मनाएगा।
माफ़ करदे जो हुई है खता दिवाने से।
मेरी दुनिया बिखर गई है, तेरे जाने से।
लगे है , चैन से .......


                   हरिशंकर पाण्डेय--9967690881                                   hppandey59@gmail.com


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                       ग़ज़ल

मुझे ज़िंदगी रास आई न तुम बिन,
गुलों की ये ख़ुशबू भी भाई न तुम बिन।

धरा तप रही थी बदन जल रहा था,
ये सावन की रिमझिम सुहाई न तुम बिन।

कई साल गुज़रे हैं तन्हाईयों में,
कभी कोई महफ़िल सजाई न तुम बिन।

कमाई की राहें बहुत थीं नज़र में,
मगर कोई जोखिम उठाई न तुम बिन।

जगाई थी जो रूह में प्यास तुमने,
किसी ने भी उसको बुझाई न तुम बिन।

किसी ने भी मंदिर का खोला न ताला,
किसी ने भी शम्मा जलाई न तुम बिन।

बहुत हैं यहाँ चाहने वाले "राही",
किसी को मेरी याद आई न तुम बिन।

"राही" भोजपुरीं, जबलपुर मध्य प्रदेश ।
7987949078, 9893502414 ।




1 टिप्पणी:

शायरी सागर / Sayari Saagar by Harishankar Pandey ने कहा…

हर तरह की शेरो शायरी ग़ज़ल और मुक्तक का आनंद लीजिए

Shayari Saagar

मशहूर दिलकश हर रंग की शायरी

दोस्तों,  सजा कर  शायरी की इक नई सौगात  लाया  हूॅ॑ खुशी और ग़म के सारे रंग और हालात लाया हूॅ॑ किताब ए जिंदगी  से पेश हैं...