कुछ करने का सच्चा जुनून, जज़्बे का साथ निभाता है।
परवाज़ हौंसले की पाकर, जाँबाज़ कहाँ रुक पाता है!!
जो इन्कलाब का नारा दे , कर दे कुर्बान जवानी को ,
आज़ादी का मक़सद लेकर,वह भगत सिंह बन जाता है!!
हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'
जब तक कदम रुके रहे तो तेज थी हवा
नजरें उठाई जैसे तूफान रुक गया
एक पैतरे के साथ ही बिजली चमक उठी
उसने उड़ान ली तो आसमान झुक गया
हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'
न कोई हमसफ़र होगा न कोई कारवां होगा
विदा जब होंगे तन्हा हम न कोई पासबाॅ॑ होगा
फना होंगे 'सुमित' फिर भी रहेगी रूह ये कायम
न जाने कौन सा फिर जिस्म इसका आशियां होगा
पासबाॅ॑--रक्षक
हरिशंकर पाण्डेय "सुमित"
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वह माॅ॑गती है सब कुछ औलाद के लिए
खुद के लिए उसकी कोई मन्नत नहीं होती
बच्चों को पालती है ममता की छाॅ॑व में
माॅ॑ से बड़ी जहान में ज़न्नत नहीं होती
हरिशंकर पाण्डेय "सुमित"
*************************************** हमारी ज़िन्दगी में याद की अपनी अहमियत है,
कभी वे इक महकती, खुशनुमा अहसास होती हैं !
सिमटकर कर वह भिगाती हैं कभी मासूम पलकों कों,
नहीं मिटती हमारे मन से, दिल के पास होती हैँ !!
हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'
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उनके रुख़ पर जो मुस्कराई है उल्फ़त की कली,
तैरती है हया , पलकों का सहारा लेकर !!
होठ हिलकर रुके, खामोश जुबां कह न सकी,
बात कहदी , हसीं नजरों ने इशारा देकर !!!
हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'
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कड़कती धूप मे मजदूर करते हैं बड़ी मेहनत,
मिले दो वक्त की रोटी, यही अरमान रखते हैं।
पसीने से नहा कर, काम को अंज़ाम देकर ये,
गरीबी मे भी चेहरे पर मधुर मुस्कान रखते हैं!!
हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'
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कोई बँगलों में रहता है,किसी के छत नहीं सर पर।
किसी की फ़र्श संगमरमर, कोई है तोड़ता पत्थर।
बड़ा मंजर अज़ब देखा,कोई मोहताज़ निदिया का,
कोई है चैन से सोया, खुली फुटपाथ पर जा कर!
हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'
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बुजुर्गों की दुआ अपना असर हरदम दिखाती है
हुनर जीने का हमको जिंदगी में भी सिखाती है
अदब से सर झुकाना भी बुजुर्गों से ही सीखा है
अगर तूफाँ में कश्ती हो किनारा पा ही जाती है
हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'
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आदमी बस ढूँढ़ता है, एक शुकूँ की ज़िन्दगी,
सिर्फ दौलत ही नहीं, सब कुछ है इस संसार में l
हसरतें पूरी हो सब, यह तो कभी मुमकिन नहीं,
हर ख़ुशी बिकती नहीं, दुनिया के इस बाजार में !
हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'
मै ढूढ़ता रहा जिसे, शहरों में बार बार,
घर तो मिले बड़े,मगर आँगन नही मिला!
दौलत की चकाचौंध के मंज़र बहुत दिखे,
पर झूमता हुआ मुझे सावन नहीं मिला!
हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'
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हरे जांबाज़ वीर जवानों के लिए कुछ पंक्तियाँ
उनके जज़्बे को शत-शत नमन..
मोहब्बत है वतन से ये, कभी पीछे नहीं हटते,
हमेशा सरहदों पर जान की बाजी लगाते हैं!
हिफाज़त में वतन की,रहते हैं हर पल ये चौकन्ने,
नहीं डर है इन्हे ये मौत से आँखे लड़ाते हैं।
हजारों फिट की ऊँचाई, जहाँ जीना ही मुश्किल है,
वहां जांबाज़ बढ़ कर जंग में जलवा दिखाते हैं।
डटे रहते हैं , बर्फीली हवा के बीच रातों में,
निभाते फर्ज़ हैं वो, हम शुकूं की नींद पाते हैं।
ll जय हिन्द ll
हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'
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जाति, धर्म, धन, दौलत की कोई दीवार नहीं होती!
है बड़ी दोस्ती की हस्ती, हरगिज़ लाचार नहीं होती !
जब याद करे एक मित्र कभी,दूजे तक बात पहुँचती है,
हो सखा "कन्हैया" जैसा तब, दूजी दरकार नहीं होती
हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'
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