दोस्तों,
सजा कर शायरी की इक नई सौगात लाया हूॅ॑
खुशी और ग़म के सारे रंग और हालात लाया हूॅ॑
किताब ए जिंदगी से पेश हैं एहसास अब सारे
सजी तहरीर को पढ़ लो हसीं जज़्बात लाया हूॅ॑
सभी मज़हब यही कहते अमन हो भाईचारा हो
सही इन्सानियत का हर तरफ प्यारा नज़ारा हो
रहे कायम मोहब्बत हम सभी के दिल में यूं यारो
बढ़ाएं शान भारत की हमें हर फर्ज प्यारा हो
हरिशंकर पाण्डेय सुमित
बेसहारे को..... जिसने सहारा दिया
उसकी कश्ती को रब ने किनारा दिया
हरिशंकर पाण्डेय "सुमित"
तेरी कोशिश है ज़िंदगी अगर रुलाने की
मेरी आदत भी पड़ गई है मुस्कुराने की
हरिशंकर पाण्डेय "सुमित"
अगर है हौसले में जान तो अरमान जिंदा है
जहाॅ॑ ईमान जिंदा है वहीं इंसान जिंदा है
हरिशंकर पाण्डेय "सुमित"
ग़म ने बख्शा है किसे, इतने बड़े संसार में
मानते हैं हर ख़ुशी बिकती नहीं बाजार में
जब खिजां आई यक़ीनन दर्द गुलशन ने सहा
फिर बहारें आ गईं लेकर महक किरदार में
हरिशंकर पाण्डेय "सुमित"
होकर ख़फ़ा वो बोले मुझसे न बात करिए
हम चुप हुए तो यह भी उनको नहीं गवारा
हरिशंकर पाण्डेय "सुमित"
महक गुलशन के उस गुल की कभी फीकी नहीं पड़ती
हमेशा गर्दिश ए तूफ़ान में जो मुस्कराता है
हरिशंकर पाण्डेय "सुमित"
मोहब्बत से बड़ी दौलत नहीं यारो जमाने में
निभाए जो दिलों जां से वहीं धनवान हो जाए
हरिशंकर पांडेय "सुमित"
जब से मेरी मोहब्बत इबादत बनी
तब से महबूब मेरा ख़ुदा बन गया
हरिशंकर पाण्डेय "सुमित"
किसी भी हाल में अपने हुनर को ज़िंदा रख
लुटा दे रोशनी देखे ये ज़माना सारा
हरिशंकर पाण्डेय "सुमित"
उसी के फ़ैसले से चल रहा सारा ज़माना है
उसी की सरपरस्ती में हमें जीवन बिताना है
वही है एक मालिक जो दिखाता है हुनर अपना
बने मंदिर बने मस्ज़िद उसी का आशियाना है
हरिशंकर पाण्डेय "सुमित"
वो अक्लमंद था उसकी थी बड़ी साख यहाॅ॑
इश्क की राह में उसकी भी अक्ल मंद हुई
हरिशंकर पाण्डेय "सुमित"
सबूतों और गवाहों की नहीं उनको ज़रूरत है
प्रभू की उस अदालत में खरा इंसाफ़ होता है
हरिशंकर पाण्डेय " सुमित "
कई तालीम ठोकरों से मिली हैं हमको
दर्द के साथ तजुर्बे भी मिला करते हैं
हरिशंकर पाण्डेय "सुमित"
जड़ें काट कर पत्तियाँ सींचते हैं,
चमन में दिखे बागबाँ कैसे कैसे?
कश्मीरा त्रिपाठी,
हजारों दुश्मन ए जां हैं ज़मीं से अर्श तक मेरे
समझते हो जिसे सूरज मेरी चाहत से जलता है
साहिल लखनवी
कौन मरता है किसी के लिए मेरे यारो
अब तो लैला न रही और न मजनू है कोई
हरिशंकर पाण्डेय "सुमित"
किताब ए ज़िंदगी में इस कदर हमने नमी देखी
यक़ीनन आज वो पढ़कर गये हैं दास्तां मेरी
हरिशंकर पाण्डेय "सुमित"
मौजें ये समंदर की ठहरती नहीं कभी
साहिल की मुहब्बत भी बदलती नहीं कभी
हरिशंकर पाण्डेय"सुमित'
ज़िंदगी की है सीधी नहीं ये डगर
मानते हैं कि आसां नहीं है सफ़र
जब समुंदर में कश्ती उतारी सुमित
तब भॅ॑वर और तूफान से कैसा डर
हरिशंकर पाण्डेय "सुमित"
बनो कुछ इस तरह तुम पर हर इक निगाह रहे
करो कुछ ऐसा कि दुश्मन भी वाह-वाह कहे
हरिशंकर पाण्डेय "सुमित"
रोकती हैं रात की खामोशियाँ अक्सर मुझे।
सुबह की उम्मीद में लेकिन कहाँ ठहरा हूँ मैं।।
©गजेन्द्र
एक ताजातरीन मुक्तक
ज़िंदगी के भी कई रंग निराले देखे
कहीं नफरत तो कहीं चाहने वाले देखे
ग़म ने बख्सा हो जिसे ऐसा कोई शख़्स नहीं
दर्द के साथ ख़ुशी पालने वाले ...देखे
हरिशंकर पाण्डेय
यही उस्ताद रहनुमा बना यही रहबर,
वक्त ने हमको सिखाया है ज़माने का हुनर
हरिशंकर सुमित
ग़म में जिसको हौसला रख मुस्कुराना आ गया
तय है उसको ज़िंदगी से दिल लगाना आ गया
हरिशंकर पाण्डेय "सुमित"
खफा है आज मगर कल गले लगाएगी
ज़िंदगी है जनाब फिर से मुस्कराएगी
हरिशंकर पाण्डेय "सुमित"
उम्मीद पर निगाहें मेरी लगी हुई हैं
तड़पेगी मेरी मंज़िल मेरा इंतज़ार करके
हरिशंकर पाण्डेय
ये ऐसी कैद है इसमें रिहाई हो नहीं सकती
ये मर्जे इश्क है इसकी दवाई हो नहीं सकती
हरिशंकर पाण्डेय सुमित
भगवान के घर एक दिन जाते तो हैं सभी
पर नेकियां इंसान की मिटती नहीं कभी
हरिशंकर पाण्डेय "सुमित"
जब पराये ग़म से रिश्ता हो गया
एक इंसाॅ॑ था फरिश्ता हो गया
हरिशंकर पाण्डेय "सुमित"
अगर है हौसले में जान तो अरमान जिंदा है
जहाॅ॑ ईमान जिंदा है वहीं इंसान जिंदा है
हरिशंकर पाण्डेय "सुमित"
वैसे हर एक का अंदाज़ है अपना अपना
बात जो दिल में उतर जाए वही अच्छी है
कहीं सैलाब का मंज़र कहीं वीरान धरती है
कहीं हैं ज़िंदगी दोजख़ कहीं रहमत बरसती है
हरिशंकर
उठे दिल की आवाज या हक बयानी
ये फनकार की ही सदा बोलती है
फकत एक तहरीर के दम से हरदम
कलम बन के फन की ज़ुबां बोलती है
हरिशंकर पाण्डेय"सुमित"
तुमने तो अपने ग़म का फ़साना सुना दिया,
हम से जिगर के दाग दिखाए नहीं गये!!
शफ़ी ताजदार
उसे यक़ीन है फिर से बहार आएगी
चमन खिजां में कभी हौसला नहीं खोता
हरिशंकर पाण्डेय "सुमित"
उनके बिना उदास है महफ़िल कुछ इस तरह
जैसे किसी दरिया में रवानी....... नहीं...रही
सुमित
अरे तूफान तू सुन ले कहर ढाना है बेमानी
समुंदर यार है जिसका उसे तू क्या डुबायेगा
हरिशंकर पाण्डेय "सुमित"
न कोई हमसफ़र होगा न कोई कारवां होगा
चले जाएंगे जब तन्हा न कोई पासबाॅ॑ होगा
फना हो जायेंगे फिर भी रहेगी रूह ये कायम
न जाने कौन सा फिर जिस्म इसका आशियां होगा
पासबाॅ॑--रक्षक
हरिशंकर पाण्डेय "सुमित"
शायरी की अदा अपना असर दिखाती है
हसीं एहसास की हर बात रंग लाती है
जब ये जज़्बात यकायक ही बोलते हैं कभी
बात हौले से तहे दिल में उतर जाती है
हरिशंकर पाण्डेय "सुमित"
मेरे चंद शेर आप के हवाले----
माँ के हाँथों की रोटियों में बड़ी लज्ज़त थी,
किसी निवाले में अब वह मज़ा नहीं आता!
शायरी इश्क़ की हो दाद तो मिल जाती है
ज़िक्र माॅ॑ का हो बात दिल में उतर जाती है
हुई है पार तूफ़ाॅ॑ में सदा ईमान की कश्ती
वफ़ा जिनकी रगों में वे दिलों पर राज करते हैं
बड़ी ही आस लेकर जब वफ़ा ने ख़ुद दुआ माॅ॑गी
गजब की शान से रब ने उसे खुशियाॅ॑ आता कर दी
वह माॅ॑गती है सब कुछ औलाद के लिए
खुद के लिए उसकी कोई मन्नत नहीं होती
बच्चों को पालती है ममता की छाॅ॑व में
माॅ॑ से बड़ी जहान में ज़न्नत नहीं होती
हम उनका दर्द हरदम बाॅ॑ट कर उनको हॅ॑साते हैं
मगर हैरत वो जल जाते हैं जब हम मुस्कराते हैं
कभी मजबूरियाॅ॑ भी रोकती हैं पेश कदमी से
वफ़ा जब दर्द की दहलीज़ पर लाचार होती है
हमें उनकी वफ़ा पर था भरोसा ख़ुद से भी ज़्यादा
मगर बेबस हुए तकदीर ने जब बेवफ़ाई की
सूबे की बात कर न जमाने की बात कर
पैसे की बात कर न खजाने की बात कर
किस्से - कहानियाॅ॑ कई हमने सुनी मगर
दिल झूम जाए ऐसे तराने की बात कर
मैंने पूॅ॑छा कि बार-बार रूठते क्यों हो
मुझसे बोले कि मनाते हो मज़ा आता है
हरिशंकर पाण्डेय"पाण्डेय"
हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'
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किरदार हर तरह के निभाता है आदमी
गिरता है कभी खुद को उठाता है आदमी
सीने में मचलती हैं ख़्वाहिंशे भी यूॅ॑ 'सुमित'
उम्मीद से सपनों को सजाता है आदमी
हरिशंकर पाण्डेय "सुमित"
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ग़म के साए में भी खुशियाॅ॑ तलाश लेगा जो
उसी से दर्द भी इक दिन पनाह माॅ॑गेगा
हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'
कभी मजबूरियाॅ॑ भी रोकती हैं पेश कदमी से
मुहब्बत में वफ़ा को इस तरह लाचार देखा है
हरिशंकर पाण्डेय "सुमित"
बड़ी तलाश थी फूलों की मिल गये काॅ॑टे
चुभे बहुत मगर जीना भी सिखाया मुझको
जो परायी पीर से अनजान रहते हैं यहाॅ॑
वे किसी के दर्द काअनुमान करते हैं कहाॅ॑
सदा चालें सियासत की बख़ूबी खेल जाते हैं
किसी भी हद तलक वो दाॅ॑व अपनाआज़माते हैं
हरिशंकर पाण्डेय सुमित
बन जाओ फरिश्तों से भी बढ़कर यहाॅ॑ मगर
हर हाल में उठती हैं ज़मानें की उंगलियाॅ॑
हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'
मेरे कुछ ताजातरीन शेर आप की खिदमत में..
हर इमारत की बुलंदी है टिकी 'बुनियाद' पर
छिप के सह लेती सभी कुछ पर नज़र आती नहीं
बड़ी है अहमियत नदियों की और झीलों की
हमारी प्यास समुंदर नहीं बुझा सकता
अथाह जल से लबालब भरा समुंदर है
फिर भी प्यासे तेरे साहिल से लौट जाते हैं
इक अलग अंदाज़ से दिल का धड़कना
मान लो उल्फत की है पक्की निशानी
गैर की आॅ॑खों में भी अक्सर खटकना
जान लो शोहरत की है सच्ची निशानी
अगर ग़म आ गया है बन के काॅ॑टे आज दामन में,
खिलेंगे फूल खुशियों के बहारें फिर से आएंगी
किताब ए जिंदगी से ढूॅ॑ढ़ कर एहसास लाया हूॅ॑
रॅ॑गीं तहरीर को पढ़ लो हसीं जज़्बात लाया हूॅ॑
बनाना है मकाॅ॑ अपनी मुहब्बत का अगर यारो
वफ़ा को साथ रख बुनियाद को पक्की बना लेना
मतलब परस्त हम हुए बढ़ती उमर के साथ
बचपन की वो पाकीज़गी लायें कहाॅ॑ से हम
अजब सी कशमकश की इक गजब तस्बीर सी उभरी
कलम ने ग़म की स्याही से लिखी जब दास्तां मेरी
हमे गम की घटाओं के अँधेरे क्या डरायेंगे
छटेंगे दुःख भरे बादल, सितारे मुस्करायेंगे
सलीके से चले हैं हौसले का थाम कर दामन
यक़ीनन कामयाबी का नया गुलशन सजायेंगे
हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'
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एक शानदार ग़ज़ल
2122 2122 2122 212
कुछ नए अहसास दिल के गुलसिताँ हो जाएंगे ।
वस्ल पर मेरे तसव्वुर फिर जवाँ हो जायेंगे ।।
मुस्कुरा कर रूठ जाना क़ातिलाना वार था ।
क्या खबर थी आप भी दर्दे निहां हो जायेंगे ।।
मत करो चर्चा अभी वादा निभाने की यहाँ ।
वो अदा के साथ बेशक़ बेजुबाँ हो जायेंगे ।।
ये परिंदे एक दिन उड़ जाएंगे सब नछोड़कर ।
बाग़ में खाली बहुत से आशियाँ हो जायेंगे ।।
इश्क़ पर पर्दा न कीजै रोकिये मत चाहतें ।
एक दिन जज्बात तो खुलकर बयां हो जायेंगे ।।
रोज़ मौजें काट जातीं हैं यहां साहिल को अब ।
ये थपेड़े जिंदगी की दास्ताँ हो जाएंगे ।।
उम्र की दहलीज़ पर खिलने लगी कोई कली ।
देखना उसके हजारों पासवां हो जाएंगे ।।
ऐ परिंदे गर उड़ा तू दायरे को तोड़ कर ।
दूर तुझसे ये ज़मीन ओ आसमां हो जाएंगे ।।
उसकी फ़ितरत फिर तलाशेगी नया इक हमसफ़र।
डर है गायब आपके नामो निशां हो जाएंगे ।।
दिल में घर मैंने बनाया था मगर सोचा न था ।
उनकी ख्वाहिश में यहां इतने मकाँ हो जाएंगे ।।
कुछ तो रिंदों का रहा है जाम से भी वास्ता ।
बेसबब क्यों रिन्द उन पर मिह्रबां हो जायेंगे ।।
--नवीन मणि त्रिपाठी
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सलीका और हुनर सबके दिलों पर छा ही जाता है
असर तहज़ीब का सबकी नज़र में आ ही जाता है
दर्द भी इश्क़ की खुशियों पे फ़िदा होता है
ये ऐसी क़ैद है जिसमें रिहाई भी नहीं होती
कई नाकामियाॅ॑ मिलती हैं वक्त के पहले,
ये मुकद्दर भी ज़ख्म बार - बार देता है
छोड़ दो फैंसला सारे जहाॅ॑ के मालिक पर,
हुनरमंदों को वो मौके हजार देता है
हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'
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मेरी ख़्वाहिश का वो चमन नहीं मिला फिर भी
मेरे ख़्वाबों के रगो में ....... बड़ी रवानी है
हुनर हिम्मत हौसला हासिल ख़ुदी ने जब किया
रास्ते रहबर बने मंज़िल ने भी सजदा किया
पाॅ॑व को अपने सिकोड़े कर रहे थे वे बसर
फट गई चादर पुरानी मुफलिसी की मार से
हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'
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जिंदगी की धूप में वो बन गया साया मेरा
रौशनी बन छा गया जब जब अॅ॑धेरा हो गया
हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'
मुस्कुराहट देखना मैं चाहती हूॅ॑ आपकी
आज ख़ामोशी ने मुझसे प्यार से ये कह दिया
हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'
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जिंदगी को मानकर सौगात यदि
एक दूजे को गिरायें ना कभी
हर किसी को गर बचायें हार से
जीत जायें बाज़ियाॅ॑ फिर हम सभी
हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'
ग़म ने बखशा है किसे इतने बड़े संसार में
हर खु़शी बिकती नहीं दुनिया के इस बाजार में
हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'
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हमारी जिंदगी के मायने कुछ हों न हों लेकिन
तुम्हारा ज़िक्र आते ही हमारा नाम आता है
पियूष अवस्थी
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ताज़ा शेर
एक दूजे की ख़ुशी में हम ख़ुशी गर मान लें
कुछ नहीं मुश्किल जहाॅ॑ में दिल से गर हम ठान लें
जब तलक सोती रही वो, नींद मुझसे दूर थी
जग गई तकदीर फिर भी नींद क्यों आई नहीं
हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'
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ऐ आफ़ताब अपनी गर्मी समेट लो अब
ठंडी हवाएं आवो, यह दिल बुला रहा है
ऐ रास्ते के पत्थर हट जावो रहगुज़र से
फूलों महक लुटाओ मेरा लाल आ रहा है
अपने बेटे के अगवानी में माॅ॑ के उद्गार
हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'
कुदरत ने, कैसा तांडव दिखलाया है,
भारी वर्षा से केरल अकुलाया है।
रब रूठा, घर छूटा अपने बिछड़ गए,
सब कुछ नष्ट हुआ बरबादी लाया है।
ऐ ख़ुदा इतनी तबाही यह सितम
क़हर क़ुदरत का बहुत जा़लिम बना
कहर ने बरसात के बर्बाद हर घर कर दिया
जान धन दौलत गई मजबूर बेघर कर दिया
हर तरफ जैसे कयामत की तबाही छा गई
लूट ली खुशियाॅ॑ सभी ग़मगीन मंज़र कर दिया
हरिशंकर पाण्डेय
ताज़ातरीन शेर
रही रहबर हवा जब लौ मचल कर झूम जाती थी
बनी तूफ़ान क्यों हॅ॑सते चिरागों को रुला डाला
हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'
हवा के तेज झोंकों ने बुझाया जिन चिरागों को
हक़ीक़त में उन्हीं के साथ रौशन लौ चमकती थी
हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'
तुम मेरी गलतियों को,भूल सको तो बेहतर,
वरना हमको भी, मनाने का हुनर आता है!
हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'
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गुज़र हो दश्तसे तन्हा तो शायद सुन सके तूभी,
गूँजती चीख सन्नाटों की मैं जो रोज़ सुनता हूँ.
"साग़र"
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अपने लिए उसने कभी माॅ॑गी नहीं दुआ
मेरे लिए ही हाॅ॑थ दो जोड़े हजार बार
उससे बड़ा है कौन अब दुनिया के सामने
हर शब्द छोटा पड़ गया अब माॅ॑ के सामने
हरिशंकर पाण्डेय
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बने थे हमसफर हम और दिल से आशनाई की
ख़ता हमसे हुई क्या वक्त ने फिर बेवफ़ाई की
जब गुलों से अपनी यारी हो गई
चुभन खारों की भी प्यारी हो गई
हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'
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बहुत छोटा सा प्यारा सा मगर सबसे निराला है
सभी अपने बसे इस दिल के प्यारे आशियाने में
जब शरीफों की शराफ़त पर कभी शामत गिरी
पैतरे बदमाशियों के कुछ नज़र आने लगे
जीत लो हर एक बाजी हौसले के जोर से
नाज़ हो अंजाम को आगाज़ ऐसा चाहिए
(मेरी गज़ल़ से)
माता पिता बुजुर्ग से हर घर की शान है
सन्मान उनका राम की पूजा समान है
कभी जब गर्दिश ए हालात का तूफ़ान भी आये
मगर तुम फितरत-ए-ईमान को मिटने नहीं देना
ये कुदरत के नजारे भी हमें जीना सिखाते हैं
भरो कुछ रंग जीवन में हमें यह भी दिखाते हैं
हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'
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हमे गम की घटाओं के अँधेरे क्या डरायेंगे
छटेंगे दुःख भरे बादल, सितारे मुस्करायेंगे
सलीके से चले हैं हौसले का थाम कर दामन
यक़ीनन कामयाबी का नया गुलशन सजायेंगे
हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'
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हमसे हुए वे दूर क्या अब हम बिखर गए
आंखों में मेरे बेशुमार अश्क भर गए
सब लोग मेरे ज़ख्म ढूंढते रहे मगर
हम अपन दर्द से ही कई बार मर गए
अनिल कुमार राही
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ग़ज़लकार श्री नवीन मणि त्रिपाठी जी की कलम से
2122 2122 2122 212
भूँख से मरता रहा सारा ज़माना इक तरफ़ ।
और वह गिनता रहा अपना ख़ज़ाना इक तरफ़।।
बस्तियों को आग से जब भी बचाने मैं चला ।
जल गया मेरा मुकम्मल आशियाना इक तरफ ।।
कुछ नज़ाक़त कुछ मुहब्बत और कुछ रुस्वाइयाँ।
वह बनाता ही रहा दिल में ठिकाना इक तरफ ।।
ग्रन्थ फीके पड़ गए फीका लगा सारा सुखन ।
हो गया मशहूर जब तेरा फ़साना इक तरफ ।।
मिन्नतें करते रहे हम वस्ल की ख़ातिर मगर ।
और तुम करते रहे मुमक़िन बहाना इक तरफ़ ।।
हुस्न का जलवा तेरा बेइन्तिहाँ कायम रहा ।
और वह अंदाज भी था क़ातिलाना इक तरफ़ ।।
बात जब मतलब पे आई हो गए हैरान हम ।
रख दिया गिरवी कोई रिश्ता पुराना इक तरफ़ ।।
बेसबब सावन जला भादों जला बरसात में ।
रह गया मौसम अधूरा आशिकाना इक तरफ ।।
जब से मेरी मुफ़लिसी के दौर से वाक़िफ़ हैं वो ।
खूब दिलपर लग रहा उनका निशाना इक तरफ़।।
हक़ पे हमला है सियासत छीन लेगी रोटियां ।
चाल कोई चल रहा है शातिराना इक तरफ़ ।।
बे असर होने लगे हैं आपके जुमले हुजूऱ ।
आदमी भी हो रहा है अब सयाना इक तरफ़ ।।
श्री नवीन मणि त्रिपाठी
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किसी भी दिल पे झुर्रियां कभी नहीं पड़ती
वह धड़कता है इसलिए जवान रहता है
पहले हर बात पर लगते थे ठहाके यारो
अब तो शरमा के लतीफे भी सर झुकाते हैं
किसी को दर्द ने बख्शा नहीं जमाने मे
ग़मों का है बड़ा किरदार हर फ़साने में
आता है जिंदगी में ऐसा समय कभी
ईमान की पटरी से उतरता है आदमी
बड़े बेज़ार थे हम भी बड़ी ख़ामोश दुनिया थी
जुड़े सब यार मुझसे, नूर आया जिंदगानी में
@हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'
कड़े मौसम कठिन हालात में उसको जवाॅ॑ देखा
वफ़ा वो फूल है जिसकी कभी खुशबू नहीं जाती
एक तस्वीर में चेहरे पे तबस्सुम है मगर
मुस्कुराए थे कभी यह भी हमें याद नहीं
हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'
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पसीने से मैं अपने वो लिख रहा हूं
जो किस्मत में मेरे लिखा ही नहीं है
सूफी सुरेश चतुर्वेदी
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कौन कहता है कि भगवान को नहीं देखा
माॅ॑ की सूरत में ही भगवान नज़र आए हैं
वह मांगती है सब कुछ औलाद के लिए
खुद के लिए उसकी कोई मन्नत नहीं होती
बच्चों को पालती है ममता की छांव में
माॅ॑ से बड़ी जहाॅ॑ में जन्नत नहीं होती!!
हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'
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अजब है जिंदगी का यह नज़ारा भी मेरे यारो
दिया है ज़ख्म जिसने अब वही मरहम लगाता है
हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'
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हमारे प्रभु, इशारा भक्त का पहचान लेते है
किसे देना है क्या कब और कैसे जान लेते हैं
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दोस्तों, आप लोगों ख़िदमत में कुछ ताज़ातरीन शेर , मुक्तक और ग़ज़ल पेश कर रहा हूँ।
आप लोगों की पसन्द को मद्देनजर रखते हुए हमने कुछ चुनिंदा रचनाएँ ही पोस्ट की हैं।
आप सभी लोगों के प्यार और आशीर्वाद ने मेरी ज़िंदगी को पूरी तरह से बदल दिया।
बहुत बहुत धन्यवाद!!
Jab inayat aap jaise doston ki ho gai
Toot kar bikhare the hum uthkar sanvarna aa gaya
जब इनायत आप जैसे दोस्तों की हो गई
टूट कर बिखरे थे पर फिर से सॅ॑वरना आ गया
हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'
Maine poochha tum ko mujhse pyar hai kitana kaho
Usane meri julf ko chhu kar ke fir sahala diya
मैने पूँछा तुमको मुझसे प्यार है कितना कहो
उसने मेरी ज़ुल्फ़ को छूकर के फिर सहला दिया
Bikhar kar jo sanwarte hain
Wahi kuchh kar gujarte hain
बिखर कर जो सँवरते हैं
वही कुछ कर गुजरते हैं
Bacha koi nahin unki najar se aaj tak yaaro
Prabhu ki us adalat me khara insaaf hota hai
बचा कोई नहीं उनकी नजर से आज तक यारो
प्रभू की उस अदालत में खरा इन्साफ होता है
Ab to Khushi ki chah me milte hain gam mujhe
Bachpan me bina mol ki khushiyan bahut mili
अब तो ख़ुशी की चाह में मिलते हैं ग़म मुझे
बचपन में बिना मोल की खुशियाँ बहुत मिली
हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'
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किसी कांटे से कभी खौफ़ नहीं खाए हम
ज़ख्म फूलों ने दिए भूल नहीं पाए हम
ज़िन्दगी जब तक रही, शिकवे सभी करते रहे
मौत ने अपना लिया, तारीफ़ का तांता लगा
गुरूरे इश्क दिखलाना कभी अच्छा नहीं होता
अमीरी में भी इतराना कभी अच्छा नहीं होता
फ़लक के बादलों का भी ज़मीं पर ही ठिकाना है
बुलंदी पर बहक जाना कभी अच्छा नहीं होता
उनकी ख़ामोश निग़ाहों ने पढ़ लिया मुझको
मैंने कोशिश तो बहुत की थी मुस्कराने की
कोई भी इल्म मेरे काम कुछ नहीं आया
कोई सूरत न रही हाल-ए-दिल छिपाने की
देख कर के मुझे इक अदा से तेरा
मुस्कुराना मोहब्बत का पैगाम था
सर झुका के हया से इशारा तेरा
इश्क का सबसे प्यारा इक ईनाम था
रंजो-ग़म सारे उड़े तन-मन खुशी से भर गया
मैं किसी मासूम के सँग आज बच्चा बन गया
आता है जिंदगी में भी ऐसा समय कभी
ईमान की पटरी से उतरता है आदमी
किस बात का गुरुर है ऐ बादलों तुम्हे
फ़लक पे आज हो कल तो जमीं पे आना है
मै ढूढ़ता रहा जिसे, शहरों में बार बार,
घर तो मिले बड़े,मगर आँगन नही मिला!
दौलत की चकाचौंध के मंज़र बहुत दिखे,
पर झूमता हुआ मुझे सावन नहीं मिला!
दौलत की ज़रूरत ही खींच लाई शहर में
वरना बड़ा सुकून था उस गाँव के घर में
वो मेरे क़त्ल का सामान अपने साथ रखते हैं
मगर मिलते ही मेरे सर पे अपना हाँथ रखते हैं
हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'
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अनमोल दोहे
साचे मन से जो करे, कोई श्रम चित लाय।
तँय है पाना मधुर फल,भले समय लग जाय।।
कम शब्दों में बोल दे, ऊँची साँची बात।
बड़ी अनूठी है कला, सबके हृदय समात।।
हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'
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शेर
सलीका और हुनर सबके दिलों पर छा ही जाता है
असर तहज़ीब का अक्सर जुबाँ पर आ ही जाता है
ज़ख्म खाकर बहुत बेचैन रहे हम अब तक
घाव देकर उन्हें भी चैन आज तक न मिला
अब किसी दर्द का मुुुझ पर असर नही होता
ग़म के साये में भी खुशियाँ तलाश लेता हूँ
कभी गर्दिश मिले फिर भी,वफ़ा दिल मे रहे कायम
किसी भी हाल में चंदन महक अपनी लुटाता है
हरिशंकर पाण्डेय
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वे ज़मीर को बेच कर बनते रहे अमीर
जाते-जाते बन गये खाली हांथ फ़कीर
राजेश 'तुक्का'
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वो दिन लम्हें अब तक ना बीते देख राज
यू तो कई साल निकल गए ज़िन्दगी के
राज कबीर✍
मेरे अहसास की गली से
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कोशिशें हर बार सब नाकाम तूफाँ की हुई
करम मालिक का समुंदर से ही यारी हो गई
हरिशंकर पाण्डेय
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हमारे जांबाज़ वीर जवानों के लिए --
मोहब्बत है वतन से ये, कभी पीछे नहीं हटते,
हमेशा सरहदों पर जान की बाजी लगाते हैं!
हिफाज़त में वतन की,रहते हैं हर पल ये चौकन्ने,
नहीं डर है इन्हे ये " मौत से आँखे लड़ाते हैं।"
हजारों फिट की ऊँचाई, जहाँ जीना ही मुश्किल है,
वहाँ जांबाज़ बढ़ कर जंग में जलवा दिखाते हैं।
डटे रहते हैं , बर्फीली हवा के बीच रातों में,
निभाते फर्ज़ हैं वो," हम शुकूं की नींद पाते हैं।"
सभी को मौत का है खौफ, अपनी जान प्यारी है !
मगर ज़ांबाज वीरों को, वतन की शान प्यारी है!
फना होने का डर , मन में कभी इनके नही आता,
हमेशा " मौत के साये " में इनकी " पहरेदारी" है!!!
हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'
ll जय हिन्द ll
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मुक्तक और शेर
लिए आँखों मे मयखाना लबों पे जाम रखते हैं
ख़ता उनकी हमारे सर सदा इल्ज़ाम रखते हैं।।
नशा उनकी नज़र में है हमें बदनाम करते हैं।
पिलाते हैं अदाओं से दिवाना नाम रखते हैं।
गुजर जाती है सारी जिंदगी दो पाँव के बल पर।
सयानी मौत अब देखो चली है चार कंधों पर।।
घाव ऐसा दिया है गजब कर दिया।
खूनका एक कतरा न बहने दिया।।
पीर मन का मैं चुपचाप ही पी गया।
अश्क आँखों से अपने न गिरने दिया।।
दिया है घाव जो तुमने भरा अब तक नहीं देखो।
ज़खम दोगे कहाँ पर अब कोई मरकज़ नहीं खाली।।
मुझको मेरे उसूल ने अब यूँ बड़ा किया।
झूठो की भीड़ में मुझे तन्हा खड़ा किया।।
लहू बन जाता है ये अश्क़ मेरी आँखों में
झूठ बच कर निकल जाता है जब अदालत से
जहाँ पर रोज चढ़ता है चढ़ावा धन कुबेरों का
कल फिर उसी दहलीज़ पे एक और भूँखा मर गया
सभी चालें सियासत की चलो नाकाम कर दें हम
बदल कर सोंच अपनी पर सियासत का कतर दें हम
शब ए ग़म जब कहीं कोई उजाला हो नहीं पाया
दिया बनकर जला है साथ मेरे हौसला मेरा
लिखा है सच मगर अब झूठ बिकता है जमाने में
वफ़ा कायम कहाँ है अब मोहब्बत के घराने में
अनिल कुमार राही
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एक ताज़ातरीन ग़ज़ल----------------
ख़्वाब में आप आकर जगाते रहे,
बीते लम्हों की बातें बताते रहे।।
मैं परेशानियों से घिरा था बहुत,
आप गीतों के मुखड़े सुनाते रहे।
आप अपनी ख़ुशी के लिये ख़ासकर,
मेरे दिल को मुसल्सल लुभाते रहे।
मैं इरादे बदल लूँ इसी वास्ते,
जाम उल्फ़त का हरदम पिलाते रहे।
मुझ पे कुछ तो असर हो इसी वास्ते,
आप महफ़िल पे महफ़िल सजाते रहे।
मैं जिऊँ ज़िंदगी आप की शर्त पर,
सोचकर बस यही आज़माते रहे।।
मेरी आँखों में सैलाब था अश्क़ का,
आप हँसते रहे मुस्कुराते रहे।।।।।।
मैं ग़रीबी से लड़ता रहा उम्र भर,
आप ग़ैरों पे दौलत लुटाते रहे।।
आप "राही"न समझे मुझे आज तक,
इसलिये मुझपे तुहमत लगाते रहे।।
"राही" भोजपुरीं, जबलपुर मध्य प्रदेश।
7987949078, 989350244
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ग़ज़ल
ज़रा-सी बात पर हो तुम ख़फा अच्छा नहीं लगता।
जुदा होकर रहे फिर गमज़दा अच्छा नहीं लगता।।
बहारें चूमती दामन न जाओ छोड़कर मुझको।
तुम्हारे बिन कोई मौसम जरा अच्छा नहीं लगता।।
हुए मशहूर हम इतने ज़माने की नज़र हम पर।
तुम्हे कोई कहे अब बेवफा अच्छा नहीं लगता।।
खुदाया रूठ जाये तो कसम रब की करूँ सजदा।
जुनूने इश़क में ये आसरा अच्छा नहीं लगता।।
मुहब्बत पर भरोसा कर लिए हैं आँख में आँसू।
बगावत का सलीका यूँ डरा अच्छा नहीं लगता।।
जुड़ी है हर खुशी तुमसे हकीक़त यह खुदा जाने।
नुमाॅया हो वफ़ा यह फलसफा अच्छा नहीं लगता।।
तुम्हारा साथ था राही खुदाई साथ थी अपने।
मगर अब प्यार का वो तज़किरा अच्छा नहीं लगता।।
(अनिल कुमार राही)
ज़ख्म देकर सलीके से यहाँ मरहम लगाते हैं ।।
लगाकर चोट दिल पर पूछते अब हाल कैसा है।
(अनिल कुमार राही)