गुरुवार, 21 जून 2018

शायरी लिखने का हुनर








दोस्तों,
        शायरी सागर में  आप सभी का दिल से स्वागत है। यह तो पक्की बात है कि अच्छे गीत, ग़ज़ल, कविताएं,शेर सभी लोगों को पसंद आते हैं। अच्छी शायरी भी दिल को छू लेती है।
  इसीलिए मैं कहता हूँ कि शायरी सीख ही लो।
  
            हुनर है  शायरी  भी  सीख  लो  मेरे  यारो
            इल्म के दम से ही दिल में मुकाम बनता है

     शायरी सीखना आसान है बशर्ते अगर दिल में सीखने की चाहत है।

  दोस्तों, आगे बढ़ने से पहले मैं आप सभी लोगों  के शायरी के प्रति प्यार और समर्पण के लिये बहुत बहुत धन्यवाद देता हूँ। अपने भारत वर्ष, अमेरिका,जर्मनी,पोलैंड,सिंगापुर,फिलिप्पीन, बहरैन इत्यादि मुल्क के लोग मेरे ब्लॉग से जुड़ रहे हैं यह बड़ी खुशी की बात है। आप सभी लोगों का मैं तहे दिल से शुक्र -गुजार हूँ।

           दोस्तों, मेरा मानना है कि शायरी की जुबान आम जुबान होनी चाहिए। बहुत कठिन शब्दों में लिखी या सुनाई गई शायरी सिर्फ चंद लोगों के ही पल्ले पड़ती है और हमेशा आम आदमी को पसंद नहीं आती। शायरी के लफ़्ज सरल आम तौर बोले जाने वाले होने चाहिए।  बहुत  से  शायर उर्दू,फारसी, अरबी के बहुत कठिन शब्दों का प्रयोग करते है जिससे उनकी बात सबकी समझ में नहीं आती।

          दोस्तों, आप अगर शायरी का शौक रखते हैं तो बड़े बड़े मशहूर शायरों की शायरी पढिये,खूब पढिये।
      
           अगर है शौक लिखने का तो पढना भी ज़रूरी है
           अगर मंज़िल को पाना है तो चलना भी जरूरी है
           
          हमारी जिंदगी में हमारा पाला जब गम से पड़ता है तब हमारी शायरी में उसका जबर्दस्त असर दिखाई देता है। इस पर मैंने एक शेर लिखा----
  
  पीर जब दिल से उभर कर शायरी में आ गई
  शेर के ही शक़्ल में  सबके दिलों पर छा  गई

          मैं शायरी लिखने के शौक रखने वालों के लिए कुछ टिप्स देना चाहता हूँ। शेर लिखने के लिए सबसे पहली बात एक ख़याल होना चाहिए,  जिसके आधार पर शायरी बनती है। मैं अपने ख़याल को शेर का रूप देने के लिए कुछ इस तरह से प्रयास करता हूँ।

         मान लीजिए मेरे मन में एक विचार(ख़याल) आया और उसे मैं एक शेर का रूप देना चाहते हूँ। जैसे एक विचार आया कि जो लोग बिखर कर फिर अपने आप को सँवार लेते हैं वे अपनी योग्यता से एक दिन अवश्य  सफल हो जाते हैं।

मैंने इसी ख़याल पर एक शेर लिखने की कोशिस की --

बिखर  कर  जो  सँवरते  हैं
वही   कुछ  कर  गुजरते  हैं

        यह एक छोटा और सम तुकांत शेर है। 

         मैने अपने एक दूसरे ख़याल को भी शेर का रूप दिया।

ख़ुशी या ग़म का रिश्ता दिल से होता है बड़ा गहरा
लिखी जाती  है  उम्दा शायरी  दिल की  सियाही से

एक शेर अलग मिज़ाज का भी बन गया।

हुनर है  हौसला  कुछ कर  दिखाने की तमन्ना है
फ़लक को अब जमीं के पास लाने की तमन्ना है

      दोस्तों,इस दुनिया में सबसे खूबसूरत और पवित्र रिश्ता माँ
का होता है। माँ पर कई शायरों ने अच्छे अच्छे शेर लिखे हैं।मैने एक शेर लिखा----

जितना भी लिखूँ कम है अब उसकी शान में
माँ   के  समान  कोई   नहीं   इस  जहान  में


          दो शेर वफ़ा के नाम

कड़े  मौसम कठिन हालात में उसको जवाँ देखा
वफ़ा वो फूल है जिसकी कभी खुशबू नहीं जाती


उनकी यादें हैं वफ़ादार बसी हैं दिल में
कौन कहता है  वफ़ा  है नहीं जमाने मे
    (मेरी ग़ज़ल का एक शेर)

मैंने एक ख़याल के आधार एक शेर लिखना चाहा---

मेरा जीना उसने बार बार  दुश्वार कर दिया
एक ज़ख्म पर फिर से उसने वार कर दिया

        इस शेर को लिखने पर कहन(लय) सही नहीं लगी। इसी तरह शेर भी कुछ बिखरा लग रहा था। मैंने शब्दों की जगह बदली और नए शब्द लेकर शेर को इस प्रकार लिख दिया।

उसने  मेरा  जीना  बड़ा  दुश्वार  कर  दिया

ताजा था ज़ख्म फिर से वहीं वार कर दिया

एक शेर इस तरह का भी देखिए------

मुझे  रुसवा करो  बेशक़  यहाँ  सारे  जमाने में
कहीं इल्ज़ाम तुम पर  यूँ न आ जाए  फ़साने में

मेरा एक शेर गाँव के लिए....

शहर में हूँ  मगर  देहात की खुशबू  है साँसों में
कदम रुकते नहीं जब गाँव की माटी बुलाती है

 मुक्तक--

जब तके कदम रुके रहे तब तेज थी हवा
नज़रें  उठी  जब उसकी तूफान रुक गया
एक पैतरे के साथ ही बिजली चमक उठी
उसने उड़ान  ली  तो आसमान झुक गया

हमे  गम की  घटाओं  के  अँधेरे क्या डरायेंगे
छटेंगे  दुःख भरे  बादल,  सितारे  मुस्करायेंगे
सलीके से चले हैं  हौसले का थाम कर दामन
यक़ीनन कामयाबी का नया गुलशन सजायेंगे

भाप बन  पानी  उड़े  आकाश में
जल मिला  बादल भी इतराते रहे
पवन,सूरज,सिंधु,नदियों की कृपा
लोग  बरखा के  ही  गुण  गाते रहे

आदमी  बस ढूँढ़ता है, एक  शुकूँ  की  ज़िन्दगी,
सिर्फ दौलत ही नहीं, सब कुछ है इस संसार में l
हसरतें पूरी हो सब, यह तो  कभी मुमकिन नहीं,
हर ख़ुशी बिकती नहीं, दुनिया के इस बाजार में !


एक शेर सियासत पर---

बुझ चुकी  है आग फिर भी उठ  रहा  है  ये  धुआँ
कुछ  छिपी  चिनगारियों  को  भी बुझाना चाहिए

एक मुक्तक नजर है------

हमारी  ज़िन्दगी  में  याद   की   अपनी  अहमियत  है,
कभी   वे  इक  महकती,  खुशनुमा अहसास  होती हैं 
सिमटकर  वह भिगाती हैं  कभी  मासूम  पलकों  कों,
नहीं  मिटती   हमारे  मन से,  दिल  के  पास  होती  हैं


हरिशंकर पाण्डेय

         ऐसे कई शेर मुक्तक मैं अपने ब्लॉग पेज पर पोस्ट कर चुका हूँ। शेर में शब्दों का क्रम, कहन(लय) के अनुसार होना चाहिए। जब आप बार बार शेर लिखने लगते हैं तो कहन का अभ्यास होने लगता है। शेर लिखने के बाद उसे गुनगुना कर पढ़ना चाहिए। गुनगुनाते समय यदि लय सही लगे तो समझ लीजिए कि शेर का कहन सही है। शेर अर्थपूर्ण भी होने चाहिए।एक महत्वपूर्ण बात , शेर लिखने के बाद अपने मित्रों या जानकारों को अवश्य सुनायें। आप यदि किसी शायर से परिचित हैं तो उनका  मार्गदर्शन,सलाह भी लें।  अभ्यास (रियाज़) बहुत जरूरी है।

          बड़े शायरों के शेर पढ़ने से ही शेर लिखने और कहन में लिखने का धीरे धीरे  अनुभव मिलने लगता है।  पहले छोटे शेर लिखने का प्रयास करें और बाद में बड़े शेर भी लिखे जा सकते हैं।

           शेर भी अलग अलग विषय पर लिखे जा सकते हैं।
मोहब्बत,ग़म,तारीफ,जुदाई,सन्देशात्मक,प्रेरणादायक,सौंदर्य,
सुविचार इत्यादि को मद्देनजर रखकर शेर रचे जाते हैं।हर शायर के लिखने अपना अंदाज़ होता है।

         यदि आप शायरी का शौक रखते हैं तो सभी अच्छे शायरों को पढ़ते रहिये और अपनी कलम को चलाते रहिये।

यदि आपने लिखना जारी रक्खा तो आपकी शायरी में निखार आता जाएगा। इसलिए सुनना, पढ़ना और लिखना जारी रखें।

           आप मेरे ब्लॉग पर अपनी राय अवश्य दें।यदि आप कोई शेर लिखते हैं उसे भी कमेंट पर पोस्ट करें। आपकी लेखन से संबंधित  कोई समस्या हो तो अवश्य लिखें।

मेरी अन्य रचनाएँ ' यादों की अहमियत--ताज़ातरीन शेर ग़ज़ल, मुक्तक ,शेरो शायरी बहार, ग़ज़ल बहार, गम की शायरी,ग़ज़ल की दुनिया, प्रेरणादायक शेर और मुक्तक,ग़ज़ल की बह्र(बहरें), फूलों से ज़ख्म,हुनर है शायरी भी सीख लो........
 इत्यादि अलग अलग पेज पर पोस्ट किए गए हैं। आप सभी लोगों से जुड़ना मेरे लिए भी एक अत्यंत आनंददायी अनुभूति है!

    कुछ और टिप्स अगले लेख में----


हरिशंकर पाण्डेय-- 9967690881
hppandey59@gmail.com




गुरुवार, 14 जून 2018

ग़ज़ल और शेर की बह्र(बहरें)


दोस्तों!
कोई भी ग़ज़ल और उसके शेर जब लिखे जाते हैं तो उनके सही रूप में लय बद्ध होने के लिए उनका सही बह्र में होना बहुत जरूरी है। बह्र का मतलब सही छंद बद्ध मात्राओं के अनुसार होना। किसी भी गजल के शेर को लिखते समय एक निश्चित मीटर में लिखना होता है ताकि उसकी लय सही रहे।
     हिंदी भाषा में दोहे लिखने के लिए  पहले और तृतीय चरण में 13,13 और द्वितीय और चौथे चरण में 11,11 मात्राओं का होना परम् आवश्यक है। इसी तरह चौपाई में 16,16 मात्राएँ होती हैं।
        इसी प्रकार से शायरी , ग़ज़ल में भी मात्राओं का आधार होता है। इन्हें बह्र कहते हैं। मात्राओं को वज्न  के अनुसार देखा जाता है।
       दोस्तों,हिंदी में  अ,आ से लेकर अं अ: तक और क, ख से लेकर....  ज्ञ तक  क्रमशः  स्वर और व्यंजन हैं यह सभी जानते हैं।
         स्वर  किसी अक्षर से मिलकर मात्रा बनाते हैं। इस तरह संगीत में  2 मात्राएँ  लघु और गुरु(छोटी और बड़ी) होती हैं।
इन्हें l और S के द्वारा चिन्हित किया जाता है।
          उदाहरण के तौर पर नीचे एक शब्द लिख रहा हूँ।
                 
                    l  S  l
                    कमाल
                    1  2  1

यह शब्द "कमाल" जिसमे क की 1 मात्रा मा की 2 मात्रा और ल की भी 1 मात्रा मानी जायेगी।
       यह जान लीजिए कि जिस अक्षर में आ,ई,ऊ,ए, ऐ,ओ,औ, अं और अ: की मात्रा  लग जाये वह 2 मात्रा के माने जाएँगे। इस तरह जिस अक्षर के उच्चारण(बोलने) में अधिक समय लगे वह गुरु अर्थात 2 मात्रा का हो जाएगा।

     जैसे  का,की,कू,के, कै,कं, क:

    दोस्तों, ग़ज़ल और शायरी में अ: की मात्रा नहीं आती।
     उर्दू में प्रचलित 32 बहरें मानी जाती हैं। इसीलिए जो लोग सही लय और कहन में शेर लिखते हैं तो उनकी शायरी में बह्र की गलती नहीं होती। उनके मिसरे(पंक्तियाँ) किसी न किसी बह्र में होती ही हैं।

       दोस्तों, बह्र की विस्तृत जानकारी  श्री नवीन चतुर्वेदी--ग़ज़ल की प्रचलित 32 बहरें के ब्लॉग से आपको  मिल जाएगी।
 
         यहाँ मैं अपनी ग़ज़ल के एक मतले के द्वारा आपको बह्र  के अनुसार मात्राओं को गिनने का तरीका समझाता हूँ।

2  1  2    2    2   1 2  2   2 1  2  2   2 1 2
गीत   के  सुर  को  सजा  दे   साज ऐसा    चाहिए
दिल  तलक पहुँचे  सदा  अल्फाज़  ऐसा    चाहिए

गी     2
त      1
के      2
सुर     2 (1+1)

     इसी तरह से आप सारी मात्राएँ  गिन सकते हैं।

        इस प्रकार इस ग़ज़ल की बह्र 2122,2122,2122 और 212 मात्रा के अनुसार है। इसे  एक प्रकार की बह्र  फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फाइलून कहते हैं।

         दोस्तों, जिस शब्द में आधा अक्षर हो उसे भी मात्रा के स्वरूप में 1 मात्रिक गिना जाता है।
          
            जैसे अक्ल ,महात्मा में   क् और त् अर्धाक्षर हैं जिन्हें 1 मात्रा माना जायेगा। इसी प्रकार सर्दी में   दी के ऊपरवाले र को भी 1 मात्रा माना जायेगा। अगर यह बिंदी किसी दूसरी मात्र मात्रा के साथ हो जैसे-- हैं  तो अलग मात्रा न मानकर इसे 2 मात्रा ही मानेंगे।

               कंगन ,मंजन  मे  क  और  म  के ऊपर की बिंदी को 1-1 मात्रिक माना जायेगा।  इसलिए कं और  मं को 2-2 मात्रिक समझेंगे।लेकिन चन्द्रबिंदी जैसे सँवरना में  स के ऊपर है उसे मात्रा के रूप में नहीं गिना जाता है।
        
    
         मेरा एक शेर है उसकी मात्राएँ देखिए।

 1   2    2    2   1 2 2  2
बिखर  कर  जो   सँवरते  है
वही   कुछ  कर   गुजरते  हैं


2 1   2    2      2    1  2  2    2 1 2  2  2 1 2
पीर  जब  दिल  की  उभर  कर  शायरी  में  आयगी
एक    संजीदा    ग़ज़ल    तहरीर  में    ढल  जायगी

         यह अलग बह्र  --फ़ाइलातुन मसतफ़इलुन फ़ाइलातुन
के अनुसार बन गई।

    2  1  2  2    2  1  2  2   2 1  2  2 2
खल  गया  मुझको  कभी  तकदीर का सोना
आज  खुश हूँ   मिल गया  तकदीर का सोना

2  1  2  2.  2 1  2  2. 2 1 2 2.  2  1 2
कोशिशें  हर बार  सब  नाकाम  तूफाँ की हुई
करम  मालिक का  समुंदर यार मेरा बन गया


हरिशंकर पाण्डेय

दोस्तों, मैंने कई शेर लिखे,फेसबुक,वाट्सअप पर पोस्ट किए और महफ़िल में भी सुनाये। मेरे कुछ पसंदीदा शेर आपकी ख़िदमत में पेश कर रहा हूँ। आशा है आप को पसंद आयेंगे।

जब तलक सोती रही वो,
नींद  मुझसे  दूर थी
जग गई तकदीर जिस दिन
ख़ूब सोया रात भर

किसी नेकी के बदले  गर बदी मिल जाय  दुनिया में
न हों मायूस    वह  मालिक  सदा  इंसाफ  करता है

बड़ी नासाज़ थी तबियत उन्होंने हाल भर पूँछा
रफ़ूचक्कर हुआ  सब  मर्ज़  उनके मुस्कराने से

अदब से सर झुकाना भी  बुजुर्गों से ही सीखा है

अगर  कश्ती  हो  तूफाँ  में  किनारा चूम लेती है

परायी  पीर  को  जो  देख  मुस्कराते  हैं

ज़ख्म  खाकर  बड़े बेज़ार नजर आते हैं

बेज़ार  हो   गए  थे  ग़म-ए-ज़िन्दगी  से  हम 
नजर ए करम ने आपके जीना  सिखा  दिया

वे मेरे मौत का  सामान   अपने साथ  रखते हैं
मगर मिलते ही मेरे सर पे अपना हाँथ रखते हैं

मिल  गई   हमको   बुलन्दी ,  दूर   उनसे   हो  गए
जीत कर  हर एक बाजी  हमने सब कुछ खो दिया 

सुनहरे पल वो खुशियों के कहाँ अब लौटने वाले
मगर नादान दिल ने आस  का दामन  नहीं छोड़ा

मुझे  रुसवा  करो  बेशक़  यहाँ  सारे  जमाने में 

मगर इल्ज़ाम तुम पर भी न आ जाये फ़साने में

कड़े  मौसम कठिन हालात में उसको  जवाँ  देखा 

वफ़ा वो फूल है जिसकी कभी खुशबू  नहीं  जाती

मेरी ख्वाहिश का वो चमन नहीं मिला फिर भी,

मेरे   ख़्वाबों   के   रगो   में   बड़ी   रवानी   है

दर्द  देने  वाले   दवा  दे   रहे  हैं
जीने  की  मुझको  दुआ दे रहे हैं

मोहब्बत  को इबादत  की तरह  जो  याद रखते हैं
खुदा   की  रहमतों  से   वे  सदा  आबाद  रहते  हैं

कभी  मजबूरियाँ    भी   रोकती  हैं  पेशकदमी  से

मगर जो प्यार सच्चा है वो हरगिज़ मर नहीं सकता

इश्क़  में  दर्द   भी खुशियों  पे  फ़िदा होता है
ये ऐसी कैद है  जिसमे रिहाई हो नहीं सकती।

कुछ तज़ुर्बे ने बचाया, और  मालिक  का  रहम

दोस्तों की थी इनायत ,टूट  कर सम्हले  हैं  हम

मचाओ धूम, हर दिल में  मुकाम हो जाये
बढ़े  कदम  तो  बुलंदी  तुम्हे सलाम  करे!

माँ के हाँथों की रोटियों में बड़ी लज्ज़त थी 

किसी निवाले में  अब वह मज़ा नहीं आता

पराई  पीर  देख   कर   जो  मुस्कराते हैं
ग़म सताता है तो बेबस से नजर आते हैं

इस  कदर  बेहाल  जब  धरती  तपन  से  हो  गई
आह तब निकली फ़लक को भी रहम आ ही गया

हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'
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मेरे एक अजीज़ दोस्त और उभरते हुए शायर श्री अनिल कुमार राही का लाज़वाब मुक्तक पेश कर रहा हूँ----

लगादी   जिंदगी  अपनी
नया घर  एक बसाने  में
जिये औलाद की ख़ातिर
उन्हें  काबिल  बनाने  में

कहूँ  क्या  पीर  दिल  की

अब बुजुर्गों  की जमाने मे
किया  लख्त ए ज़िगर  ने
आज  बेघर आशियाने में

अनिल कुमार 'राही'



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बुजुर्गों की दुआ अपना असर हरदम दिखाती है
हुनर जीने का हमको  जिंदगी में भी सिखाती है
अदब से सर झुकाना भी  बुजुर्गों से ही सीखा है
अगर तूफाँ में कश्ती  हो किनारा पा ही जाती है


हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'

           दोस्तों,ग़ज़ल ,मुक्तक और शेर पढ़ते रहिये,सुनते रहिये। साथ ही साथ लिखते रहिये ,सुनाते रहिये।

           कोई शंका हो तो कमेंट में जरूर लिखिए।

अगली बार कुछ और जानकारी के साथ हाज़िर रहूँगा।

    


हरिशंकर पाण्डेय   --9967690881
hppandey59@gmail.com





 

मंगलवार, 12 जून 2018

ग़म भरी शायरी--- जो दिल को छू ले













दोस्तों, ज़िन्दगी में ख़ुशी और ग़म दोनो ही मिलते रहते हैं। मैंने कुछ शेर लिखे जो पेश ए ख़िदमत है -

हमने कहा था अलविदा हॅ॑सकर मुड़े थे हम
अफ़सोस आखरी  वो   मुलाकात  बन  गई



कभी मजबूरियाॅ॑ भी रोकती हैं पेश कदमी से
वफ़ा को दर्द की दहलीज़ पर लाचार देखा है


मेरे गम   मुझे आजमाते रहे हैं
मुझी पर मोहब्बत लुटाते रहे हैं

नींद पलकों को अब चूमना छोड़ कर
दिल दुखाकर  मुझे  अब  सताने लगी
हमनवां जब से  ग़म  बन गया है मिरा
हर  ख़ुशी  मुझसे  दामन  छुड़ाने लगी


वो नहीं  आये  हैं   इस बार  भी   वादा  करके
हिचकियां आ गई अब मुझको  सताने के लिए


नज़रों ने  आज   मेरी  उनसे   सवाल  पूछा 
रहना था दूर  मुझसे  फिर क्यों करीब आए
कहने लगे कि कोई तोहमत न अब लगाओ
छलके जो अश्क उनके आंखों में मेरी आए

 हरिशंकर पाण्डेय "सुमित"

इस  ज़िंदगी की  राह  में  रोड़े  मिले तो क्या
ज़ख्मों  के  बिना  मंजिलें मिलती नहीं कभी

सुमित 

जीने  का  राज   मैंने  मोहब्बत  में  पा लिया
जिससे भी ग़म मिला उसे अपना बना लिया 
तुम ग़म का बोझ रोके भी हल्का न कर सके
मैंने  हॅ॑सी  की  आड़  में  हर ग़म  छुपा लिया
अज्ञात

उनके   बिना   उदास  है महफ़िल  कुछ  इस  तरह 
जैसे   किसी   दरिया  में  रवानी.......   नहीं...रही

बने थे हमसफर हम और दिल से  आशनाई की
ख़ता हमसे हुई  क्या वक्त  ने  फिर बेवफाई की 

दर्द जब  दिल का  रुलाई  से  पिघल जाता है 
अश्क़ की शक्ल में आंखों से निकल आता है 

जहाॅ॑ उम्मीद की हमने वहीं से ग़म मिला हरदम 
हमारी    ख्वाहिशों ने   दर्द की  राहें बना डाली



कभी कुछ बंदिशें-मजबूरियाँ,बनती हैं जंजीरें
उसे खुदगर्ज या बेदर्द का तुम  नाम मत देना।
इश्क़ में  बेबसी  भी  रोकती  है पेशकदमी से
उसे भी बेवफ़ाई का कभी इल्ज़ाम मत देना।

   

हमें  उनकी  वफ़ा  पर था भरोसा ख़ुद से भी ज़्यादा
मगर  बेबस  हुए   तकदीर  ने    जब   बेवफ़ाई   की





हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'
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खुशी के बुलबुले हैं कुछ   ग़मों का बोलबाला है
हँसी के हौसलों ने आज तक हमको सम्हाला है

        (मेरी ग़ज़ल का  मतला- शायरी सागर से)


गरदिश ए जिंदगी में यूं बदल दिया मुझको
लोग  कहते हैं  कि  मुझमे  गरूर आया है 

हरिशंकर पाण्डेय
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अकेलापन उदासी और ये  रिसते हुए रिश्ते 
मेरे हिस्से में आई है यही दौलत समझ लेना

कश्मीरा त्रिपाठी
**************************"*********
अपने टूटे दिल का हम  हर जख्म पुराना भूल गए। 
अपनी  बरबादी का  वो  पूरा अफसाना  भूल गये। 

सुभाषिनी साहिल, वनदेमातरम।

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लफ्ज़ तलवार से भी     तेज वार करते हैं
ज़ख्म दिखता ही नहीं दर्द बहुत होता है

उसने  मेरा जीना ही अब  दुश्वार  कर दिया

ताजा था ज़ख्म फिर से वहीं वार कर दिया 

हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'

******"*************************
वो हमसे दूर क्या हुए अब हम बिखर गए।
आंखों  में मेरे   अश्क   बेशुमार   भर गए।।
निशाॅन   ढूँढते   रहे   सब, ज़ख्म  के  मेरे। 
हम  अपने  दर्द  से  ही  कई  बार मर गए।।

              (अनिल कुमार राही)
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महफिले गैर की वो जीनत है
दिल के सहरा में क्या बहार करूं 
कशमकश रुह की रुलाए खूं 
कैसे  हाॅ॑सिल  ख़ुदा  करार  करुं

सुभाषिनी साहिल 
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पीर जब दिल से निकलकर   शायरी में आएगी
एक   संजीदा  ग़ज़ल  तहरीर  में   ढल  जाएगी


ग़म कभी  जब  आजमाने  ही लगे,

तुम किसी  अंजाम  से  डरना नहीं।
जब घिरे  दुख दर्द  की  काली घटा,
खौफ़ की उस शाम  से डरना  नहीं।
आएगी चौखट पे भी एक दिन खुशी,
गम के  इस  मेहमान  से  डरना नहीं।


यह तारे चांद के संग छुप गए जाने कहां जाकर,
फ़लक खामोश है, ये रात  भी  बेजान  लगती है! 
तुम्हारे  बिन, मुकद्दर के सितारे  बन गये  जालिम,
ये  पूरी  जिंदगी   टूटा  हुआ  अरमान  लगती है!! 

हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'


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हम तो गम को एक नशीली शराब कहते हैं
लोग  ऐसे  हैं  कि  ग़म को  खराब कहते हैं
ये   सवाल है  जिसे  हम लाज़वाब कहते हैं 
गुल में कांटे हैं   इसलिए   गुलाब   कहते हैं
                  
अज्ञात

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किसी कांटे से कभी खौफ़ नहीं खाए हम
ज़ख्म  फूलों ने  दिये  भूल  नहीं  पाये हम


@हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'

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आम है आजभी उनके जलवे पर कोई देख सकता नहीं है
सबकी आँखों पे  पर्दा पड़ा है उनके  चेहरे पे  पर्दा  नही है
लोग चलते हैं काँटों से बचकर मैं बचाता हूँ फूलों से दामन
इस कदर हमने खाये हैं धोखे अब किसी पर भरोसा नहीं है 


अज्ञात



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वफ़ा का दम  जो  भरते  थे  उन्हें भी आजमाया है
जिसे समझे थे अपना अब कहर उसने ही ढाया है


हरिशंकर पाण्डेय  
'सुमित'

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                  एक नज़्म


मेरी दुनिया   बिखर गई है   तेरे जाने से
लगे है, चैन  से सोया   नहीं  ज़माने   से

चली गई   हो कहां    दूर  मेरी  राहों से
बना दिया क्यों मुझे अजनबी निगाहों से।
ऐ ज़िन्दगी, तू चली आ   किसी बहाने से।
मेरी दुनिया   बिखर गई है, तेरे  जाने से।
लगे है,  चैन से ........

तेरे   बगैर हैं   सूने ये   चांद और तारे
बदल  गए हैं कायनात के मंज़र सारे।
दुआ मेरी कुबूल  ...होगी तेरे आने से।
मेरी दुनिया बिखर गई है, तेरे  जाने से।
लगे है, चैन से.....

मेरे बगैर   तुम्हें चैन    कहां आएगा
मेरा है दिल तुम्हारे पास ओ मनाएगा।
माफ़ करदे जो हुई है खता दिवाने से।
मेरी दुनिया बिखर गई है, तेरे जाने से।
लगे है , चैन से .......


                   हरिशंकर पाण्डेय--9967690881                                   hppandey59@gmail.com


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                       ग़ज़ल

मुझे ज़िंदगी रास आई न तुम बिन,
गुलों की ये ख़ुशबू भी भाई न तुम बिन।

धरा तप रही थी बदन जल रहा था,
ये सावन की रिमझिम सुहाई न तुम बिन।

कई साल गुज़रे हैं तन्हाईयों में,
कभी कोई महफ़िल सजाई न तुम बिन।

कमाई की राहें बहुत थीं नज़र में,
मगर कोई जोखिम उठाई न तुम बिन।

जगाई थी जो रूह में प्यास तुमने,
किसी ने भी उसको बुझाई न तुम बिन।

किसी ने भी मंदिर का खोला न ताला,
किसी ने भी शम्मा जलाई न तुम बिन।

बहुत हैं यहाँ चाहने वाले "राही",
किसी को मेरी याद आई न तुम बिन।

"राही" भोजपुरीं, जबलपुर मध्य प्रदेश ।
7987949078, 9893502414 ।




गुरुवार, 24 मई 2018

शेरो शायरी की बहार



 दोस्तों,

शायरी  पढ़ना, सुनना और लिखना इन तीनो बातों का मज़ा ही कुछ और है। शायरी फ़ारसी,अरबी भाषाओं से होते हए उर्दू भाषा तक पहुँची है।  
        आपको एक बात बताना मैं जरूरी समझता हूँ कि शायरी पूरी तरह से सिर्फ़ उर्दू भाषा मे ही हो ,यह जरूरी नहीं है। शायरी में हिंदी के भी शब्द मिलाकर भी लिख सकते हैं।। शब्द सही होने चाहिए और शायरी की लय (कहन) सटीक होगी तो दिल मे उतर जाती है। शायरी पढ़ने का शौक तो हिंदी भाषी लोगों को भी बहुत होता है। शायरी का सम्बंध दिल से होता है। देखा जाये तो  शायरी  दिल से ही लिखी जाती है।

          इसीलिए मैने एक शेर लिखा-----



ख़ुशी या ग़म का रिश्ता  दिल से होता है  बड़ा गहरा

लिखी  जाती  है  उम्दा शायरी  दिल की  सियाही से


   दोस्तों,नीचे एक चार लाइन के मुक्तक का मज़ा लीजिये और इसके बाद शायरी की बहार का आनंद लीजिये



हमारी  ज़िन्दगी  में  याद  की   अपनी  अहमियत  है,

कभी वह  इक महकती, खुशनुमा  अहसास  होती है
सिमटकर कर वह भिगाती है कभी मासूम पलकों को,
नहीं  मिटती   हमारे  मन से,  दिल  के पास  होती है !!


हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'


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 अलग अलग रंग के शेर--मेरी कलम से. 


बुलंदी मिल नहीं सकती फकत तक़दीर के बल से कड़े संघर्ष  के छाले ही मंजिल से  मिलाते  हैं


ये माना  ज़िंदगी में  ग़म  के  झोंके भी  बहुत आए
मगर खुशियों के गुलशन ने भी  प्यारे फूल बरसाए


जब तलक  सोती  रही वो, नींद  मुझसे  दूर थी
जग गई तकदीर जिस दिन,  नींद  ही आई नहीं

मजे में  हूं  यही  हम  झूठ  अक्सर बोल जाते हैं
छुपाते  दर्द  यूं  खुद  को  हंसी  से भी  बचाते हैं 


सुनो बरसात से यादों का नाता है  गजब यारो
एक तन को भिगा दे दूसरी मन को भिगाती है



बड़ी नासाज़ थी तबियत उन्होंने हाल भर पूँछा

रफ़ूचक्कर हुआ  सब  मर्ज़  उनके मुस्कराने से


रूठने  का  मज़ा  तब आता  है

प्यार  से  जब  कोई  मनाता  है


अदब से सर झुकाना भी  बुजुर्गों से ही सीखा है

अगर  कश्ती  हो  तूफाँ  में  किनारा चूम लेती है


परायी  पीर  को  जो  देख  मुस्कराते  हैं

ज़ख्म  खाकर  बड़े बेज़ार नजर आते हैं

उदासी   को   छिपाकर  मुस्कुराना  फन है यारो 
इसे  सीखा   है  जिसने  ज़िंदगी उस पर फ़िदा है 



सुना था नाम जमाने में मोहब्बत का मगर

उनसे मिलने के बाद हमने हक़ीकत जानी


तुम  मेरी गलतियों को,भूल सको तो बेहतर,
वरना हमको भी, मनाने  का  हुनर आता है!


हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'


सुनहरे पल की  खुशियों का बहुत है  लौटना मुश्किल 

मगर इस दिल ने अब तक आस का दामन नहीं छोड़ा


बेज़ार  हो   गए  थे  ग़म-ए-ज़िन्दगी  से  हम 
नजर ए करम ने आपके जीना  सिखा  दिया


वे मेरे मौत का  सामान   अपने साथ  रखते हैं

मगर मिलते ही मेरे सर पे अपना हाँथ रखते हैं


मिल  गई   हमको   बुलन्दी ,  दूर   उनसे   हो  गए

जीत कर  हर एक बाजी  हमने सब कुछ खो दिया 


सुनहरे पल वो खुशियों के कहाँ अब लौटने वाले

मगर नादान दिल ने आस  का दामन  नहीं छोड़ा


मुझे  रुसवा  करो  बेशक़  यहाँ  सारे  जमाने में 

मगर इल्ज़ाम तुम पर भी न आ जाये फ़साने में


कड़े  मौसम कठिन हालात में उसको  जवाँ  देखा 

वफ़ा वो फूल है जिसकी कभी खुशबू  नहीं  जाती


मेरी ख्वाहिश का वो चमन नहीं मिला फिर भी,

मेरे   ख़्वाबों   के   रगो   में    बड़ी   रवानी   है


दर्द  देने  वाले   दवा   दे   रहे  हैं

जीने  की  मुझको  दुआ दे रहे हैं


किसी  नेकी के  बदले गर बदी मिल जाय दुनिया में

न हों मायूस    वह  मालिक  सदा  इंसाफ  करता है


बुझ चुकी है आग फिर भी उठ रहा  है अब धुआँ

कुछ  छिपी  चिनगारियों  को  भी बुझाना चाहिए



मोहब्बत  को इबादत  की तरह  जो  याद रखते हैं
खुदा   की  रहमतों  से   वे  सदा  आबाद  रहते  हैं


कोशिशें  हर बार  सब  नाकाम  तूफाँ की हुई

करम  मालिक का  समुंदर यार मेरा बन गया


कभी  मजबूरियाँ    भी   रोकती  हैं  पेशकदमी  से
मगर जो प्यार सच्चा है वो हरगिज़ मर नहीं सकता


इश्क़  में  दर्द   भी खुशियों  पे  फ़िदा होता है

ये ऐसी कैद है  जिसमे रिहाई हो नहीं सकती।


कुछ तज़ुर्बे ने बचाया, और  मालिक  का  रहम

दोस्तों की थी इनायत ,टूट  कर सम्हले  हैं  हम



मचाओ धूम, हर दिल में  मुकाम हो जाये
बढ़े  कदम  तो  बुलंदी  तुम्हे सलाम  करे!


माँ के हाँथों की रोटियों में बड़ी लज्ज़त थी 

किसी निवाले में  अब वह मज़ा नहीं आता


पराई  पीर  देख   कर   जो  मुस्कराते हैं
ग़म सताता है तो बेबस से नजर आते हैं



जिंदगी  का  मज़ा भी  आता है
जब कोई दिल में उतर जाता है

जागने  का  मज़ा  भी  आता है
नींद  को  प्यार  जब  उड़ाता है

रुठने   का   मज़ा  भी  आता है
प्यार   से   जब  कोई  मनाता है





हरिशंकर पाण्डेय-- 9967690881


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लगादी  जिंदगी अपनी  नया  इक घर 
 बसाने  में

जिये  औलाद की ख़ातिर  उन्हें काबिल बनाने में

बुजर्गों के  दिलों की पीर  
सुन लो  इस  जमाने मे

किया लख्त ए ज़िगर ने आज बेघर आशियाने में


अनिल कुमार 'राही'



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बुजुर्गों की दुआ अपना असर हरदम दिखाती है

हुनर जीने का हमको  जिंदगी में भी सिखाती है
अदब से सर झुकाना भी  बुजुर्गों से ही सीखा है
अगर तूफाँ में कश्ती  हो किनारा पा ही जाती है

हरिशंकर पाण्डेय 
'सुमित'


उसने  पहले रस कहा  फिर गुल कहा  फिर ले  कहा

इस तरह  ज़ालिम  ने  रसगुल्ले  के  टुकड़े  कर  दिये
(अज्ञात)


नोट-- दोस्तों, मेरे ब्लॉग के सभी पृष्ठ पर कुछ नई रचनाएँ  लिखी  जाती  है,पढ़ते रहिये। आपके  विचार क्या हैं अवश्य लिखिए।


धन्यवाद!!


हरिशंकर पाण्डेय--9967690881

hppandey59@gmail.com

दर्द शायरी











दर्द  देने  वाले  दवा  दे  रहे  हैं
जीने की मुझको दुआ दे रहे हैं

दर्द भी  इश्क़ की  खुशियों पे   फ़िदा होता है

ये ऐसी क़ैद है  जिसमें  रिहाई भी  नहीं होती

दर्द  जब  दिल का  रुलाई से  पिघल जाता है
अश्क़ की शक़्ल में आँखों से निकल आता है

गर्दिश ए ज़िन्दगी ने यूँ बदल दिया मुझको
लोग  कहते  हैं  कि  मुझमें  गुरुर  आया है

उसने मेरा जीना बड़ा दुश्वार  कर  दिया
ताजा था मेरा ज़ख्म वहीं वार कर दिया

कभी मजबूरियाॅ॑ भी रोकती हैं पेश कदमी से
वफ़ा जब दर्द की दहलीज़ पर लाचार होती है

हरिशंकर पाण्डेय "सुमित"

मैं  ग़मो को आजमाते चल रहा हूँ
दर्द  से  आँखें मिलाते चल रहा हूँ

@हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'


ये तारे चाँद के सँग,छिप गये जाने कहाँ  जाकर, 
फलक खामोश है, ये रात भी  बेजान  लगती है! 
तुम्हारे बिन, मुकद्दर के सितारे बन गये  जालिम,
ये पूरी  जिंदगी  टूटा  हुआ  अरमान  लगती है!!
  

किसी  को दर्द ने बख्शा नहीं ज़माने में

ग़मो का है  बड़ा क़िरदार हर फ़साने में

दर्द जब  दिल का  रुलाई से  पिघल जाता है
अश्क़ की शक्ल में आँखों से निकल आता है

Harishankar Pandey

हमसे हुए वो दूर क्या अब हम बिखर गए
आंखों  में  बेशुमार   मेरे  अश्क  भर  गए
सब  लोग   मेरे  ज़ख्म   ढूंढते   रहे   मगर
हम  अपने  दर्द  से  ही  कई  बार  मर गए

 अनिल कुमार राही

बने थे हमसफर हम और दिल से आशनाई की
ख़ता हमसे हुई क्या  वक्त  ने फिर बेवफाई की

                     हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'


हमें  उनकी  वफ़ा  पर था भरोसा ख़ुद से भी ज़्यादा
मगर   बेबस  हुए   तकदीर  ने   जब   बेवफ़ाई  की
हरिशंकर पाण्डेय   "सुमित "    

प्रेरणादायक शेर









किसी नेकी के बदले  गर बदी मिल जाय  दुनिया में
न हों मायूस    वह  मालिक  सदा  इंसाफ  करता है

महक गुलशन के उस गुल की कभी  फीकी नहीं पड़ती
    हमेशा   गर्दिश  ए   तूफ़ान  में   जो  मुस्कराता  है


किसी भी दर्द का मुझ पर असर नहीं होता
ग़म के साये में भी  खुशियाँ तलाश लेता हूँ

झीलों  नदियों  की  अहमियत  समझो,
हमारी प्यास समुंदर नही बुझा  सकता

हुनर  सफ़र में  बुलंदी  तलाश ले  फिर भी
अपनी नजरों को सलीके से झुकाये रखना

मिलेगा मर्तबा  हस्ती  को  बचाये रखना
सफ़र के वास्ते कश्ती को सजाये रखना

रोक  पायेगा  रास्ता  क्या  तुम्हारा  तूफाँ
अपनी  यारी  यूँ  समंदर से बनाये रखना


कुछ करने का सच्चा जुनून  जज्बे का साथ निभाता है
परवाज़  हौसले की पाकर जांबाज़ कहाँ  रुक  पाता है
जो  इंक़लाब  का  नारा  दे  कुर्बान  जवानी  कर  डाले
आज़ादी का मक़सद लेकर वह भगत सिंह बन जाता है

जीत ले  हर एक  बाज़ी  हौसले  के  जोर से
खुद फ़लक सजदा करे परवाज़ ऐसी चाहिए

गम कभी  जब  आजमाने  ही लगे,
तुम किसी  अंजाम  से  डरना नहीं।
जब घिरे  दुख दर्द  की  काली घटा,
बादलों  की  शाम   से  डरना  नहीं।
आएगी चौखट पे भी एक दिन  खुशी,
गम के  इस  मेहमान  से  डरना नहीं।



हमारे जांबाज़ वीर जवानों के लिए कुछ पंक्तियाँ
लिख रहा हूँ!-मेरा उनके जज़्बे को  शत-शत नमन..

मोहब्बत है वतन से ये,  कभी  पीछे  नहीं हटते,
हमेशा  सरहदों  पर  जान की  बाजी  लगाते हैं!
हिफाज़त में वतन की,रहते हैं हर पल ये चौकन्ने,
नहीं  डर  है  इन्हे ये " मौत से  आँखे  लड़ाते हैं।"

हजारों फिट की ऊँचाई, जहाँ जीना ही मुश्किल है, 
वहाँ  जांबाज़  बढ़ कर  जंग में  जलवा दिखाते हैं। 
डटे  रहते  हैं  , बर्फीली  हवा  के  बीच   रातों  में,
निभाते  फर्ज़  हैं वो," हम  शुकूं की  नींद  पाते हैं।"

                         ll जय  हिन्द l

हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'

मंगलवार, 22 मई 2018

ज़ख्म फूलों ने दिये भूल नहीं पाये हम


किसी काँटे से कभी  खौफ़ नहीं खाये हम
ज़ख्म  फूलों ने  दिये  भूल  नहीं  पाये हम

उनके रुख़  पर  जो  मेरे दर्द से  खुशी देखी 
इस हक़ीक़त -ए- जिंदगी को जान पाए हम


गर्दिश -ए -जिंदगी ने ही बदल दिया मुझको
यार  कहते  हैं  कि   मुझमें  गुरूर  आया है


@हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'

आम हैं आज भी उनके जलवे पर कोई देख सकता नही है
सबकी आँखों पे  पर्दा पड़ा है  उनके  चेहरे पे  पर्दा  नही है
लोग चलते हैं काँटों से बचकर  मैं बचाता हूँ फूलों से दामन
इस कदर हमने खाये हैं धोखे अब किसी पर भरोसा नहीं है

अज्ञात

वफ़ा का दम  जो भरते थे  उन्हें भी  आजमाया है
जिसे समझे थे अपना अब कहर उसने ही ढाया है

हरिशंकर पाण्डेय 'सुमित'

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वो हमसे दूर क्या हुए अब हम बिखर गए।
आंखों  में मेरे   अश्क   बेशुमार   भर गए।।
निशाॅन   ढूँढते   रहे   सब, ज़ख्म  के  मेरे। 
हम  अपने  दर्द  से  ही  कई  बार मर गए।।


              (अनिल कुमार राही)

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ग़ज़ल की दुनिया से.......

मौत से ताउम्र यूँ भी मशवरा करते रहे,
ज़िन्दगी हारे न बस ये ही दुआ करते रहे.

इस तरह से इश्क़ में महबूब से रिश्ता रखा,
दे रहा था वो मुआफ़ी हम ख़ता करते रहे.

मयक़दे ये पूछते ही रह गए आख़िर तलक़,
कौनसा आख़िर बताओ हम नशा करते रहे.

सूखे  पत्तों की तरह जलते रहे बारिश में हम,
आग थी बेचैन लेकिन हम हवा करते रहे.

ढूँढता हममें रहा वो हम कहाँ उसमे रहे,
वो कहाँ हममें छिपा है हम पता करते रहे.

बेख़ुदी हम पे भी यारो इस क़दर छाई रही,
या ख़ुदा हम या ख़ुदा बस या ख़ुदा करते रहे.

इश्क़ में होकर जुदा मरने की ज़िद को छोड़ कर,
हम न जाने किस जनम का हक अदा करते रहे .

                     -सुरेन्द्र चतुर्वेदी

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Shayari Saagar

मशहूर दिलकश हर रंग की शायरी

दोस्तों,  सजा कर  शायरी की इक नई सौगात  लाया  हूॅ॑ खुशी और ग़म के सारे रंग और हालात लाया हूॅ॑ किताब ए जिंदगी  से पेश हैं...