मंगलवार, 22 मई 2018

ज़ख्म फूलों ने दिये भूल नहीं पाये हम


किसी काँटे से कभी  खौफ़ नहीं खाये हम
ज़ख्म  फूलों ने  दिये  भूल  नहीं  पाये हम

उनके रुख़  पर  जो  मेरे दर्द से  खुशी देखी 
इस हक़ीक़त -ए- जिंदगी को जान पाए हम


गर्दिश -ए -जिंदगी ने ही बदल दिया मुझको
यार  कहते  हैं  कि   मुझमें  गुरूर  आया है


@हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'

आम हैं आज भी उनके जलवे पर कोई देख सकता नही है
सबकी आँखों पे  पर्दा पड़ा है  उनके  चेहरे पे  पर्दा  नही है
लोग चलते हैं काँटों से बचकर  मैं बचाता हूँ फूलों से दामन
इस कदर हमने खाये हैं धोखे अब किसी पर भरोसा नहीं है

अज्ञात

वफ़ा का दम  जो भरते थे  उन्हें भी  आजमाया है
जिसे समझे थे अपना अब कहर उसने ही ढाया है

हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'

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वो हमसे दूर क्या हुए अब हम बिखर गए।
आंखों  में मेरे   अश्क   बेशुमार   भर गए।।
निशाॅन   ढूँढते   रहे   सब, ज़ख्म  के  मेरे। 
हम  अपने  दर्द  से  ही  कई  बार मर गए।।


              (अनिल कुमार राही)

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ग़ज़ल की दुनिया से.......

मौत से ताउम्र यूँ भी मशवरा करते रहे,
ज़िन्दगी हारे न बस ये ही दुआ करते रहे.

इस तरह से इश्क़ में महबूब से रिश्ता रखा,
दे रहा था वो मुआफ़ी हम ख़ता करते रहे.

मयक़दे ये पूछते ही रह गए आख़िर तलक़,
कौनसा आख़िर बताओ हम नशा करते रहे.

सूखे  पत्तों की तरह जलते रहे बारिश में हम,
आग थी बेचैन लेकिन हम हवा करते रहे.

ढूँढता हममें रहा वो हम कहाँ उसमे रहे,
वो कहाँ हममें छिपा है हम पता करते रहे.

बेख़ुदी हम पे भी यारो इस क़दर छाई रही,
या ख़ुदा हम या ख़ुदा बस या ख़ुदा करते रहे.

इश्क़ में होकर जुदा मरने की ज़िद को छोड़ कर,
हम न जाने किस जनम का हक अदा करते रहे .

                     -सुरेन्द्र चतुर्वेदी

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