सोमवार, 2 जुलाई 2018

मशहूर दिलकश हर रंग की शायरी



दोस्तों, 

सजा कर  शायरी की इक नई सौगात  लाया  हूॅ॑
खुशी और ग़म के सारे रंग और हालात लाया हूॅ॑
किताब ए जिंदगी  से पेश हैं  एहसास  अब सारे
सजी तहरीर को पढ़ लो  हसीं जज़्बात लाया हूॅ॑

सभी  मज़हब  यही  कहते  अमन हो  भाईचारा हो
सही  इन्सानियत  का   हर तरफ  प्यारा नज़ारा हो
रहे  कायम मोहब्बत हम सभी  के  दिल में यूं  यारो
बढ़ाएं  शान   भारत  की   हमें  हर  फर्ज  प्यारा हो

हरिशंकर पाण्डेय सुमित

 बेसहारे  को..... जिसने  सहारा  दिया 
उसकी कश्ती को रब ने किनारा दिया

हरिशंकर पाण्डेय "सुमित"

ग़म ने  बख्शा  है   किसे, इतने  बड़े  संसार में
मानते  हैं   हर  ख़ुशी  बिकती  नहीं  बाजार में
जब खिजां आई  यक़ीनन दर्द गुलशन ने  सहा
फिर बहारें आ  गईं  लेकर   महक  किरदार में
हरिशंकर पाण्डेय "सुमित"

होकर  ख़फ़ा  वो बोले   मुझसे   न  बात करिए
हम चुप हुए तो यह भी  उनको   नहीं    गवारा
हरिशंकर पाण्डेय "सुमित"

महक गुलशन के उस गुल की कभी  फीकी नहीं पड़ती
हमेशा   गर्दिश  ए   तूफ़ान  में   जो  मुस्कराता   है

हरिशंकर पाण्डेय "सुमित"



मोहब्बत से  बड़ी दौलत नहीं  यारो जमाने में
निभाए जो दिलों जां से वहीं धनवान हो जाए

हरिशंकर पांडेय "सुमित" 

 जब से  मेरी  मोहब्बत  इबादत बनी
तब से  महबूब मेरा  ख़ुदा  बन गया

हरिशंकर पाण्डेय "सुमित"

किसी भी हाल में अपने हुनर को ज़िंदा रख
लुटा  दे   रोशनी   देखे   ये   ज़माना    सारा

हरिशंकर पाण्डेय "सुमित"

उसी के  फ़ैसले  से  चल  रहा   सारा  ज़माना है
उसी  की  सरपरस्ती  में  हमें  जीवन  बिताना है
वही है  एक मालिक जो दिखाता है हुनर अपना
बने  मंदिर  बने  मस्ज़िद  उसी का आशियाना है
हरिशंकर पाण्डेय "सुमित" 

वो अक्लमंद था उसकी थी बड़ी साख यहाॅ॑
इश्क की  राह में  उसकी भी  अक्ल मंद हुई
हरिशंकर पाण्डेय "सुमित"

सबूतों  और  गवाहों   की  नहीं  उनको ज़रूरत है
प्रभू  की   उस  अदालत  में  खरा इंसाफ़  होता है

हरिशंकर पाण्डेय " सुमित "

कई तालीम ठोकरों से मिली हैं हमको
दर्द के साथ  तजुर्बे भी  मिला करते हैं

हरिशंकर पाण्डेय "सुमित" 

जड़ें काट कर पत्तियाँ सींचते हैं, 
चमन में दिखे बागबाँ कैसे कैसे?

                   कश्मीरा त्रिपाठी,

हजारों दुश्मन ए जां  हैं  ज़मीं से  अर्श  तक  मेरे
समझते हो जिसे सूरज  मेरी चाहत से जलता है

साहिल लखनवी

कौन  मरता   है  किसी  के लिए  मेरे  यारो
अब तो  लैला न रही और न  मजनू है कोई

हरिशंकर पाण्डेय "सुमित"

किताब ए ज़िंदगी  में  इस कदर हमने नमी देखी
यक़ीनन आज  वो  पढ़कर  गये  हैं  दास्तां  मेरी

हरिशंकर पाण्डेय "सुमित"


मौजें  ये   समंदर   की  ठहरती  नहीं कभी
साहिल की मुहब्बत भी बदलती नहीं कभी

हरिशंकर पाण्डेय"सुमित' 

ज़िंदगी की है  सीधी  नहीं ये  डगर
मानते हैं  कि  आसां  नहीं है सफ़र
जब समुंदर में कश्ती उतारी सुमित
तब भॅ॑वर और तूफान से  कैसा डर

हरिशंकर पाण्डेय "सुमित"

बनो  कुछ  इस तरह तुम पर हर इक निगाह रहे
करो  कुछ  ऐसा कि दुश्मन  भी  वाह-वाह  कहे
हरिशंकर पाण्डेय "सुमित"


रोकती हैं रात  की खामोशियाँ  अक्सर मुझे।
सुबह की उम्मीद में लेकिन कहाँ ठहरा हूँ मैं।।
©गजेन्द्र

एक ताजातरीन मुक्तक

ज़िंदगी   के  भी    कई    रंग    निराले   देखे 
कहीं   नफरत    तो  कहीं  चाहने  वाले  देखे
ग़म ने बख्सा हो जिसे ऐसा कोई शख़्स नहीं
दर्द   के   साथ   ख़ुशी   पालने  वाले ...देखे

हरिशंकर पाण्डेय 

यही  उस्ताद   रहनुमा  बना   यही  रहबर,
वक्त ने हमको सिखाया है ज़माने का हुनर
हरिशंकर  सुमित 


ग़म में  जिसको  हौसला रख  मुस्कुराना आ गया
तय है  उसको ज़िंदगी से  दिल  लगाना  आ  गया

हरिशंकर पाण्डेय "सुमित"

खफा  है आज मगर कल गले  लगाएगी
ज़िंदगी  है  जनाब  फिर से  मुस्कराएगी 

हरिशंकर पाण्डेय "सुमित"

उम्मीद  पर  निगाहें   मेरी   लगी  हुई  हैं
तड़पेगी  मेरी मंज़िल मेरा इंतज़ार करके
हरिशंकर पाण्डेय

ये ऐसी कैद है  इसमें  रिहाई हो नहीं सकती
ये मर्जे इश्क है इसकी दवाई हो नहीं सकती
हरिशंकर पाण्डेय सुमित  

भगवान के घर एक दिन जाते तो हैं सभी
पर नेकियां  इंसान की  मिटती नहीं  कभी

हरिशंकर पाण्डेय "सुमित"


जब पराये ग़म से रिश्ता हो गया
एक इंसाॅ॑  था  फरिश्ता  हो गया

हरिशंकर पाण्डेय "सुमित"

अगर है  हौसले में जान तो अरमान जिंदा है
जहाॅ॑  ईमान  जिंदा  है  वहीं  इंसान जिंदा है

हरिशंकर पाण्डेय "सुमित"

वैसे हर एक का अंदाज़ है अपना अपना
बात जो दिल में उतर जाए वही अच्छी है

कहीं सैलाब  का मंज़र कहीं वीरान   धरती  है
कहीं हैं ज़िंदगी दोजख़ कहीं रहमत बरसती है
हरिशंकर

उठे दिल की आवाज  या  हक  बयानी
ये  फनकार  की   ही  सदा  बोलती  है
फकत एक  तहरीर  के  दम से  हरदम 
कलम बन के फन की  ज़ुबां बोलती है

     हरिशंकर पाण्डेय"सुमित" 

तुमने तो अपने ग़म का फ़साना सुना दिया, 
हम से  जिगर के दाग  दिखाए  नहीं गये!! 

शफ़ी ताजदार



उसे  यक़ीन  है   फिर  से  बहार  आएगी
चमन खिजां में कभी हौसला नहीं खोता

हरिशंकर पाण्डेय "सुमित"

उनके  बिना   उदास  है  महफ़िल  कुछ  इस तरह 
जैसे   किसी   दरिया  में  रवानी.......   नहीं...रही

सुमित


अरे  तूफान  तू  सुन ले  कहर ढाना है बेमानी
समुंदर यार है जिसका  उसे तू क्या डुबायेगा

हरिशंकर पाण्डेय "सुमित"

न  कोई  हमसफ़र  होगा   न  कोई   कारवां  होगा
चले  जाएंगे   जब   तन्हा   न   कोई  पासबाॅ॑ होगा
फना हो  जायेंगे  फिर  भी  रहेगी  रूह  ये  कायम
न जाने कौन सा फिर जिस्म इसका आशियां होगा

पासबाॅ॑--रक्षक
हरिशंकर पाण्डेय "सुमित"

शायरी की  अदा  अपना  असर दिखाती है
हसीं  एहसास  की   हर  बात   रंग लाती है
जब ये जज़्बात यकायक ही बोलते हैं कभी
बात  हौले  से   तहे दिल  में  उतर  जाती है

हरिशंकर पाण्डेय "सुमित"


मेरे चंद शेर आप के हवाले----

माँ के हाँथों की रोटियों में बड़ी लज्ज़त थी,
 किसी निवाले में अब  वह मज़ा नहीं आता!

शायरी इश्क़ की हो  दाद तो मिल जाती है
ज़िक्र माॅ॑ का हो बात दिल में उतर जाती है

हुई  है  पार  तूफ़ाॅ॑  में   सदा   ईमान की  कश्ती
वफ़ा जिनकी रगों में  वे दिलों पर राज करते हैं

बड़ी ही  आस  लेकर  जब  वफ़ा  ने  ख़ुद  दुआ माॅ॑गी
गजब  की  शान से  रब ने  उसे  खुशियाॅ॑ आता कर दी

वह माॅ॑गती  है  सब  कुछ औलाद के लिए
खुद के लिए उसकी कोई मन्नत नहीं होती
बच्चों  को  पालती  है  ममता की  छाॅ॑व में
माॅ॑  से  बड़ी  जहान  में ज़न्नत  नहीं  होती

हम  उनका दर्द  हरदम बाॅ॑ट कर उनको हॅ॑साते हैं
मगर हैरत  वो जल जाते हैं जब हम मुस्कराते हैं

कभी मजबूरियाॅ॑ भी  रोकती हैं पेश कदमी से
वफ़ा जब दर्द की दहलीज़ पर लाचार होती है

हमें  उनकी  वफ़ा  पर था भरोसा ख़ुद से भी ज़्यादा
मगर  बेबस   हुए   तकदीर   ने   जब   बेवफ़ाई   की

सूबे की  बात  कर  न  जमाने की  बात  कर
पैसे  की बात  कर  न खजाने की  बात  कर
किस्से - कहानियाॅ॑  कई   हमने  सुनी   मगर
दिल  झूम  जाए  ऐसे  तराने  की  बात  कर

मैंने  पूॅ॑छा  कि   बार-बार  रूठते  क्यों हो
मुझसे बोले कि  मनाते हो  मज़ा आता है

हरिशंकर पाण्डेय"पाण्डेय"

हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'
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किरदार  हर तरह के  निभाता  है  आदमी
गिरता है  कभी खुद को  उठाता है आदमी
सीने में मचलती हैं ख़्वाहिंशे भी यूॅ॑ 'सुमित'
उम्मीद से  सपनों  को  सजाता  है  आदमी

 हरिशंकर पाण्डेय "सुमित"
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  ग़म के साए में भी खुशियाॅ॑ तलाश लेगा जो
उसी  से  दर्द  भी  इक  दिन  पनाह  माॅ॑गेगा

हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'

कभी  मजबूरियाॅ॑ भी  रोकती हैं  पेश कदमी से
मुहब्बत  में  वफ़ा को  इस तरह लाचार देखा है

हरिशंकर पाण्डेय "सुमित"

बड़ी  तलाश थी  फूलों की  मिल  गये  काॅ॑टे
चुभे बहुत  मगर जीना भी सिखाया मुझको

जो  परायी पीर से  अनजान रहते हैं यहाॅ॑
वे किसी के दर्द काअनुमान करते हैं कहाॅ॑

सदा  चालें  सियासत की  बख़ूबी खेल जाते  हैं
किसी भी हद तलक वो दाॅ॑व अपनाआज़माते हैं


हरिशंकर पाण्डेय सुमित


बन जाओ  फरिश्तों से भी बढ़कर यहाॅ॑ मगर
हर  हाल  में  उठती  हैं  ज़मानें की उंगलियाॅ॑

हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'


 मेरे कुछ ताजातरीन शेर आप की खिदमत में..

हर  इमारत  की  बुलंदी  है  टिकी  'बुनियाद'  पर
छिप के सह लेती सभी कुछ पर नज़र आती नहीं


बड़ी है अहमियत नदियों की और झीलों की
हमारी   प्यास   समुंदर    नहीं  बुझा  सकता


आज तक जिसने मेरे दिल को आजमाया है
उनकी यादों के सिवा  कुछ भी नहीं पाया है

इक अलग अंदाज़ से दिल का धड़कना
मान लो  उल्फत की है  पक्की  निशानी
गैर की  आॅ॑खों  में भी अक्सर  खटकना
जान लो  शोहरत  की है  सच्ची निशानी


अगर ग़म आ गया है बन के काॅ॑टे आज दामन में,
खिलेंगे  फूल  खुशियों  के  बहारें फिर से आएंगी


किताब ए जिंदगी से ढूॅ॑ढ़ कर एहसास लाया हूॅ॑
रॅ॑गीं  तहरीर को पढ़ लो हसीं जज़्बात लाया हूॅ॑


बनाना है  मकाॅ॑  अपनी  मुहब्बत का  अगर यारो
वफ़ा को साथ रख बुनियाद को पक्की बना लेना


बड़ी है अहमियत नदियों की और झीलों की
हमारी   प्यास   समुंदर    नहीं  बुझा  सकता


मतलब परस्त  हम हुए  बढ़ती  उमर के साथ
बचपन की  वो  पाकीज़गी  लायें कहाॅ॑ से हम


अजब सी कशमकश की इक गजब तस्बीर सी उभरी
कलम ने  ग़म की स्याही  से  लिखी  जब  दास्तां मेरी


हमे  गम की  घटाओं  के  अँधेरे क्या डरायेंगे
छटेंगे  दुःख भरे  बादल,  सितारे  मुस्करायेंगे
सलीके से चले हैं  हौसले का थाम कर दामन
यक़ीनन कामयाबी का नया गुलशन सजायेंगे

हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'
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एक शानदार ग़ज़ल

2122    2122    2122   212

कुछ नए अहसास दिल के गुलसिताँ  हो जाएंगे ।
वस्ल पर  मेरे  तसव्वुर  फिर  जवाँ  हो  जायेंगे ।।

मुस्कुरा  कर   रूठ  जाना  क़ातिलाना  वार  था ।
क्या  खबर  थी आप  भी  दर्दे  निहां हो जायेंगे ।।

मत  करो  चर्चा  अभी  वादा  निभाने  की यहाँ ।
वो  अदा  के  साथ  बेशक़  बेजुबाँ  हो  जायेंगे ।।

ये  परिंदे  एक दिन उड़  जाएंगे सब नछोड़कर ।
बाग़  में  खाली   बहुत  से आशियाँ  हो जायेंगे ।।

इश्क़  पर  पर्दा   न  कीजै  रोकिये  मत चाहतें ।
एक दिन जज्बात तो  खुलकर बयां हो जायेंगे ।।

रोज़ मौजें काट जातीं हैं यहां साहिल को अब ।
ये   थपेड़े   जिंदगी   की   दास्ताँ   हो   जाएंगे ।।

उम्र की दहलीज़ पर खिलने लगी  कोई  कली ।
देखना   उसके   हजारों  पासवां   हो   जाएंगे ।।

ऐ  परिंदे  गर   उड़ा   तू  दायरे  को  तोड़   कर ।
दूर  तुझसे  ये  ज़मीन  ओ  आसमां  हो जाएंगे ।।

उसकी फ़ितरत फिर तलाशेगी नया इक हमसफ़र।
डर  है  गायब  आपके  नामो  निशां  हो  जाएंगे ।।

दिल  में  घर  मैंने  बनाया  था  मगर  सोचा न था ।
उनकी  ख्वाहिश में  यहां इतने  मकाँ हो जाएंगे ।।

कुछ  तो  रिंदों  का  रहा  है  जाम  से भी वास्ता ।
बेसबब  क्यों  रिन्द उन पर  मिह्रबां  हो  जायेंगे ।। 

             --नवीन मणि त्रिपाठी

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सलीका  और  हुनर  सबके दिलों पर छा ही जाता है
असर  तहज़ीब  का  सबकी नज़र में आ ही जाता है

दर्द भी  इश्क़ की  खुशियों पे  फ़िदा होता है
ये ऐसी क़ैद है  जिसमें  रिहाई भी  नहीं होती


कई नाकामियाॅ॑ मिलती हैं वक्त  के  पहले, 
ये   मुकद्दर  भी  ज़ख्म  बार - बार  देता है
छोड़ दो फैंसला सारे जहाॅ॑ के मालिक पर,
हुनरमंदों   को  वो  मौके   हजार  देता  है

हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'
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मेरी ख़्वाहिश का वो चमन नहीं मिला फिर भी
मेरे  ख़्वाबों  के   रगो  में .......  बड़ी  रवानी है


हुनर हिम्मत हौसला हासिल ख़ुदी  ने जब किया
रास्ते   रहबर  बने  मंज़िल  ने  भी सजदा  किया


पाॅ॑व  को अपने  सिकोड़े कर रहे थे  वे  बसर
फट गई चादर पुरानी मुफलिसी  की  मार  से

हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'


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जिंदगी  की  धूप में  वो  बन गया साया मेरा
रौशनी बन छा गया जब जब अॅ॑धेरा हो गया

हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'

मुस्कुराहट  देखना   मैं  चाहती   हूॅ॑   आपकी
आज ख़ामोशी ने मुझसे प्यार से ये कह दिया



हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'
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जिंदगी को मानकर  सौगात  यदि
एक   दूजे   को   गिरायें  ना  कभी
हर  किसी  को  गर  बचायें हार से
जीत जायें बाज़ियाॅ॑ फिर हम सभी

हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'

ग़म  ने  बखशा  है   किसे  इतने  बड़े  संसार  में
हर  खु़शी  बिकती नहीं  दुनिया  के इस बाजार में


हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'

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हमारी जिंदगी के मायने  कुछ हों  न   हों  लेकिन

तुम्हारा  ज़िक्र  आते  ही  हमारा   नाम   आता  है 

पियूष अवस्थी

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 ताज़ा शेर

एक  दूजे  की  ख़ुशी  में    हम  ख़ुशी  गर मान लें

कुछ नहीं मुश्किल जहाॅ॑ में दिल से गर हम ठान लें

जब तलक  सोती रही वो, नींद  मुझसे  दूर थी

जग गई  तकदीर फिर भी नींद क्यों  आई नहीं

हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'
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ऐ आफ़ताब अपनी  गर्मी  समेट  लो  अब

ठंडी हवाएं आवो, यह  दिल  बुला  रहा है

ऐ रास्ते  के पत्थर   हट जावो  रहगुज़र से

फूलों महक  लुटाओ  मेरा लाल आ रहा है


अपने बेटे के अगवानी में माॅ॑ के उद्गार

हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'


कुदरत ने,  कैसा  तांडव  दिखलाया  है,
भारी  वर्षा   से     केरल  अकुलाया  है।
रब रूठा, घर  छूटा  अपने  बिछड़  गए,
सब कुछ  नष्ट  हुआ  बरबादी  लाया है।

ऐ  ख़ुदा  इतनी  तबाही  यह  सितम
क़हर  क़ुदरत का बहुत जा़लिम बना

कहर ने बरसात के  बर्बाद  हर घर  कर दिया
जान धन दौलत गई  मजबूर  बेघर  कर दिया
हर तरफ  जैसे  कयामत की   तबाही  छा गई
लूट ली खुशियाॅ॑ सभी ग़मगीन मंज़र कर दिया

हरिशंकर पाण्डेय



ताज़ातरीन शेर


रही  रहबर  हवा जब  लौ मचल कर  झूम जाती थी 
बनी  तूफ़ान   क्यों  हॅ॑सते चिरागों   को  रुला डाला

हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'


हवा के  तेज  झोंकों ने  बुझाया जिन चिरागों को
हक़ीक़त में उन्हीं के साथ रौशन  लौ चमकती थी


हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'

तुम  मेरी गलतियों को,भूल सको तो बेहतर,

वरना  हमको भी, मनाने का  हुनर आता है!


हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'

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गुज़र हो दश्तसे तन्हा तो शायद सुन सके तूभी,

गूँजती  चीख  सन्नाटों की  मैं जो रोज़ सुनता हूँ.
    

"साग़र"

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अपने लिए  उसने कभी माॅ॑गी नहीं दुआ
मेरे लिए ही  हाॅ॑थ   दो  जोड़े  हजार बार

उससे  बड़ा है कौन अब दुनिया  के सामने

हर शब्द छोटा पड़ गया अब  माॅ॑ के सामने

हरिशंकर पाण्डेय


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बने थे हमसफर हम और दिल से आशनाई की
ख़ता हमसे हुई क्या  वक्त  ने  फिर बेवफ़ाई की

जब  गुलों  से अपनी  यारी  हो गई
चुभन खारों  की  भी प्यारी  हो गई

हरिशंकर पाण्डेय  'सुमित'



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बहुत छोटा सा प्यारा सा  मगर सबसे  निराला  है
सभी अपने बसे  इस दिल के  प्यारे आशियाने में

जब शरीफों की शराफ़त पर कभी शामत गिरी

पैतरे  बदमाशियों  के   कुछ  नज़र आने    लगे

जीत लो हर एक बाजी  हौसले के जोर से
नाज़ हो अंजाम को आगाज़  ऐसा चाहिए
                              (मेरी गज़ल़ से)

माता पिता बुजुर्ग से  हर घर की शान है

सन्मान उनका  राम की  पूजा  समान है




कभी जब गर्दिश ए हालात का तूफ़ान  भी आये 

मगर तुम फितरत-ए-ईमान  को  मिटने नहीं देना

ये कुदरत के नजारे भी   हमें जीना सिखाते हैं

भरो कुछ रंग जीवन में  हमें यह भी दिखाते हैं

हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'




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हमे  गम की  घटाओं  के  अँधेरे क्या डरायेंगे
छटेंगे  दुःख भरे  बादल,  सितारे  मुस्करायेंगे
सलीके से चले हैं  हौसले का थाम कर दामन
यक़ीनन कामयाबी का नया गुलशन सजायेंगे

हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'

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हमसे हुए वे दूर क्या अब हम बिखर गए

आंखों  में   मेरे  बेशुमार  अश्क  भर  गए
सब   लोग   मेरे  ज़ख्म  ढूंढते    रहे  मगर
हम   अपन दर्द   से  ही  कई  बार मर गए


 अनिल कुमार राही
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    ग़ज़लकार श्री नवीन मणि त्रिपाठी जी की कलम से

2122 2122 2122 212 
भूँख से  मरता  रहा  सारा  ज़माना  इक  तरफ़ ।
और वह गिनता रहा अपना ख़ज़ाना इक तरफ़।।

बस्तियों  को  आग  से  जब भी बचाने मैं चला ।
जल गया मेरा मुकम्मल आशियाना इक तरफ ।।

कुछ नज़ाक़त कुछ मुहब्बत और कुछ रुस्वाइयाँ।
वह बनाता  ही  रहा दिल में ठिकाना इक तरफ ।।

ग्रन्थ फीके पड़ गए फीका  लगा  सारा  सुखन ।
हो  गया  मशहूर  जब तेरा फ़साना इक तरफ ।।

मिन्नतें  करते  रहे  हम  वस्ल की ख़ातिर मगर ।
और तुम करते रहे मुमक़िन बहाना इक तरफ़ ।।

हुस्न  का  जलवा  तेरा बेइन्तिहाँ  कायम  रहा ।
और वह अंदाज भी था क़ातिलाना इक तरफ़ ।।

बात  जब  मतलब  पे  आई  हो गए हैरान हम ।
रख दिया गिरवी कोई रिश्ता पुराना इक तरफ़ ।।

बेसबब  सावन  जला  भादों  जला बरसात में ।
रह गया मौसम अधूरा आशिकाना इक  तरफ ।।

जब से मेरी मुफ़लिसी के दौर से वाक़िफ़  हैं वो ।
खूब दिलपर लग रहा उनका निशाना इक तरफ़।।

हक़  पे  हमला  है  सियासत छीन लेगी रोटियां ।
चाल कोई चल  रहा  है शातिराना  इक  तरफ़ ।।

बे  असर  होने  लगे  हैं  आपके  जुमले   हुजूऱ ।
आदमी  भी  हो रहा है अब सयाना इक तरफ़ ।।


        श्री नवीन मणि त्रिपाठी
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किसी भी दिल पे झुर्रियां कभी नहीं पड़ती

वह  धड़कता  है  इसलिए  जवान  रहता है

पहले  हर बात  पर  लगते  थे  ठहाके यारो

अब तो शरमा के लतीफे भी सर झुकाते हैं


किसी को दर्द ने बख्शा नहीं जमाने मे

ग़मों का है बड़ा किरदार हर फ़साने में


आता है जिंदगी में ऐसा समय कभी

ईमान की पटरी से उतरता है आदमी


बड़े बेज़ार थे हम भी बड़ी ख़ामोश दुनिया थी

जुड़े सब  यार  मुझसे, नूर आया जिंदगानी में



@हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'

कड़े मौसम  कठिन हालात में  उसको जवाॅ॑ देखा

वफ़ा वो फूल है  जिसकी कभी खुशबू नहीं जाती





एक तस्वीर में चेहरे पे  तबस्सुम है  मगर

मुस्कुराए थे कभी  यह भी हमें याद नहीं

हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'


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पसीने से मैं अपने  वो लिख रहा हूं

जो किस्मत में मेरे लिखा ही नहीं है

सूफी सुरेश चतुर्वेदी



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कौन कहता है कि भगवान को नहीं देखा

माॅ॑ की सूरत में ही  भगवान नज़र आए हैं

वह  मांगती  है  सब  कुछ औलाद के लिए

खुद के लिए उसकी कोई  मन्नत नहीं होती
बच्चों  को  पालती है  ममता  की  छांव  में
माॅ॑  से  बड़ी  जहाॅ॑  में  जन्नत नहीं   होती!!

हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'





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अजब  है  जिंदगी  का  यह नज़ारा भी  मेरे यारो

दिया है ज़ख्म जिसने अब वही मरहम  लगाता है

  हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'





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हमारे  प्रभु, इशारा  भक्त  का  पहचान  लेते है

किसे देना है  क्या  कब और  कैसे जान लेते हैं 

  हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'





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दोस्तों,  आप लोगों ख़िदमत में कुछ ताज़ातरीन शेर , मुक्तक और ग़ज़ल पेश कर रहा हूँ। 

     आप लोगों की पसन्द को मद्देनजर रखते हुए हमने कुछ चुनिंदा रचनाएँ ही पोस्ट की हैं। 


    आप सभी लोगों के प्यार और आशीर्वाद ने मेरी ज़िंदगी को पूरी तरह से बदल दिया।


                 बहुत बहुत धन्यवाद!!


Jab inayat aap jaise doston ki ho gai

Toot kar bikhare the hum uthkar sanvarna aa gaya

जब  इनायत  आप  जैसे   दोस्तों  की  हो  गई

टूट कर बिखरे थे पर फिर से  सॅ॑वरना आ गया 

हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'






Maine poochha tum ko mujhse pyar hai kitana kaho

Usane meri julf ko chhu kar ke fir sahala diya

मैने  पूँछा  तुमको मुझसे  प्यार है  कितना  कहो

उसने मेरी ज़ुल्फ़ को छूकर के फिर सहला दिया

Bikhar kar jo sanwarte hain

Wahi kuchh kar gujarte hain

बिखर  कर  जो सँवरते  हैं

वही  कुछ  कर  गुजरते  हैं





Bacha koi nahin unki najar se aaj tak yaaro

Prabhu ki us adalat me khara insaaf hota hai

बचा कोई नहीं उनकी नजर से आज तक यारो

प्रभू की  उस अदालत में  खरा इन्साफ होता है




Ab to Khushi ki chah me milte hain gam mujhe

Bachpan me bina mol ki khushiyan bahut mili

अब  तो  ख़ुशी  की चाह  में  मिलते हैं  ग़म  मुझे

बचपन में  बिना  मोल की खुशियाँ  बहुत  मिली



हरिशंकर पाण्डेय  'सुमित'


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किसी कांटे से कभी खौफ़ नहीं खाए हम
ज़ख्म  फूलों  ने  दिए  भूल नहीं पाए हम








ज़िन्दगी जब तक रही, शिकवे सभी करते रहे
मौत  ने  अपना लिया, तारीफ़ का  तांता लगा


गुरूरे  इश्क   दिखलाना कभी अच्छा  नहीं  होता

अमीरी  में  भी   इतराना कभी अच्छा  नहीं  होता
फ़लक के बादलों का भी ज़मीं  पर  ही ठिकाना है
बुलंदी  पर  बहक  जाना कभी अच्छा  नहीं  होता


उनकी ख़ामोश निग़ाहों ने पढ़ लिया मुझको

मैंने कोशिश तो  बहुत की  थी मुस्कराने की
कोई भी  इल्म   मेरे  काम  कुछ  नहीं आया 
कोई  सूरत न रही  हाल-ए-दिल  छिपाने की


देख कर के  मुझे  इक अदा  से  तेरा

मुस्कुराना   मोहब्बत  का  पैगाम था
सर  झुका  के  हया  से   इशारा  तेरा
इश्क का सबसे प्यारा इक ईनाम था


रंजो-ग़म  सारे उड़े  तन-मन  खुशी से  भर गया

मैं  किसी मासूम के सँग आज  बच्चा  बन गया


आता है जिंदगी में भी ऐसा समय कभी
ईमान  की  पटरी  से  उतरता है आदमी



किस  बात  का   गुरुर   है  ऐ   बादलों   तुम्हे

फ़लक पे आज हो कल  तो  जमीं पे आना है


मै  ढूढ़ता  रहा  जिसे, शहरों में  बार बार,

घर तो मिले बड़े,मगर आँगन नही मिला!
दौलत की चकाचौंध के मंज़र बहुत दिखे,
पर  झूमता हुआ  मुझे सावन नहीं  मिला!

            


दौलत की ज़रूरत ही खींच लाई शहर में

वरना  बड़ा सुकून था उस गाँव के घर में


वो मेरे क़त्ल का  सामान  अपने साथ रखते हैं

मगर मिलते ही मेरे सर पे अपना हाँथ रखते हैं


हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'



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       अनमोल  दोहे



साचे मन  से  जो करे, कोई  श्रम  चित लाय।

तँय है पाना मधुर फल,भले समय लग जाय।।

कम शब्दों में बोल दे,  ऊँची  साँची  बात।

बड़ी अनूठी है कला, सबके हृदय समात।।




हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'



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                               शेर 


 
सलीका और हुनर  सबके दिलों पर   छा ही जाता है

असर तहज़ीब का अक्सर  जुबाँ  पर आ ही जाता है



ज़ख्म खाकर  बहुत बेचैन रहे हम अब तक
घाव देकर  उन्हें भी चैन आज तक न मिला

अब किसी दर्द का मुुुझ पर असर नही होता

ग़म के साये में भी  खुशियाँ  तलाश लेता हूँ


कभी गर्दिश मिले फिर भी,वफ़ा दिल मे  रहे कायम

किसी  भी   हाल  में  चंदन  महक अपनी लुटाता है

हरिशंकर पाण्डेय



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वे  ज़मीर को बेच कर बनते रहे अमीर
जाते-जाते बन गये खाली हांथ फ़कीर


राजेश 'तुक्का'

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वो दिन लम्हें अब तक ना बीते देख राज
यू तो कई साल  निकल गए  ज़िन्दगी के

राज कबीर✍


मेरे अहसास की गली से


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कोशिशें  हर बार सब  नाकाम तूफाँ की हुई
करम मालिक का समुंदर से ही यारी हो गई


हरिशंकर पाण्डेय


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हमारे  जांबाज़ वीर जवानों के लिए --



मोहब्बत है वतन से ये,  कभी  पीछे  नहीं हटते,

हमेशा  सरहदों  पर  जान की  बाजी  लगाते हैं!
हिफाज़त में वतन की,रहते हैं हर पल ये चौकन्ने,
नहीं  डर  है  इन्हे ये " मौत से  आँखे  लड़ाते हैं।"

हजारों फिट की ऊँचाई, जहाँ जीना ही मुश्किल है,

वहाँ  जांबाज़  बढ़ कर  जंग में  जलवा दिखाते हैं।
डटे  रहते  हैं  , बर्फीली  हवा  के  बीच   रातों  में,
निभाते  फर्ज़  हैं वो," हम  शुकूं की  नींद  पाते हैं।"

सभी को मौत का है खौफ, अपनी जान  प्यारी  है !

मगर  ज़ांबाज  वीरों को, वतन  की शान  प्यारी  है! 
फना  होने का डर , मन में  कभी इनके नही  आता,
हमेशा " मौत के साये " में  इनकी " पहरेदारी"  है!!!

                   हरिशंकर  पाण्डेय  'सुमित'


   

                         ll जय  हिन्द ll


                    


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     मुक्तक और  शेर


लिए आँखों मे मयखाना लबों पे जाम रखते हैं

ख़ता  उनकी हमारे सर  सदा इल्ज़ाम रखते हैं।। 


नशा   उनकी  नज़र  में है हमें बदनाम करते हैं। 

पिलाते हैं  अदाओं से   दिवाना नाम   रखते हैं।

              

गुजर जाती है सारी जिंदगी दो पाँव के बल पर।

सयानी मौत अब  देखो चली  है  चार कंधों पर।।



घाव ऐसा  दिया  है  गजब  कर  दिया। 

खूनका  एक  कतरा न  बहने   दिया।।

पीर मन का  मैं  चुपचाप ही  पी गया।

अश्क आँखों से अपने न गिरने दिया।।



दिया  है घाव  जो तुमने भरा  अब तक  नहीं देखो।

ज़खम दोगे कहाँ पर अब कोई मरकज़ नहीं खाली।।

मुझको मेरे  उसूल ने अब यूँ बड़ा किया।

झूठो की भीड़ में मुझे तन्हा खड़ा किया।।



लहू  बन  जाता  है  ये  अश्क़  मेरी  आँखों  में

झूठ बच कर निकल जाता है जब अदालत से



जहाँ  पर  रोज  चढ़ता  है  चढ़ावा  धन  कुबेरों  का

कल फिर उसी दहलीज़ पे एक और भूँखा मर गया 



सभी चालें  सियासत की  चलो  नाकाम  कर दें हम

बदल कर सोंच अपनी पर सियासत का कतर दें हम



शब ए ग़म जब कहीं कोई उजाला हो नहीं पाया     

दिया  बनकर  जला  है  साथ  मेरे   हौसला मेरा



लिखा है सच मगर अब झूठ बिकता है जमाने में

वफ़ा कायम कहाँ है अब  मोहब्बत  के  घराने  में



                 अनिल कुमार राही



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एक ताज़ातरीन ग़ज़ल----------------



ख़्वाब में आप आकर जगाते रहे,

बीते  लम्हों की बातें बताते रहे।।


मैं परेशानियों से घिरा था बहुत,

आप गीतों के मुखड़े सुनाते रहे।

आप अपनी ख़ुशी के लिये ख़ासकर,

मेरे दिल को मुसल्सल लुभाते रहे।


मैं  इरादे  बदल लूँ  इसी  वास्ते,

जाम उल्फ़त का हरदम पिलाते रहे।


मुझ पे कुछ तो असर हो इसी वास्ते,

आप महफ़िल पे महफ़िल सजाते रहे।



मैं जिऊँ ज़िंदगी आप की शर्त पर,

सोचकर बस यही आज़माते रहे।।

मेरी आँखों में सैलाब था अश्क़ का,

आप हँसते रहे मुस्कुराते रहे।।।।।।


मैं ग़रीबी से लड़ता रहा उम्र भर,

आप ग़ैरों पे दौलत लुटाते रहे।।


आप "राही"न समझे मुझे आज तक,

इसलिये मुझपे तुहमत लगाते रहे।।

"राही" भोजपुरीं, जबलपुर मध्य प्रदेश।


7987949078, 989350244



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                             ग़ज़ल


ज़रा-सी बात पर हो तुम  ख़फा अच्छा नहीं लगता।

जुदा होकर रहे फिर गमज़दा   अच्छा  नहीं लगता।। 



बहारें   चूमती  दामन  न  जाओ  छोड़कर  मुझको।

तुम्हारे  बिन कोई  मौसम जरा   अच्छा नहीं लगता।। 



हुए  मशहूर  हम  इतने  ज़माने  की  नज़र हम पर।

तुम्हे कोई  कहे   अब   बेवफा  अच्छा नहीं लगता।।


           


खुदाया  रूठ जाये तो  कसम रब की करूँ सजदा।

जुनूने   इश़क  में  ये आसरा  अच्छा  नहीं  लगता।।


              


मुहब्बत  पर भरोसा कर  लिए  हैं  आँख में आँसू।

बगावत  का सलीका यूँ    डरा अच्छा नहीं लगता।। 


                 


जुड़ी है  हर खुशी  तुमसे हकीक़त यह खुदा जाने।

नुमाॅया हो वफ़ा यह फलसफा अच्छा नहीं  लगता।। 


                 


तुम्हारा  साथ   था   राही  खुदाई  साथ  थी   अपने।

मगर अब प्यार का वो तज़किरा अच्छा नहीं लगता।। 




                (अनिल कुमार राही)





ज़ख्म देकर सलीके से  यहाँ  मरहम  लगाते हैं ।।

लगाकर चोट दिल पर पूछते अब हाल कैसा है।





     (अनिल कुमार राही)

गुरुवार, 28 जून 2018

नये शेर और ग़ज़ल की बहार


शुभ दिवस मित्रों 🌹🌹

क़ुरान ए पाक़ की आयत़ ये गीता ज्ञान है भारत,
सबाब ए नेक कर्मों का मिला वरदान है भारत,

भजन मंदिर के मेरे हैं अजान ए मस्जिदें मेरी,
जिसे जो चाहे वो समझे मेरी तो जान है भारत,

मुहब्बत ही धरम अपना दिवारें मजहबी तोडो,
अहिंसा, शांति की सदभावना, ईमान है भारत,

बचा कर दोस्तों रखना,इसे जालिम लुटेरों से,
हजारों लाडलों का ये अमर बलिदान है भारत

शहर की झिलमिलाती रोशनी में ढूँढते हो क्या,
अंधेरी गाँव की गलियाँ, भरा खलिहान है भारत

अगर धृतराष्ट्र हो अंधा,तो खिंचता चीर नारी का,
इन्हीं दुःस्सानों से आजकल हलकान है भारत,

दुआ है रब से "मीरा" की, रहे आबाद ये गुलशन,
ये वंदे मातरम,जन मन का सुन्दर गान है भारत,
                        ©कश्मीरा त्रिपाठी,
                        10/8/2018
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   हवा जब  रहनुमा  थी लौ मचल कर  झूम जाती थी
   बनी   तूफ़ान  अब  हॅ॑सते चिरागों   को   रुलाया  है
    हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'

      दोस्तों,  कुछ पुरानी यादें ताज़ा हो गईं। चंद शेर आपके हवाले------

बचपन की यादों से जोड़ने वाला एक शेर नजर है---

अब ख़ुशी  को   तलाशते  हैं  तो  पा  जाते   है ग़म
बचपन  में  खाली जेब  से, खुशियाँ खरीदते थे हम

दो शेर उल्फ़त.......

जिनकी उल्फ़त में इबादत की महक होती है
उनकी नफ़रत में  सलीके की झलक होती है

उनके नायाब एहसास की इक महक
सांस के  साथ  दिल में  समाने  लगी
दर्दे दिल को  तजुर्बा नया  मिल गया
धड़कनें  खिल  गई   मुस्कुराने  लगी


एक शेर दुश्मनी से.....

मेरे ही  कत्ल  का  सामान अपने  साथ  रखते हैं
वो जब मिलते हैं मेरे सर पे अपना हाँथ  रखते हैं


एक शेर इज़हार ए प्यार ......

गुंजाइश ए इकरार हो फिर दिल निसार कर देना
उनकी नज़र को पढ़ के इजहार ए प्यार कर देना

हटा  कर  बदगुमानी  को   हमें  रिश्ता  निभाना है
महकते गुल खिलाकर इक नया गुलशन सजाना है

रगों की रवानी..........

मेरी ख्वाहिश का वो चमन नहीं मिला फिरभी,
मेरे   ख़्वाबों   के    रगो   में   बड़ी  रवानी  है

पहचान

मिलो सबसे मगर अपनी कभी पहचान मत खोना
वजूद अपना  नदी  मिल कर समंदर से  गवाँती है


चलना बहुत संभल के..

चालों से शातिरों की रहना बहुत संभल के
मिलते हैं  राह में  ये  चेहरे  बदल बदल के

अजब सी कशमकश की  इक गजब तस्बीर सी उभरी
कलम  ने   ग़म की स्याही से   लिखी जब   दास्तां मेरी

हरिशंकर पाण्डेय   'सुमित'

उनके नायाब एहसास की इक महक
सांस के  साथ  दिल में  समाने  लगी
दर्दे दिल को  तजुर्बा नया  मिल गया
धड़कनें  खिल  गई   मुस्कुराने  लगी

हरिशंकर पांडेय "सुमित"

बने थे हमसफ़र हम और दिल से आशनाई की 
ख़ता  हमसे हुई क्या  वक्त ने  फिर बेवफ़ाई की


हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'

न  कोई  हमसफ़र  होगा   न   कोई   कारवां  होगा
विदा जब  होंगे तन्हा हम   न  कोई   पासबाॅ॑  होगा
फना होंगे  'सुमित' फिर भी  रहेगी  रूह  ये  कायम
न जाने कौन सा फिर जिस्म  इसका आशियां होगा

पासबाॅ॑--रक्षक
हरिशंकर पाण्डेय "सुमित"

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       एक ग़ज़ल

लफ़्ज़ों के  ये नगीने तो  निकले कमाल के
ग़ज़लों ने ख़ुद पहन लिए ज़ेवर ख़याल के

ऐसा न हो गुनाह की दलदल में जा फँसूँ
ऐ  मेरी  आरज़ू  मुझे  ले  चल सँभाल के

पिछले  जनम की  गाढ़ी कमाई है  ज़िंदगी
सौदा जो करना करना बहुत देख-भाल के

मौसम हैं दो ही इश्क़ के सूरत कोई भी हो
हैं इस के पास आइने हिज्र-ओ-विसाल के

अब क्या है अर्थ-हीन सी पुस्तक है ज़िंदगी
जीवन से  ले  गया वो  कई दिन निकाल के

यूँ ज़िंदगी से कटता रहा जुड़ता भी रहा
बच्चा  खिलाए  जैसे कोई माँ उछाल के

ये  ताज  ये अजंता  एलोरा के  शाहकार
अफ़्साने लग रहे हैं उरूज-ओ-ज़वाल के

कृष्ण बिहारी "नूर"। 

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नमस्कार दोस्तों 🌹🙏🌹
एक ग़ज़ल, इस्लाह निवेदित, 

वजन,,, २१२२...१२१२.....२२.

धार ए नदिया में जो रवानी है, 
हौसलों  की  यही  निशानी है,

आज फिर आँख में जो पानी है 
मेरे अपनों  की  मेहरबानी  है

पाँव में छाले आँख में मंजिल, 
जीस्त बस दर्द की कहानी है

ढायेगी फिर से ये सितम कोई, 
आज  रुत  फिर हुई सुहानी है

हो रहा दर्द अभी तक इसमें 
चोट  वैसे  तो  ये  पुरानी है

रोशनी से नहा उठी है फिजा, 
आज किसकी बरात आनी है

आँधियों के दिलों की चौखट पर, 
इक शम्आ हमको भी जलानी है

जो ये तुमसे हुई हमें उल्फत, 
आखिरी साँस तक निभानी है

धुल गई आँसूओं की बारिश में, 
फिर से  तस्वीर  वो  बनानी है

होंठ खामोश आँख है पुरनम, 
क्या  कोई  दास्ताँ  सुनानी है?

उनकी आँखों में जो नमीं देखी, 
हो  गई  रूह  पानी-पानी है

कुछ तो तुमको गुरूर होगा था, 
जो ये "मीरा"तेरी दिवानी है

                    कश्मीरा त्रिपाठी
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 एक ग़ज़ल, 

दिलों में  उतरने  को  जी चाहता है, 
गज़ल सा सँवरने को जी चाहता है,

तरसती हैं बाहें,जुदाई में उनकी, 
घटा सा बरसने को जी चाहता है,

सताता है हर पल तसव्वुर तुम्हारा 
सितमग़र पे मरने को जी चाहता है

मेरी जिंदगी के मधुर साज हो तुम, 
तुम्हें रोज  सुनने को जी चाहता है

ये मौसम के  मदमस्त  रंगी  इशारे, 
इन्हीं में फिसलने को जी चाहता है,

सुनाते हैं हम राजे दिल बेखुदी में, 
कहके  मुकरने  को जी चाहता है,

अभी बंद है जिस्म में रुह ए "मीरा"
फिजाँ में बिखरने को जी चाहता है,

           © कश्मीरा त्रिपाठी "मीरा"


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अंदाज   ऐसा   चाहिए

गीत के सुर को सजा  दे , साज  ऐसा  चाहिए l 
रुख हवा  का  मोड़  दे, "अंदाज" ऐसा चाहिए l

जिसमें हो जिंदादिली,ऐसा अलग किरदार हो ,
नाज़  हो  अंजाम  को, "आगाज़" ऐसा चाहिए l 

जंग के हैं शूरमा  इस  हिन्द के  शेर -ए -वतन ,
वीरता  भी  है  फिदा , "ज़ांबाज " ऐसा चाहिए  l

कुछ छिपायें कुछ बतायें, फितरत -ए -इंसान की,
जब  खुले खुशियाँ बिखेरे , "राज " ऐसा चाहिए l

हर इमारत की  बुलन्दी है  टिकी  बुनियाद  पर,
कल जो छूले  आसमाँ  को "आज" ऐसा चाहिए l 

हरिशंकर पाण्डेय "सुमित"

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ग़ज़ल

हो  रहा  था ख़ूब जिसका तज़किरा 
आख़िरश  आ  ही  गया वो फ़ैसला

आप  सब  शाइस्तगी  मत  छोड़िए
नस्ल-ए-नौ  को  है यही बस मश्वरा

कर लिया ये फ़ैसला हँस कर क़ुबूल
हर वतन वासी  का  बेहद   शुक्रिया 

देख  कर  ये  आपकी  दानिश-वरी
ख़ुश  यक़ीनन  हो  रहा  होगा ख़ुदा

आइए आपस में सुख-दुख बाँट लें
है  यही  तो  ज़िंदगी  का फ़लसफ़ा

ले  चलें   ऊँचाइयों  पर  मुल्क  को
साथ मिलकर तय करें हर फ़ासला

भरत दीप

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1212 1122 1212 22/112

न  पूछिये  कि  वो  कितना  सँभल के देखते हैं ।
शरीफ़   लोग  मुखौटे   बदल   के   देखते   हैं ।।

अज़ीब  तिश्नगी   है  अब   खुदा  ही  खैर  करे ।
नियत से आप भी अक्सर फिसल के देखते हैं ।।

पहुँच  रही है मुहब्बत   की  दास्ताँ  उन   तक ।
हर  एक  शेर  जो  मेरी  ग़ज़ल  के  देखते  हैं ।।

ज़नाब  कुछ  तो  शरारत   नज़र  ये  करती   है ।
यूँ  बेसबब   ही    नहीं वो  मचल के  देखते  हैं ।।

गुलों  का  रंग  इन्हें  किस   तरह   मयस्सर  हो ।
ये  बागवान  तो  कलियां  मसल  के  देखते  हैं ।।

ज़मीर  बेच   के  जिंदा   मिले   हैं  लोग  बहुत  ।
तुम्हारे  शह्र  में  जब  भी  टहल  के  देखते  है ।।

न जाने  क्या  हुआ  जो   बेरुख़ी  सलामत   है ।
हम उनके दिल के जरा पास चल के देखते हैं ।।

ये  इश्क़  क्या  है  बता  देंगे  तुझको  परवाने ।
जो शम्मा के लिए हर शाम जल के देखते हैं ।।

हुआ  है  हक़  पे  बहुत  जोर  का  ये हंगामा ।
गरीब  क्यूँ  यहाँ  सपने महल  के  देखते  हैं ।।

बचाएं दिल को सियासत की साज़िशों से अब ।
ये   लीडरान  मुहब्बत   कुचल  के  देखते हैं ।।

वही   गए   हैं   बुलंदी   तलक   यहां    यारो ।
जो अपने वक्त  के सांचे में ढल के देखते  हैं ।।

            -नवीन मणि त्रिपाठी

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           ग़ज़ल

एक अहसास मुहब्बत का जगाने निकले 
ग़ैर  तो ग़ैर थे  अपने  भी  सयाने निकले

एक  रिश्ता भी बनाया तो ज़माने निकले 
बेसबब  तर्क़ किया कितने बहाने निकले 

चंद लमहात की पहचान के  माने निकले 
उनके हमराह सफ़र करके ज़माने निकले 

एक लमहे से ख़ता होने का सदमा गुज़रा
एक मुद्दत  को सज़ायाब  ज़माने  निकले 

एक अफ़वाह का बाज़ार गरम  था बाहर
लोग निकले भी  घरों से तो डराने निकले 

बेयक़ीनी का असर होनेकी उम्मीद न थी 
और  ख़ुद से भी कई राज़ छुपाने निकले 

एक मुद्दत  में मुलाक़ात का मौसम बदला
रूबरू होके गिले- शिकवे पुराने निकाले 

बेवफ़ाई  का  सबब जो भी रहा वो जानें 
उनके किरदार में पोशीदा फ़साने निकले

ऐसे मक़्तब हैं यही नाम लिखा था उनपर
जाँच करने पै ,गुनाहों के ठिकाने  निकले

किशन स्वरूप
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बनो तो  ऐसे कि  तुम पर  हर इक  निगाह रहे
करो  कुछ ऐसा  कि  दुश्मन भी वाह-वाह कहे

हरिशंकर पाण्डेय "सुमित"

हम इश्क़ के मारों का इतना ही फ़साना है 
रोने को  नहीं  कोई  हँसने  को  ज़माना है 

ज़िगर मुरादाबादी

सबूतों और गवाहों   की  नहीं  उनको ज़रूरत है
प्रभू  की   उस  अदालत  में खरा इंसाफ़ होता है

हरिशंकर पाण्डेय "सुमित" 

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मेरे परम् मित्र शायर श्री अनिल कुमा राही की कलम से
ताजा तरीन शेर-----

शबे-ग़म जब कहीं कोई उजाला हो नहीं पाया
दिया बनकर जला तब  साथ मेरे हौसला मेरा


गुलों  को  चाहने  वालों  बहारों से  करो यारी
मगर मत भूलना काँटों की है सच्ची वफ़ादारी
 
         (अनिल कुमार राही)

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★ एक ग़ज़ल ★

  अलावा  मौत  के ,   उस  वक़्त भी  वो शख़्श  मरता है।
  कभी   जब   टूटके   मासूम - सा   सपना  बिखरता  है।

  जहाँ  पर ' वाह '  का  मौसम वहाँ  वो ' आह ' भरता है।
  कहीं  तो  दर्द  है  कोई    जो  रह - रहकर   उभरता  है ।

   गवाही  क्या ,   यहाँ  तो  बस   किराए  की  ज़बानें  हैं ,
   बड़ी  मुश्किल  से  कोई  बात  पर   अपनी  ठहरता  है ।

   पिता   को  बोझ  लगती  है    बड़ी  ही  लाडली  बेटी ,
   गरीबी  की  बहुत  पतली  गली   से   जब  गुज़रता  है ।

   कमी  हो ,   बेबसी  हो   या   निराशा   के   अँधेरे   हों ,
    वही   इन्सान  है   जो   ठोकरें   खाकर   सुधरता   है ।

    जुड़ी   थी   ज़िन्दगी  से  जो  तुम्हारे  नाम  की  चिट्ठी ,
    उसे   अब  बे - मुरव्वत    वक़्त का चूहा  कुतरता  है।

    ख़ुशी  उसकी ज़माने भर  की  ख़ुशियों  से बड़ी होती ,
    पिता  की ख़्वाहिशों  पर  जब  खरा बेटा  उतरता  है।

                      ★ कमल किशोर ' भावुक ' ★
 
                              7007298155
**********************************

                 एक ग़ज़ल -  संदेश

मिलेगा  मर्तबा ,  हस्ती  को   बचाये  रखना !
सफर के  वास्ते, कश्ती  को  सजाये  रखना !

कहीं  तूफाँ   तुम्हारा  रास्ता   क्या  रोकेगा ,
अपनी  यारी  यूँ  समुन्दर  से  बनाये  रखना !

जतन से  ध्यान से रिश्तों को सम्हाले रखना,
गुलों से प्यार के  गुलशन को सजाये  रखना!

बड़ी  है अहमियत , किरदार की यकीं  मानो,
बड़ा  अजीज  है , हर  वक़्त  निभाये  रखना !

हुनर  सफर  में  बुलंदी  तलाश ले  फिर भी ,
रहे  गरूर ना  नजरों   को  झुकाये   रखना !

भले हो सामना  हर  बार  इम्तिहाँ  से  सुनो ,
अपनी  तालीम को  जेहन में  बसाये  रखना !

वतन  की  मिट्टी  के  अनमोल  नगीने  बनकर ,
इसकी  तहजीब और शोहरत को उठाये रखना !

#हरिशंकर पाण्डेय'सुमित'
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( यह नज़्म मरहुंम शम्श मिनाई साहब ने लगभग 50 साल पहले कही थी जो आज भी ताज़ी लगती है)

 "राम"
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मैं राम पर लिखूँ मेरी हिम्मत कहीं है कुछ
तुल्सी ने बाल्मीक ने छोड़ा नहीं है कुछ

फिर ऐसा कोई खास कलमवर नहीं हूँ मैं
लेकिन वतन की खाक से बाहर नहीं हूँ मैं

कोई पयामे हक़ हो वो सब है मेरे लिए
दुनिया का हर बुलंद अदब है मेरे लिए

वो राम जिसका नाम है जादू लिए हुए
लीला है जिसकी ओम की खुशबु लिए हुए

अवतार बन के आई थी ग़ैरत शबाब की
भारत में सबसे पहली किरन इन्क़िलाब की

हर गाम जिसका सच का फरेरा ही बन गया
बनबास ज़िंदगी का सवेरा ही बन गया

एक तर्ज़ एक बात है हर खास-ओ-आम से
मिलते हैं कैसे कैसे सबक हमको राम से

ऊँचा उठे तो फ़र्क़ न लाये शऊर में
कोई बढ़े न हद से ज़्यादा ग़ुरूर में

जंगल में भी खिला तो रही फूल में महक
गुदड़ी में रह के लाल की जाती नहीं चमक

दिल से कभी ये प्यार निकाला न जायेगा
माँ बाप का ख्याल भी टाला न जाएगा

बेटा वही जो बाप का फरमान मान ले
शौहर वही जो लाज पे मरने की ठान ले

और बाप वो जो बेटों को लव-कुश बना सके
उनको जगत में जीने के सब गुन सिखा सके

भाई जो चाहे भाई को तलवार की तरह
जरनल जो रखे फ़ौज को परिवार की तरह

राजा वही ग़रीब से इंसाफ कर सके
दलदल से जातपात की हर दम उभर सके

जो वर्ण भेदभाव के चक्कर को तोड़ दे
शबरी के बेर खा के ज़माने को मोड़ दे

इंसान हक़ की राह में हर दम जमा रहे
यह बात फिर फ़ुज़ूल है लश्कर बड़ा रहे

ईमान हो तो सोने का अंबार कुछ नहीं
हो आत्मबल तो लोहे के हथियार कुछ नहीं

रावण की मैंने माना कि हस्ती नहीं रही
रावण का कारोबार है फैला हुआ अभी

छाया है हर सिम्त जो अँधेरा घना हुआ
हिंदुस्तान आज है लंका बना हुआ

वो ज़ुल्म से डरे जो उपासक हो राम का
सोने पे जान दे जो उपासक हो राम का

वो राम जिसने ज़ुल्म की बुनियाद ढाई थी
जिसके भगत ने सोने की लंका जलाई थी

हर आदमी ये सोचे जो होश-ओ -हवास है
वो राम से क़रीब है कि रावण के पास है

लोगों को राम से जो मोहब्बत है आजकल
पूजा नहीं अमल की ज़रूरत है आजकल

          शम्श मिनाई

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221 1221 1221 122

दरिया में उतर आए मियां जुल्म के डर से ।
पानी न गुज़र जाए कहीं आपके सर से ।।

लगता है मेरे गांव में जुमलों का असर है ।।
भटके मिले कुछ लोग शराफ़त की डगर से ।।

कातिल हुई है भीड़ यहां मुद्दतों के बाद ।
निकलो न अकेले ही कहीं रात में घर से ।।

खामोशियों के साथ सहा दर्दे सितम जो ।
गिर जाएगा वो शख्स ज़माने की नज़र से ।।

ता उम्र  मुसीबत से लड़ा आदमी  है जो ।
तौला उसे ही जायेगा दुनिया में गुहर से ।।

हर शय का जहाँ आखिरी अंजाम क़ज़ा है ।
जीना है अगर  जी तू वहाँ अपने हुनर से ।।

इन घोसलों पे किसकी नजर लग चुकी है अब ।
पूछा है परिंदों ने यही राज़ शजर से ।।

रोये वही हैं लोग मेरे हाल पे साकी ।
मतलब नहीं था जिनको मेरी खोज खबर से ।।

जब से गयी है लौट के आई नहीं है वो ।
क्या कह दिया साहिल ने मुहब्बत में लहर से ।।

          - नवीन मणि त्रिपाठी
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एक शेर

भँवर तूफान से  कश्ती को बचाना होगा
कठिन सफऱ है मगर पार तो जाना होगा

हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'

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क्या  हाल  था हमारा  उस  उम्रे -बेख़ुदी में
किस किसका नाम लेते,दुश्मन थे दोस्ती में

जीने  को एक  मुद्दत, मरने को एक लमहा
ये  कैसी  रहगुज़र  है चलने को ज़िन्दगी में

हम  भी  हमारी सूरत  पहचान, काश लेते
सूरत बदल के रख दी इस उम्र कलमुंही में

किस किसका नाम लेते किस किसने साथ छोड़ा
अब  रह गये अकेले इस दौरे-मुफलिसी में

उम्मीद  तो नहीं थी  आसान मुश्किलों की
हम पागये हैं मंज़िल रहज़न की रहबरी में

हमको हमारी सूरत अब याद तक नहीं है
कटता है वक़्त जब से दर्पण से दुश्मनी में

उम्मीद तो  बहुत थी, लेकिन यक़ीन कम है
अपना भी नाम होगा क़िस्मत की डायरी में

तासीर  भी  अजब  है जलते हुए दिये की
वो  मुब्तला रहा है जलकर; भी रोशनी में

स्वरूप
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*** ग़ज़ल***

122 122 122 122

न  जाने  किधर  जा  रही  ये डगर है ।
सुना है  मुहब्बत का  लम्बा सफ़र है ।।

तेरी  चाहतों  का  हुआ  ये  असर  है ।
झुकी  बाद  मुद्दत  के  उनकी नज़र है ।।

नहीं  यूँ  ही  दीवाने  आए  हरम तक ।
इशारा   तेरा  भी  हुआ  मुख़्तसर  है ।।

यहाँ राज़े दिल मत सुनाओ किसी को ।
ज़माना  कहाँ  रह  गया  मोतबर  है ।।

है साहिल से मिलने का उसका इरादा ।
उठी  जो  समंदर  में  ऊंची  लहर  है ।।

है मक़तल सा मंजर हटी जब से चिलमन ।
बड़ी    क़ातिलाना  तुम्हारी  नज़र  है ।।

बतातीं  हैं बिस्तर की ये सिलवटें अब ।
तुम्हें  नींद आती  नहीं  रात  भर  है ।।

वहीं   बैठती   है  वो   रंगीन   तितली ।
गुलों  के   लबों   पर  तबस्सुम जिधर है ।।

सुना हुस्न  वालों  के ख़ामोश लब हैं ।
लिपिस्टिक की रंगत का जाने का डर है ।।

ये कोशिश  है मेरी उसे  भूल जाऊं ।
मगर  याद आता  वो शामो सहर है ।।

तमन्ना  थी  जिसको  बसा  लूं मैं दिल मे ।
मेरी   आरजू   से   वही   बेख़बर  है ।।

मुलाक़ात   जाइज़  कहेगी  ये  दुनिया ।
तेरे  ही  गली   से   मेरी    रहगुज़र  है ।।

मुख़्तसर - छोटा
मोतबर - विश्वसनीय
मक़तल - कत्ल का स्थान
तबस्सुम - मुस्कुराहट
सहर - सुबह
रहगुज़र - रास्ता
         - नवीन मणि त्रिपाठी
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एक ताज़ातरीन ग़ज़ल  आपके हवाले---------

ख़ुद किसी की याद में दिल को जलाकर देखिये,
और फिर उसके लिये जग को भुलाकर देखिये।

पुरसुकूं दिल को मिलेगा काम ये जो कर दिया,
रो रहा बच्चा कोई उसको हँसाकर देखिये।।।

उनकी शोहबत में मिलेगी आप को शोहरत ज़रूर,
बस किसी महफ़िल में उनको भी बुलाकर देखिये।

राह-ए-उल्फ़त में फक़त गुल ही नहीं काँटे भी हैं,
आज़माना हो,किसी से दिल लगाकर देखिये।।

आप को भी चाहने वाले मिलेंगे बेशुमार,
बस किसी के दर्द में आँसू बहाकर देखिये।

दूर रहकर दिलरुबा से चैन किसको है मिला,
है नहीं गर चे यकीं बस आज़माकर देखिये।

प्यार करने का अगर करते हैं दावा आप तो,
लाख मुश्किल हो तो क्या फिर भी निभाकर देखिये।

आप का ही तज़किरा होगा शहर में तरफ़,
इक किसी मज़लूम को अपना बनाकर देखिये।

उम्र भर "राही" दवावों से रहेंगे दूर आप,
सादगी से ज़िन्दगी अपनी बिताकर देखिये।

"राही" भोजपुरीं, जबलपुर मध्य प्रदेश ।
7987949078, 9893502414  

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ताजातरीन ग़ज़ल

बरसात ने  ज़मीं  को  भिगोया  है  रात  भर,
किसको फिकर यहाँ फ़लक़ रोया है रात भर।

उस  ख़ाब पे  सुबह ने आ क़हर सा ढा दिया,
जिसको कि  सितारों  ने  संजोया है रात भर!

हँसते   हुए   ग़मों   से   ..निभाई   है   दोस्ती,
ज़ज़्बात  ने  खुदी  को  पिरोया  है  रात भर।

अरमाँ  निकल  रहे  हैं  चश्मतर  से  बाक़दर
सैलाब  ने   ख़ुशी  को   डुबोया  है   रातभर।

हर  शाम  ने  शमाँ  को  जलाया  सुकून  से,
जब  चाँद  बेबसी  को ही  रोया है रात भर।


               गोपाल एस सिंघ


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    मेरी ग़म से हुई यारी...........

बताना  चाहता  हूँ  मैं
दिखाना चाहता हूँ मैं। 
मेरी गम से  हुई यारी
निभाना चाहता हूँ  मैं।। 1

रहे कायम सदा रिश्ता
घराना  चाहता  हूँ मैं।।
गमों के इक शहर में घर
बनाना  चाहता हूँ मैं।। 2

हुआ  हैरान गम देखो 4
परेशां है  जरा  देखो। 
इरादा   हौसला   मेरा
बढाना चाहता  हूँ मैं।।

चलो वो बात हो जाये  3
सुलह अब चाहता हूँ मैं।
मुझे गम का खजाना दो
सजाना  चाहता  हूँ  मैं।। 

खुशी अब  दूर  से  देखे 5
नजारा  चाहता   हूँ  मैं। 
बसा दिल में गमें खुश्बू 
हँसाना  चाहता  हूँ  मैं।।

           (अनिल कुमार राही)

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221 2121 1221 212

ता-उम्र रोशनी का सफ़र ढूढ़ता रहा ।
मैं तो सियाह शब में सहर ढूढ़ता रहा ।।

मुझको मेरा मुकाम मयस्सर हुआ कहाँ ।।
घर अपना तेरे दिल में उतर ढूढ़ता रहा ।।

रुसवाइयों के दौर से गुजरा हूँ इस तरह ।
बस एक इश्क़ वाली नज़र ढूढ़ता रहा ।।

तुमको अना के दौर में इतनी खबर नहीं ।
कोई तुम्हारे दिल की डगर ढूढ़ता रहा ।।

इन साहिलों को छू के गयी थी जो एक दिन ।
सागर की मैं वो उठती लहर ढूढ़ता रहा ।।

लूटा है कुर्सियों ने तेरे देश को मगर ।
अखबार में छपी ये  ख़बर ढूढ़ता रहा ।।

अक्सर उसे मिली हैं  ये नाकामियां कि जो ।
आसान रास्तों का सफ़र ढूँढता रहा ।।

शायद नहीं था इल्म जो तुमको समझ सकूँ ।
नादां था राख में जो शरर ढूढ़ता रहा ।।

सारा चमन लगा है बियाबां मुझे हुजूऱ ।
सहरा में मुद्दतों से बसर ढूढ़ता रहा ।।

       नवीन मणि त्रिपाठी

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* एक ताज़ातरीन ग़ज़ल---------------

ये दुनिया मुझे आज़माने लगी है,
बुलंदी से नीचे गिराने  लगी   है।

कभी टूट कर प्यार मुझसे किया था,
मगर क्यों वो अब दूर जाने लगी है।।

खुले दिल से मिलते रहे थे मगर, वो,
कई राज़ दिल के छुपाने लगी है।।।।

नहीं देख पाती थी जो मेरे आँसू,
वो हर पल मुझे अब रुलाने लगी है।

लिपट कर जो साये से रहती थी हरदम,
वो मिलने से नज़रें चुराने लगी है।।

जिसे तीरगी रास आती नहीं थी,
चराग़ों को क्यों अब बुझाने लगी है।

बहुत साफ थे पैरहन जिसके "राही"
वो दामन में काँटे उगाने लगी है।।

"राही" भोजपुरीं,जबलपुर मध्य प्रदेश ।
7987949078, 9893502414  ।


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पेश है एक ताज़ातरीन ग़ज़ल---------

आये जो आप घर मेरे मौसम बदल गया,
यह देख दुश्मनों का जनाजा निकल गया।

जो शक़ की निगाहों से मुझे देखते रहे,
उनको मेरे ही सामने कोई कुचल गया।

ग़ैरों की ख़ुशी देख के सदमें में जो रहा,
बेवक़्त मर के आख़िरस दुनिया से कल गया।

शोहरत भी उसके हाथ में आकर चली गई,
हाथी किसी ढलान से गोया फिसल गया।

सूरज भी था शबाब पर जलता रहा बदन,
ऐसी लगी वो आग नगर सारा जल गया।

उस ज़लज़ले के बाद का मंज़र तो देखिये,
सहरा जो जल रहा था कल दरिया में ढल गया।

चाहा न जिसको प्यार से मैंने कभी " राही "
उस नाज़नीं को देख के दिल क्यों फिसल गया।

"राही" भोजपुरीं, जबलपुर मध्य प्रदेश ।
7987949078, 9893502414

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               ग़ज़ल जिंदगी की.......

खुशी के बुलबुले हैं कुछ, गमों का  बोलबाला  है
हँसी के हौसलों ने आज तक हमको सम्हाला  है

कई उम्मीद के बादल  यहाँ  छा कर  नहीं  बरसे
जमीं सब आस की प्यासी पड़ा सूखे से  पाला  है

बहुत  मजबूर है  ईमान  अब  सुनता नहीं  कोई
खड़ा है सच सरे महफ़िल मगर  होठो पे ताला है

नहीं कोई बचा अबतक खुदा की उस अदालत से
खरा  इंसाफ  है  उसका  तरीका  भी  निराला  है

करम के  साथ ही  अंजाम  है  नेकी बदी  का भी
इसी दिल मे खुदा का घर  यही मंदिर शिवाला है

हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'

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दिख जाए तेरा चेहरा...........
दिख जाये तेरा चेहरा  शायद  मुझे किसी में
दिन  रात  तुझको  ढूंढू हर एक अजनबी में !!

आने लगा  मज़ा  अब  इस दर्दे आशिकी में
रहने दो  मुझको  यारो  तुम  मेरी  बेखुदी में !!

थर्राये जिससे दरिया  डर  जाये ये  समुन्दर
शिद्दत हो काश् इतनी  होठों  की  तश्नगी में !!

अरमान कत्ल खुद  के खूने जिग़र खुदी का
करना पड़ा है मुझको क्या क्या न बेब़सी में !!

मिल जायेगी कंही तू बस ये ही सोचकर मैं
चलता  ही जा रहा हूं अंधी सी इक गली में !!

काटे  कटे  न  मुझसे  ये  हिज्र  तेरा  दिलबर
इक पल गुज़र रहा है सदियों की इक सदी में !!

सारा क़लाम साहिल उस पर ही कह दिया क्यूं
अपना भी  जिक़्र कर कुछ इस शेरे आखिरी में !!

--------------------------------Sahil Rampuri

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पेश है एक नाज़ुक ग़ज़ल---
""""""""""""""""""""""""""""""""""
सुनो आज वादा निभाने का दिन है,
नई शाख पे गुल खिलाने का दिन है।

शब-ए-वस्ल में यूँ न शर्माओ जानम,
ये दिल खोलकर गुदगुदाने का दिन है।

जवां जोश में पाँव फिसले हों शायद,
उसे आज अब भूल जाने का दिन है।

जो ग़ज़लें क़िताबों में हैं क़ैद अब तक,
उन्है बज़्म में गुनगुनाने का दिन है।।

मोहब्बत के गौहर जो पाये हैं हमने,
उन्हें अपने दिल में छुपाने का दिन है।

मुकम्मल है कितनी मोहब्बत ये अपनी,
इसे  आज  ही आज़माने  का  दिन है।।

जहाँ तुम मिले  थे  डगर में अकेले,
वहीं"राही"घर इक बनाने का दिन है।

"राही" भोजपुरी,जबलपुर मध्य प्रदेश
7987949078,9893502414


💐💐💐💐💐ग़ज़ल💐💐💐💐💐


गीत के सुर  को सजा  दे , साज  ऐसा  चाहिए
दिल तलक पहुँचे सदा अल्फ़ाज़  ऐसा चाहिए

कुछ  छिपायें  कुछ  बतायें, फितरतें  इंसान की
जब  खुले खुशियाँ बिखेरे , "राज " ऐसा चाहिए

राह खुद अपनी  बनाये फिर सजाकर मंज़िलें
रुख  हवा  का  मोड़  दे  'अंदाज़'  ऐसा  चाहिए

जीत ले  हर  एक  बाज़ी  हौसले  के   जोर  से
नाज़  हो  अंजाम  को,  "आगाज़" ऐसा चाहिए

जो  हटे पीछे   कभी ना, जंग  में  डटकर  लड़े
वीरता भी  हो  फिदा , "ज़ांबाज " ऐसा  चाहिए

हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'

**************ग़ज़ल*************


गम के साये  से  घिरे   दर्द  छिपाऊँ  कैसे!
ज़ख्म सीने में  दबा, तुमको  रिझाऊँ कैसे!!

तुम्हारी हर वफा का मैं सिला न दे  पाया
मेरे ही  दर्द से , तुमको मैं  मिलाऊँ   कैसे !!

अश्क़  गमगीन हो पलकों  में  छिपे बैठे हैं,
छलक जायें  न  कहीं , सामने आऊँ  कैसे !

तुम  मेरा हाल भी नज़रों से  भाँप लेती हो ,
एक चेहरे  पर  "नया चेहरा"  लगाऊँ कैसे!!

मैंने सोचा था,  बहुत  दूर  चला जाऊँ पर,
तुम  न भूलोगी मुझे, मै भी  भूलाऊँ कैसे!!

ये आरजू  है मेरी, राह  कुछ  निकल आए,
एक खुशियों का चमन आज सजाऊँ कैसे!!

हरिशंकर पाण्डेय'सुमित'

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  एक ताज़ातरीन ग़ज़ल------
""""""""""""""""""""""""
ये चिलमन में चेहरा छुपाओ न ऐसे,
मिरे दिल की धड़कन बढ़ाओ न ऐसे।

तुम्हें भर नज़र देखना चाहता हूँ,
नज़र फेरकर अब सताओ न ऐसे।

यही मेरी चाहत है दिल में रहो तुम,
किसी और से दिल लगाओ न ऐसे।

जो उल्फ़त के दीपक जलाये थे मैंने,
हवा दे के उसको बुझाओ न ऐसे।।

सफ़र है कठिन दूर मंज़िल है अपनी,
सरे राह  काँटे।  बिछाओ  न ऐसे।।

बहुत आज़माया है लोगों ने मुझको,
मुझे और तुम आज़माओ न ऐसे।।

मोहब्बत अगर तुमको मुझसे है "राही"
तो बाहें झटक करके जाओ न ऐसे।।

"राही" भोजपुरी, जबलपुर मध्य प्रदेश ।
7987949078, 9893502414 

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 नई गज़ल

यही सवाल अब  .... उलझा,   मेरे  फसाने  मे l
कम थी उल्फत..क्या मेरे दिल के आशियाने में !

गर खता थी  कुछ हमारी  तो   बस बता देते ,
हम तो माहिर  हैं,  किसी भी तरह मनाने  में ..!

उनकी यादें  भी वफादार  हैं , बसी  दिल में,
कौन कहता  है , वफ़ा  है  नहीं   ज़माने  में !

अब तो तूफान  का भी खौफ नहीं है मुझको ,
दिये  बुझा  कर  मैं  बैठा  गरीबखाने  में ....

तुम्हारी रूठने की यह अदा बड़ी कातिल,
क्या  मिलेगा तुम्हे  ऐसे  हमें   सताने  में ..

मगर  यकीन है, दावा है, अपनी चाहत पर,
तुम्हारे  हाँथ    बढेंगे , दिये   जलाने  में ....

हरिशंकर पाण्डेय'सुमित'


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                      नई ग़ज़ल
   
मिलेगा  मर्तबा ,  हस्ती  को   बचाये  रखना !
सफर के  वास्ते, कश्ती  को   सजाये  रखना !

कहीं  तूफाँ   तुम्हारा  रास्ता   क्या  रोकेगा ,
अपनी  यारी  यूँ  समुन्दर  से  बनाये  रखना !

जतन से  ध्यान से रिश्तों को सम्हाले रखना,
गुलों से प्यार के  गुलशन को सजाये  रखना!

बड़ी  है अहमियत , किरदार की यकीं  मानो,
बड़ा  अजीज  है , हर  वक़्त  निभाये  रखना !

हुनर  सफर  में  बुलंदी  तलाश ले  फिर भी ,
रहे  गरूर ना  नजरों   को  झुकाये   रखना !

भले हो सामना  हर  बार  इम्तिहाँ  से  सुनो ,
अपनी  तालीम को  जेहन में  बसाये  रखना !

वतन  की  मिट्टी  के  अनमोल  नगीने  बनकर ,
इसकी  तहजीब और शोहरत को उठाये रखना !

हरिशंकर पाण्डेय'सुमित'
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**ग़ज़ल**

गम के साये  से  घिरे,   दर्द  छिपाऊँ  कैसे!
ज़ख्म सीने में  दबा, तुमको  रिझाऊँ कैसे!!

तुम्हारी ही वफा  वाजिब , कसूर  मेरा  था  ,
अपने इस  दर्द से , तुमको मैं मिलाऊँ कैसे  !

अश्क़ गमगीन हो पलकों में छिपे हैं जाकर ,
छलक  जायें  न  कहीं , सामने जाऊँ  कैसे !

तुम  मेरा हाल यूँ ,नज़रों से भाँप लेती हो ,
एक चेहरे पर  "नया चेहरा"  लगाऊँ कैसे!

ये आरजू है मेरी, राह  कुछ  निकल आए,
एक खुशियों का चमन आज सजाऊँ कैसे!!

हरिशंकर पाण्डेय'सुमित'


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---------------- एक ग़ज़ल------------

दफ़अतन दर्द-ए-जिगर कोई बढ़ाकर चल दिया,
बिन धुआँ बिन आग के तनमन जलाकर चल दिया।

कुछ ग़लत करते जो चारागर को पकड़ी भीड़ ने,
शर्म से वो कुछ न बोला सर झुकाकर चल दिया।

मुल्क के नामी अदीबों से सजी उस बज़्म में,
एक बच्चा आईना सबको दिखाकर चल दिया।

वो फ़रिश्ता, रौशनी जिसने न देखी थी कभी,
जाते-जाते नूर की दौलत लुटाकर चल दिया।

मैंने इक शम्मा जलाई थी अमन के वास्ते,
अम्न का दुश्मन कोई आया बुझाकर चल दिया।

है जो जन्नत सरज़मीं का वादी-ए-कश्मीर है,
कौन उसमें आग नफ़रत की लगाकर चल दिया।

जब भरी हुंकार "राही" भारती के लाल ने,
जानी दुश्मन सरहदों से तिलमिलाकर चल दिया।

"राही" भोजपुरी, जबलपुर मध्य प्रदेश ।
7987949078,9893502414

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   ☆कहर इक तूफान का, कैसी तबाही दे  गया☆

कहर   इक   तूफान का,  कैसी "तबाही"  दे  गया I 
आशियाना  हर  "परिन्दे" का  उड़ा कर   ले  गया 

जड़  से उखड़े  कुछ  दरख्तों का मिटा नामोनिशां ,
अब  फिज़ा  वीरान  लगती ,  दर्द  कैसा   दे गया !

काल की आँधी थी  वो  उसने  किया  बर्बाद  सब,
मौत   का   तांडव  मचाकर   पीर  भारी  दे  गया।

जिनके अपने थे  गए अब  लौटना  मुमकिन नहीं,
अश्क़ का  सैलाब  देकर  सारी  खुशियाँ  ले  गया।

अब तो कलियों  और फूलों  की महक फीकी  हुई ,
सब  तितलियों में  उदाशी, जोश  गुलशन से गया !

इक   हवा के तेज  झोंके  से  सहम  जाते हैं  अब,
खूब  ज़ालिम था  वो तूफां, खौफ दिल में दे गया !

सरजमी  पर  लौट आये   सब  कहाँ  रुकते भला
अब  परिन्दों  को  बनाना  है  नया  इक  आशियाँ !

  हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित' -  967690881
   hppandey59@gmail.com


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एक ताज़ा ग़ज़ल-------------------

आज़माना  चाहते  हो आज़माकर देख लो,
मैं संभलता ही रहूँगा तुम गिराकर देख लो।

मैं   तसव्वुर  से  तुम्हारे  जा  न  पाउँगा  कभी,
कोशिशें कर लो मुसल्सल औ भुलाकर देख लो।

टूट जाऊँ मैं  ज़रा सी बात पर  मुम्किन नही,
हो यकीं तुमको न,घर मेरा जलाकर देख लो।

पायलें  छम छम  करेंगी  जब पढूँगा  मैं  ग़ज़ल,
चाँदनी शब में सनम महफ़िल सजाकर देख लो।

तुम   अकेले  रह  न  पाओगे  ये  दावा  है  मेरा,
कुछ दिनों को घर अलग अपना बसाकर देख लो।

चाँद धरती पर  उतर आयेगा  काली  रात  में,
तुम ज़रा चेहरे से ये चिलमन हटाकर देख लो।

आग लग जायेगी पानी में है "राही" को यकीं,
आज  बेपर्दा  नदी में  तुम  नहा कर  देख लो।।

राही भोजपुरी

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    प्यार  पर ग़ज़ल
प्यार करोगे प्यार मिलेगा,
अपनों का संसार मिलेगा ।

दिल से फ़र्ज़ निभाओगे जब,
जो चाहो अधिकार मिलेगा।।

जब अवाम का काम करोगे,
फूलों का तब हार मिलेगा।।

सोच लूट की छोड़ो वार्ना,
हर रस्ते पर खार मिलेगा।

चाल ढाल बदलो ख़ुद अपनी,
तभी  तुम्हें  दिलदार मिलेगा।।

जिसे खोजते हो बरसों से,
वो दरिया के पार मिलेगा।

महफ़िल तभी सजेगी "राही"
जब कोई  फ़नकार  मिलेगा।

"राही" भोजपुरी , जबलपुर मध्य प्रदेश ।
07987949078, 09893502414 



हरिशंकर पाण्डेय'सुमित'




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Shayari Saagar

मशहूर दिलकश हर रंग की शायरी

दोस्तों,  सजा कर  शायरी की इक नई सौगात  लाया  हूॅ॑ खुशी और ग़म के सारे रंग और हालात लाया हूॅ॑ किताब ए जिंदगी  से पेश हैं...